ग्राउंड रिपोर्ट: गंगा के कटाव से खत्म हो गए गनियारी के दर्जनों लोगों के घर और खेत, चुनाव में यह हाशिये का मुद्दा

उत्तर बिहार के कई इलाके में हर साल हजारों लोग बाढ़ और कटाव के कारण अपने खेत, घर और अर्जित संपत्तियां गंवा देते हैं। इनमें कुछ उनके द्वारा खेती या नौकरी-रोजगार से अर्जित संपत्तियां होती हैं तो कुछ पैतृक, जिसकी किसी तरह भरपाई नहीं हो पाती। जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए वे कड़ी मेहनत करते हैं और यह वजह उन्हें गरीबी में धकेलती है व पलायन के लिए भी मजबूर करती है।

वैशाली जिले के गनियारी गांव से राहुल सिंह की रिपोर्ट

हाजीपुर (वैशाली) : बिहार के वैशाली जिले के सहदेई बुजुर्ग ब्लॉक के गनियारी गांव के राजबली राय तीन साल पहले बनाए गए अपने पक्का मकान को निराश आंखों से देखते हुए कहते हैं, “इसे बनाने में 15 लाख रुपये खर्च हो गया, जो हमने खेती के पैसे से जुटाया था, जब मकान बनाया तो यह अंदाज नहीं था कि गंगा बहते हुए यहां तक आ जाएगी”। राजबली राय के मकान से मात्र 15 से 20 फीट की दूरी पर तेजी से अक्टूबर के तीसरे सप्ताह भी गंगा नदी तेज कटाव कर रही है और इस वजह से उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं बची है कि अगले कुछ महीने या बहुत अधिक तो फिर अगले साल की बारिश तक उनके घर का अस्तित्व बचेगा।


राजबली राय की इस आशंका की वजह है कि इस साल सितंबर के आखिरी दिनों और अक्टूबर के शुरुआती दिनों में हुए कटाव में इस गांव के दर्जनों कच्चे-पक्के मकान का गंगा में समा जाना। उनके परिवार की बुजुर्ग महिला कुसुम देवी इस संवाददाता से कहती हैं, “बाबू तीन साल पहले बनैले हेलिये और मकान कटल जा रहिले”।

राजबली राय अपने घर के सामने, जिसके बिल्कुल नजदीक गंगा नदी कटाव करते हुए पहुंच गयी है।

गनियारी के 40 वर्षीय अवधेश राय ने इस संवाददाता से कहा, “29 सितंबर को गंगा के कटाव में हमारा घर नदी में चला गया, वह पक्का मकान था, चार साल पहले हमने 10 लाख रुपये लगाकर मकान बनाया था”।


अवधेश राय उस जगह को निराशा से देखते हैं जहां पहले उनका मकान हुआ करता था और अब वह जमीन नदी का हिस्सा है। गंगा में बिलकुल हाल में समाये ऐसे कुछ मकानों के निशान भी नजर आते हैं, जिसके पीलर या दीवार के अंश दिख जाते हैं।


अवधेश बताते हैं कि कुछ साल पहले तक यहां से बहुत दूर गंगा बहती थी और हमलोगों को यह आभाष नहीं था कि गंगा यहां तक आ जाएगी। इस सवाल पर कि क्या सरकार के किसी विभाग या विशेषज्ञ की ओर से कटाव के भावी खतरे के बारे में ग्रामीणों को सतर्क नहीं किया जाता है, वे कहते हैं नहीं ऐसा नहीं है, हमें सरकार की ओर से ऐसी कोई सूचना नहीं मिलती है। ऐसी ही बात कई दूसरे ग्रामीणों ने भी इस संवाददाता से कही।


अवधेश राय गंगा में समाये अपने घर को दुःखी मन से देखते हुए। फोटो: राहुल सिंह।

55 वर्षीय लालबाबू राय बताते हैं कि इस साल 25 सितंबर से इस गांव में कटाव शुरू हुआ और दो अक्टूबर तक वह काफी तेज रहा, हालांकि उसके बाद भी कटाव जारी है, लेकिन उसकी गति थोड़ी कम हुई है। लालबाबू राय चार भाई हैं और सभी कटाव से प्रभावित हैं। अवधेश राय उनके छोटे भाई हैं।


