नेपाल के संताल आदिवासी अपनी जड़ों को तलाशने पहुंचे झारखंड

नेपाल से आए संताल आदिवासी दुमका पहुंच कर भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि यह संतालों का मूल स्थान है। उनका कहना था कि अपने इतिहास की खोज और संस्कृति की तलाश उन्हें यहां तक खींच कर ले आयी।

दुमका: नेपाल के झापा जिला अंतर्गत भद्रपुर नगरपालिका के वार्ड संख्या 3 से आए संताल आदिवासियों के एक 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल झारखंड भ्रमण के क्रम में 17 दिसंबर 2025 को दुमका जिले के रानीश्वर के पाथरा स्थित भारत सेवाश्रम संघ, स्वामी प्रणवानंद विद्या मंदिर पहुंचा। इस अवसर पर संघ के सचिव की अगवानी में दल का भव्य एवं पारंपरिक स्वागत किया गया। सभी आगंतुकों का स्वागत संताल परंपरा के अनुसार तुनदाह, टमाक की धुनों के साथ किया गया।

पुरुष पारंपरिक पंखी पोशाक में तथा महिलाएं पारंपरिक साड़ी में थी और इसमें संताल संस्कृति की गौरवपूर्ण झलक मिल रही थी। स्वागत जुलूस आश्रम परिसर स्थित जाहेरथान तक पहुंचा, जहां जाहेर आयु, मारंगबुरु आदि इष्ट देवता का विधिवत पूजा-अर्चना की गई। इसके पश्चात कार्यक्रम स्थल पर औपचारिक स्वागत समारोह आयोजित हुआ।

कार्यक्रम के दौरान स्वामीजी ने प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए बताया कि भारत सेवाश्रम संघ द्वारा आदिवासी बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ उनकी संस्कृति, भाषा और रीति-रिवाज भी सिखाए जाते हैं, ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रूप से पहुंच सके। स्वागत भाषण विद्यालय के प्रधानाचार्य अभिनंदन मुर्मू ने दिया।

स्वामी प्रणवानंद विद्या मंदिर परिसर में परंपरागत संताली परंपरा से नेपाल के संताल प्रनिधिमंडल का स्वागत किया गया।

नेपाल से आये मेहमान श्री हेम कार्की ने विद्यालय के बच्चों से संवाद किया और आश्रम के शांत, सांस्कृतिक वातावरण की सराहना की। कार्यक्रम के उपरांत प्रतिनिधिमंडल ने ऐतिहासिक संताल काटा पोखर, दिगुली, रानीश्वर का परिभ्रमण कर वहां संताल हुल के गुमनाम शहीदों को श्रद्धांजलि दिया तथा 1855-56 के संताल हूल (क्रांति) से संबंधित ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त की।

यह भ्रमण संताल समाज की सांस्कृतिक एकता और विरासत के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखा जा रहा है। इस 11 सदस्यीय दल का नेतृत्व श्री हेम कार्की, अध्यक्ष वार्ड संख्या 3, भद्रपुर नगरपालिका, जिला झापा (नेपाल) ने किया। उन्होंने बताया कि नेपाल में रह रहे संताल आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इन्हीं मूल्यों की पुनर्स्थापन के उद्देश्य से उन्होंने संतालों के मूल स्थान संताल परगना (दुमका) का भ्रमण करने का निर्णय लिया।

संताल कटा पोखर के समक्ष नेपाल के संताल आदिवासी, साथ ही विद्यालय के शिक्षक बोध बोदरा।

उनका कहना है कि संताल आदिवासियों का मूल स्थल दुमका जिला है। दल के सबसे बुजुर्ग सदस्य माझी बाबा लाल हांसदा (81 वर्ष) ने बताया कि वे भारत कई बार आए हैं, लेकिन अपने मूल स्थान संताल परगना, दुमका में यह उनका पहला आगमन है। अपना इतिहास और संस्कृति की खोज उन्हें यहां खींच लाई। उनकी बातों को सुनकर स्वामीजी, प्रधानाचार्य और उपस्थित सभी लोग भावुक और अभिभूत नजर आए।

प्रतिनिधिमंडल में रविलाल हांसदा, सोम बास्की, लुखीराम हेमब्रम, लुखीराम मार्डी, बेटका मुर्मू, सरकार हांसदा, ताला किस्कू, मंगल मुर्मू, सोम बेसरा, सिमोन बेसरा शामिल थे। साथ ही समीर, याम, आशीष, विजय गोस्वामी, दुमका माझीथान से अनिल हेमब्रम, सुनील मरांडी आदि उपस्थित रहे। विद्यालय की ओर से शिक्षक-शिक्षिकाओं में जयदेव दे, रणजीत राउत, बोध बोदरा, गोविंद यादव, पार्थ राउत, प्रशांत कुमार मुर्मू, प्रणव कुमार भकत, प्रमिला टुडू, स्वर्णलता मरांडी, सेमल मुर्मू सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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