बिहार में गर्मी से निपटने की योजना होने और कई स्वास्थ्य केंद्रों में सुधार के बावजूद प्रचंड गर्मी ने दर्जनों लोगों की जान ले ली, क्योंकि जिम्मेदार अधिकारी चुनाव संबंधी कार्यों में व्यस्त थे।
मोहम्मद इमरान खान
31 मई, 2024 को जारी एक संक्षिप्त प्रेस रिलीज़ में भारतीय राज्य बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग (डीएमडी) ने बताया कि पिछले दिन प्रचंड गर्मी से 14 लोगों की मौत हो गई। इनमें चुनाव कार्यों में लगे 10 अधिकारी भी शामिल थे। गौरतलब है कि बिहार देश में सबसे गर्म और सबसे ज्यादा आर्द्रता वाले राज्यों में से एक है। मौतों की यह संख्या हालांकि बहुत कम आंकी गई है, विशेष रूप से तब, जबकि स्थानीय समाचार पत्रों ने लगभग उन दो दर्जन मतदान अधिकारियों का विवरण प्रकाशित किया है, जो हीटवेव में मारे गए। बिहार इस वर्ष 29 मई से एक जून के बीच इसकी चपेट में था।
डायलॉग अर्थ ने अनुमान लगाया है कि हिंदी समाचार पत्रों ने राज्य भर में कम से कम 100 मौतों की गणना की है, जिसमें 30 मई को 55 से अधिक मौतें, 31 मई को 40 से अधिक मौतें और एक जून को छह मौतें शामिल हैं।
डायलॉग अर्थ ने जब आधिकारिक आंकड़ों और समाचार रिपोर्टों के बीच के अंतर के बारे में पूछा, तो डीएमडी के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमने केवल अस्पताल में भर्ती और पोस्टमार्टम किए जाने वालों की हीटस्ट्रोक से हुई मौतों की पुष्टि की है और उनकी ही गणना की है। हमने घर पर हीटस्ट्रोक से हुई मौतों या अस्पताल पहुंचने से पहले मरने वालों की गणना नहीं की है।”
दक्षिण एशिया में तेजी से लगातार और प्रचंड हीटवेव का संकेत देने वाले सभी संकेतों के बावजूद, इस क्षेत्र के सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में अधिकारी अब भी हीटवेव से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए जूझ रहे हैं।
भारत में हीटवेव से होने वाली मौतें लगातार बढ़ रही हैं और अक्सर सुर्खियां भी बनती हैं – मई, 2024 के आखिरी हफ्ते में हीटवेव से संबंधित मौतें अपवाद नहीं हैं। कुछ अनुमानों के मुताबिक, 1992 से 2015 के बीच भारत में भीषण गर्मी के कारण लगभग 22,000 लोगों की मौत हुई है। लैंसेट के एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 2000-2004 और 2017-2021 के बीच भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों में 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
लेकिन लगातार जारी रहने वाली गर्मी और उससे होने वाले स्वास्थ्य संबंधी संकट और कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में हीट एक्शन प्लान (एचएपी) तैयार किए जाने के बावजूद प्रचंड हीटवेव संबंधी मौतों में भारी वृद्धि, अस्पतालों में पानी भर जाने और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे की समस्या है। पहले से ही मुश्किल स्थिति को और जटिल बनाने के लिए हीटवेव से होने वाली मौतों के आंकड़ों में अंतर बना हुआ है, जिसमें डॉक्टर और अधिकारी, दोनों ही खबरों में बताए आंकड़ों से कम आंकड़े बता रहे हैं।
किसी की मृत्यु के पीछे अत्यधिक गर्मी की भूमिका का निर्धारण करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। प्रयोगशाला में होने वाली जांच से हीट स्ट्रोक के कारण अंगों के नुकसान का पता लगाया जा सकता है, और विभिन्न तरह की जांचों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हाइपरथर्मिया (शरीर के उच्च तापमान) के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है, लेकिन किसी भी एक जांच से भीषण गर्मी को मौत के कारण के रूप में नहीं पहचाना जा सकता है। जिन मामलों में पोस्टमार्टम नहीं होता है, उनमें गर्मी और मृत्यु के बीच के संबंध की पूरी तरह से पुष्टि करना मुश्किल हो जाता है।