कटाव के बाद कई लोगों ने पास के दूसरे गांव में परिचितों, रिश्तेदारों के यहां शरण लिया है, जहां रिश्तेदारों द्वारा उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए मदद पहुंचायी जा रही है। कई के रिश्तेदार मदद के लिए गांव पहुंचे और समय-समय पा आकर हालचाल ले रहे हैं। हमारी मुलाकात ऐसे ही युवक मंजय राय से हुई, जिनकी बुआ के बथान (पशु रखने की जगह) कटाव में नदी में समा गया है और घर के बिल्कुल करीब कटाव पहुंच गया है, जहां रहना असुरक्षित है। मंजय ने बताया कि उनके फूफा जगेश्वर राय के परिवार को फिलहाल गांव के उत्तर की ओर शिफ्ट किया गया है और हम उनके लिए जरूरी चीजों का प्रबंध कर रहे हैं और यहां आकर हालचाल जानते हैं।

जागेश्वर राय के 25 वर्षीय पुत्र राहुल राय ने बताया, “इस बार नदी करीब एक से डेढ किमी की दूरी तय कर हमारे घर तक आ गयी, मेरे दादा जी बताते हैं कि इससे पहले 1955 में एक बार गंगा गांव से आधा किमी दूर तक आयी थी, लेकिन फिर वापस चली गयी थी। वे कहते हैं कि दादा जी के अनुभवों की वजह से हम थोड़े आश्वस्त थे कि शायद नुकसान नहीं होगा, लेकिन हमारा और पूरे गांव का काफी नुकसान हुआ है”। राहुल के अनुसार, उनके परिवार ने वर्ष 2017-18 में साढे आठ लाख रुपये खर्च कर घर बनाया था, लेकिन अब उसके बचने की उम्मीद नहीं है तो हम उससे जो सामान हो सके निकाल रहे हैं, हमारा बथान तो नदी में चला ही गया। वे यह भी कहते हैं कि अबतक कोई सरकारी सहायता हमें नहीं मिली है।

गनियारी गांव के वार्ड नंबर 13 में कटाव के दृश्य को देखकर हालात को समझा जा सकता है। फोटो: राहुल सिंह।

16 अक्टूबर 2025 को जब इस संवाददाता ने इस गांव का दौरा किया तब भी गंगा से तटों का तीव्र कटाव जारी था और ग्रामीण कटाव की तीव्रता को कम करने का उपाय कर रहे थे।

कटाव की तीव्रता को कम करने के लिए तटों पर या नदी में लकड़ी, झाड़ियों या बांस आदि डाला जाता है जिससे मिट्टी पर पानी की लहरों का असर कम हो और कटाव की गति थोड़ी कम हो जाए। ग्रामीण इस कार्य को स्वयं करते हैं, हालांकि इसके लिए मजदूरी उन्हें सरकार की ओर से मिलता है। ग्रामीणों ने बताया कि यह काम हम खुद का बचाव के लिए करते हैं, लेकिन इसकी मजदूरी सरकार की ओर से मिलती है।


लालबाबू राय कहते हैं, “मेरा पूरा खेत गंगा में समा गया, अब जमीन नहीं है। कुछ साल पहले तक यहां से गंगा कुछ किमी दूर थी, अब यहां बहने लगी है, तीन-चार महीने में यह हमारी बसावट के अधिक करीब आ गयी और हम उजड़ गये”।


कटाव की गति को कम करने के लिए पेड़-पौधे-झाड़िया गांव में इस तरह ग्रामीण लगाते हैं, ताकि पानी से मिट्टी का कटाव कम हो और नुकसान का खतरा टले। फोटो: राहुल सिंह।

ये ग्रामीण गनियारी के वार्ड नंबर 13 के निवासी हैं, जो सबसे अधिक कटाव से प्रभावित हुआ है। लोगों ने यह दावा किया कि कटाव से 100 से अधिक घर यहां से उजड़ गए। स्थानीय ग्रामीण सरकारी मुआवजे को लेकर आश्वस्त नहीं हैं, लेकिन उनका कहना है कि हमें कहा गया है कि कच्चे मकान का 50 हजार व पक्का मकान का डेढ लाख रुपये मुआवजा मिलेगा, लेकिन इतने पैसे से क्या फिर हमारा घर बन जाएगा?


यहां के ग्रामीण अर्जुन राय ने बतया कि उनका घर के बिल्कुल निकट नदी कटाव करते हुए पहुंच गयी है और अब उनके घर के बचने की उम्मीद नहीं है। उन्होंने कहा कि गांव के करीब 100 घर कटाव में चले गए या उससे प्रभावित हुए हैं और करीब 400 लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। लोगों के अनुसार, यहां करीब 850 वोटर हैं और आबादी 1500 के आसपास है।

कटाव को रोकने के लिए सामूहिक रूप से काम करते ग्रामीण।

अर्जुन राय ने कहा कि उनकी करीब ढाई बीघा जमीन इस साल गंगा में चली गई और अब उनके पास जमीन नहीं है जिसमें वे मक्का व गेहूं की खेती कर सकें, हम यही दो फसलें मुख्य रूप से करते हैं। वे बताते हैं कि हमलोग किसान परिवार से हैं और खेती की बचत से हमने अपना घर बनाया है, ज्यादातर लोगों ने इसी तरह यहां मकान बनाया है।


ग्रामीण बताते हैं कि गनियारी, हेवनपुर और जगदीशपुर तीन मौजा यहां हैं और प्रत्येक मौजा 2250 बीघा का है, जिसमें बड़ी मात्रा में खेतिहर भूमि नदी में जा चुकी है। अपने घर के कटाव में नदी में समाने की आशंका के नजर कई ग्रामीण पहले ही उसके ईंट, छड़, बांस, बल्ली या अन्य सामान निकाल लेते हैं, ताकि कम से कम वह बच जाए।


गनियारी गांव राजापाकर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है और यहां से कांग्रेस की प्रतिमा कुमारी निवर्तमान विधायक हैं और वे फिर इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं। बिहार विधानसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध उनके आधिकारिक मोबाइल नंबर पर इस संवाददाता ने उनका पक्ष जानने के लिए फोन किया तो उनके कार्यालय में उनके एक सहयोगी उत्कर्ष मिश्रा से बात हुई। उन्होंने विधायक के चुनावी दौरे में व्यस्त होने की बात कहते हुए बताया कि विधायक प्रतिमा कुमारी ने गांव का दौरा किया था और लोगों के राहत कार्य के लिए जिला प्रशासन को कहा था और दबाव बनाने के लिए धरना-प्रदर्शन पर भी बैठी थीं, जिसके बाद राहत कार्य चलाए गए जो अस्थायी हैं। उत्कर्ष मिश्रा ने अपनी नेता के हवाले से बताया कि कटाव के स्थायी समाधान के लिए वहां बांध बनाना एक उपाय हो सकता है और वह राघोपुर से बनाना होगा जो कई किमी लंबा होगा और उसके लिए बड़ी राशि राज्य सरकार को मंजूर करनी होगी।

पानी के उच्च स्तर व कटाव से ध्वस्त हुए घर के मलवे से गुजरते लोग।

बहरहाल, कटाव की वजह से यहां के लोगों की आजीविका का साधन उनके खेत गंगा में समा गए और खेती के माध्यम से उनके द्वारा अर्जित संपत्ति उनका घर ध्वस्त हो गया और वे इस मुश्किल हालात में फिर से जीवन को पटरी पर लाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।


बिहार में और खासकर उत्तर बिहार में कई नदियां कटाव करती हैं, जिससे बड़ी संख्या में साल-दर-साल लोगों के खेत, मकानों व उनके द्वारा अर्जित संपत्ति का नुकसान होता है। हालांकि यह मुद्दा चुनाव का प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाता।


बिहार की राजधानी पटना के उत्तर दिशा में गंगा के उस पार स्थित वैशाली जिले का जिला मुख्यालय व मुख्य शहर हाजीपुर गंडक व गंगा नदी के किनारे बसा है। यानी यह जिला गंगा के उत्तरी तट पर स्थित है।

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