बिहार में हुई हालिया मौतों के मामले में डॉक्टरों ने मृतकों की निजता के अधिकार का हवाला देते हुए डायलॉग अर्थ को पोस्टमार्टम रिपोर्टों के बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर दिया।
चुनावों का असर
बीते 19 अप्रैल से एक जून तक चले भारत के आम चुनावों के कारण राज्य मशीनरी की प्रतिक्रिया और भी कठिन हो गई, जिसने राजनेताओं एवं नौकरशाही का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था। इसलिए बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की वेबसाइट बताती है कि अप्रैल में अधिकारियों ने प्रचंड गर्मी से निपटने के लिए बैठक की, लेकिन मई में ऐसी कोई बैठक नहीं हुई, जो कि चुनावों के बीच का समय था। यह तब हुआ, जब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के पटना कार्यालय ने 30 और 31 मई के लिए बिहार के दक्षिणी हिस्सों में तापमान के 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने चेतावनी जारी की थी।
जब 29 मई को अत्यधिक गर्मी के कारण दर्जनों स्कूली बच्चे बेहोश हो गए, तब जाकर सरकार ने देर से कुछ छोटे-छोटे कदम उठाए। वर्ष 2019 से ही बिहार में हीट एक्शन प्लान लागू है, जिसमें कहा गया है कि मई की शुरुआत में स्कूलों को समय में परिवर्तन करके सुबह का समय कर देना चाहिए, लेकिन इसकी अनदेखी कर दी गई। मौजूदा हीटवेव के दौरान स्कूल के समय और बच्चों के जोखिम को लेकर जब अभिभावकों एवं विपक्ष के नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया, तब मुख्यमंत्री ने सभी सरकारी स्कूलों को आठ जून तक बंद रखने का आदेश दिया।
अस्पतालों में तैयारी नहीं
अगले दिन हालात और बदतर हो गए। आईएमडी पटना ने हॉट नाइट्स (गर्म रातों) को लेकर चेतावनी जारी की। आईएमडी पटना के मौसम वैज्ञानिक एस के पटेल ने बताया कि हॉट नाइट्स तब होती हैं, जब रात में न्यूनतम तापमान सामान्य से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होता है और यह पहली बार था, जब राज्य में ऐसी चेतावनी जारी की गई थी। बिहार के कुछ हिस्सों में 30 मई की रात को तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच था, यानी जो लोग दिन में उच्च तापमान से पीड़ित थे, उन्हें रात में ज्यादा राहत नहीं मिली, जिससे तेज डिहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी) और हीट स्ट्रोक (लू लगना) की समस्या पैदा हुई।
जैसे ही दर्जनों मरीज अस्पताल में पहुंचने लगे, उन्होंने पाया कि अस्पताल इसके लिए तैयार नहीं थे। अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा, “गया शहर के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज और अस्पताल [एएनएमएमसीएच] के आपातकालीन वार्ड में बड़ी संख्या में हीटवेव से पीड़ित मरीज और उनके परिजनों ने 30 मई को बिना एयर कंडीशनर या एयर कूलर के एक रात बिना सोए और बेचैनी में बिताई।”
ऐसी ही समस्याएं औरंगाबाद के सदर अस्पताल में थीं। 30 मई की रात को जब पचास की उम्र के रामप्रवेश चौधरी को तेज बुखार और डीहाइड्रेशन की शिकायत होने के बाद अस्पताल ले जाया गया, तो आपातकालीन वार्ड पहले से ही भरा हुआ था। उनके रिश्तेदार राजू कुमार ने बताया कि चौधरी सौभाग्यशाली थे कि उन्हें एक बिस्तर मिल गया और बाद में उन्हें स्पेशल हीटवेव वार्ड में भेज दिया गया। कुमार ने डायलॉग अर्थ को बताया, “लेकिन अन्य लोग इतने सौभाग्यशाली नहीं थे और उनमें से कुछ लोग इलाज में देरी के कारण मर गए।” कई लोगों का इलाज बेंच और कुर्सियों पर किया गया, क्योंकि बिस्तर उपलब्ध नहीं थे।
जैसे ही बड़े पैमाने पर आपदा का एहसास हुआ, राज्य के अधिकारियों ने कार्रवाई की। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी जिलाधिकारियों (जिले के सबसे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी) को निर्देश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हों। नीतीश कुमार ने यह भी निर्देश दिया कि पानी की टंकी की व्यवस्था करें और 31 मई को गर्मी से निपटने के लिए अबाधित ढंग से बिजली की आपूर्ति करें। इसने अंततः सरकारी प्रशासन को कार्रवाई करने के लिए बाध्य कर दिया।
नाम न बताने की शर्त पर अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया, “शुक्रवार दोपहर (31 मई) को एएनएमसीएच प्रशासन ने जिला मजिस्ट्रेट एस एम त्यागराजन के दौरे से पहले छह कूलर लगाए थे। लेकिन तब भी त्यागराजन ने अस्पताल में अव्यवस्था पर नाराजगी जताई और हीटवेव वार्ड के निरीक्षण के दौरान आपातकालीन वार्ड में कूलर की जगह टावर (स्टैंडिंग) एसी लगाने को कहा।”
इससे पहले कुछ नहीं किया गया। एएनएमएमसीएच के एक अन्य कर्मचारी ने डायलॉग अर्थ को बताया कि आपातकालीन वार्ड में एयर कंडीशनर लंबे समय से काम नहीं कर रहा था। हालांकि, अस्पताल के अधीक्षक विनोद शंकर सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हीटवेव से प्रभावित लोगों के इलाज के लिए सब कुछ तैयार है, लेकिन उन्होंने विस्तृत जानकारी देने से इन्कार कर दिया।
2019 के बाद से थोड़ा सुधार
औरंगाबाद के सदर अस्पताल के प्रभारी अधीक्षक आशुतोष कुमार ने बताया कि 250 से 300 लू के मरीजों का इलाज करना पड़ा। उन्होंने कहा, “हमारे पास हीटवेव के लिए विशेष वार्ड में 20 बिस्तर हैं, लेकिन 30 मई को ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ने के बाद हमने अन्य वार्डों के बिस्तरों को एसी, कूलर और सभी उचित सुविधाओं के साथ हीटवेव वार्ड में बदल दिया और बिस्तरों की संख्या बढ़ाकर 100 कर दी। इस कदम से हमें अधिक रोगियों का इलाज कर उन्हें घर भेजने में मदद मिली, हमने स्थिति को अच्छी तरह से संभाला और 2019 जैसी हीटवेव की स्थिति इस बार दोहराई नहीं गई।”
उस साल जून में भीषण गर्मी के दौरान बिहार में कथित तौर पर 180 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। गया जिले के प्रभारी सिविल सर्जन रंजन कुमार सिंह के मुताबिक, हालात में सुधार हुआ है। 104 बिस्तरों वाला वार्ड बनाया गया है और हीटवेव के मरीजों के लिए अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में बिस्तर निर्धारित किए गए हैं।
इस दावे की सच्चाई जानने के लिए डायलॉग अर्थ ने एक रैंडम जांच की और पाया कि गया के बेलागंज और अमास के पीएचसी हीटवेव के लिए समर्पित बिस्तरों के लिए एक एसी, दो कूलर, ओआरएस (ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन) उपलब्ध थे। लेकिन बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ के सीएचसी में एक हीट वार्ड का दौरा करने पर पता चला कि वार्ड बंद था और बिस्तरों पर धूल जमी थी।
नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से जुड़े एक आपदा विशेषज्ञ ने बताया कि हाल के वर्षों में चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में काफी वृद्धि हुई है, लेकिन सरकारी एजेंसियों की तैयारियां ज्यादातर कागजों पर ही रहती हैं।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार को राज्यों में हीट एक्शन प्लान को लागू करने के लिए तत्काल धन आवंटित करने की जरूरत है, उसके बगैर “ऐसा लगता है कि जिला स्तर के अधिकारी और अस्पताल स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं।”
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज ऑन क्लाइमेट चेंज के एसोसिएट प्रोफेसर अब्दुस सत्तार ने चुनौती की गंभीरता की पुष्टि करते हुए कहा कि वनों की कटाई और शहरीकरण के साथ वैश्विक तापमान में वृद्धि, हीटवेव को निरंतर ज्यादा से ज्यादा बदतर बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि बिहार में पिछली बार 2019 में प्रचंड गर्मी के दौरान गया में 45.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था। इस बार 29 मई को यह 47.4 डिग्री सेल्सियस तापमान था, जो 1896 के बाद से अब तक का सबसे अधिक तापमान है।
यह स्टोरी डॉयलॉग अर्थ से साभार ली गई है। डॉयलॉग अर्थ वेबसाइट पर इसे पढने के लिए इस लिंक को क्लिक करें।