जलवायु व मानव निर्मित आपदा से जूझते कोशी को शिक्षा से रोशन करने की छोटी-सी कोशिश

कोशी क्षेत्र जहां बाढ़ की वजह से बच्चों की शिक्षा बाधित होती है, वहां उनकी पढाई के लिए छोटी पहल के साकारात्मक नतीजे दिख रहे हैं। सुपौल शहर में स्थित लाइब्रेरी जहां बड़े बच्चों के लिए मददगार साबित हो रही है, वहीं तटबंध के बीच के बच्चे जीवनशाला में आरंभिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।


सुपौल: बिहार देश का सबसे अधिक बाढ़ के खतरे वाला राज्य है और बिहार में बाढ़ के सबसे अधिक खतरे वाला इलाका है – कोशी नदी का क्षेत्र। बाढ़ के खतरों व संसाधनों की कमी की वजह से इस इलाके के बच्चों व युवाओं को पढाई में कई दिक्कतों से गुजरना होता है। जैसे – साल के कुछ महीने स्कूल न जा पाना, स्कूल से ड्राप आउट हो जाना या किसी तरह शहर पहुंच गए तो संसाधनों की कमी जैसी बाधाएं। ऐसे में कोशी के बच्चों के लिए शैक्षणिक माहौल उपलब्ध कराने के लिए दो पहल की गई – एक सुपौल शहर में कोशी यूथ लाइब्रेरी की स्थापना और दूसरा कोशी नदी की अलग-अलग धाराओं के बीच स्थित गांवों में कोशी जीवन शाला का संचालन।


कोशी यूथ लाइब्रेरी की अवधारणा तब सामने आयी जब साल 2021 में नदी पर रिसर्च करने वाले राहुल यादका सुपौल जिले में अपने रिसर्च कार्य के लिए पहुंचे और शोध कार्य के दौरान कोशी नव निर्माण मंच के साथ इनका इस विषय पर संवाद हुआ। कोशी नव निर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव व कोशी नदी व वहां के सामाजिक जीवन के शोधार्थी राहुल यादुका ने आपसी विमर्श में यह महसूस किया कि कोशी क्षेत्र के बच्चों के लिए एक ऐसी लाइब्रेरी होनी चाहिए जिसमें वे बैठ कर शांति से पढाई कर सकें और उन्हें वहां सीटिंग स्पेस के साथ, इंटरनेट सुविधा, कुछ किताबें, अखबार भी मिल सके।

कोशी यूथ लाइब्रेरी में लड़कियों भी पढने आती हैं। उनके लिए सीटिंग स्पेस तय किया गया है।


राहुल यादुका कहते हैं, “हमने कोशी यूथ लाइब्रेरी की शुरुआत एक छोटे से कमरे से की, जिसमें चार छोटे टेबल लगाए और चार-पांच अखबार रखा। यह छात्र-छात्राओं के लिए पहला सीटिंग स्पेस था”। राहुल बताते हैं, जिस जगह हमने पुस्तकालय की शुरुआत की, उसके बगल में बंधन बैंक था, जिसके खाली होने पर हमने वह जगह लाइब्रेरी के लिए ले ली। जगह बड़ी हुई तो उसमें बैठने की जगह बढाई गई। किताब-कंप्यूटर का प्रबंध किया गया।
महेंद्र यादव व राहुल यादुका दोनों बताते हैं कि वर्तमान में करीब 40 छात्र-छात्रा कोशी यूथ लाइब्रेरी में पढाई के लिए आते हैं, जिसमें आठ से 10 लड़कियां हैं। कुछ नीट-जेइइ की तैयारी वाले छात्र भी आते हैं तो कुछ टीचर ट्रेनिंग वाले। आने वाले छात्र-छात्राओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाता और पुस्तकालय का संचालन स्वयं छात्र करते हैं, जैसे अलग-अलग पाली के लिए अलग-अलग लड़के चाभी रखते हैं और समय पर लाइब्रेरी खेल दी जाती है।

लाइब्रेरी में फ्री इंटरनेट सुविधा मिलती है, जिससे बच्चों को पटना या अन्य दूसरी जगहों से ऑनलाइन क्लास ज्वाइन करने में सुविधा होती है। लाइब्रेरी में आने वाला हर छात्र खुद अनुशासन का ख्याल रखता है और पीने गिरने भर की भी बेवजह आवाज नहीं होती।

कोशी यूथ लाइब्रेरी।


महेंद्र यादव कहते हैं, “इस लाइब्रेरी में वैसे बच्चे मुख्य रूप से आते हैं जिनका गांव कोशी तटबंध के बीच है और वे अब कोशी पीड़ितों के लिए बनाई गई पुनर्वास कॉलोनियों में सुपौल शहर या उसके आसपास के क्षेत्र में रहते हैं। इस लाइब्रेरी के लिए जरूरी सामान जन सहयोग से मिल जाता है। नदी अधिकार कार्यकर्ता रंजीव जी के निधन के बाद उनकी किताबें लाइब्रेरी में लायी गयीं, इसी तरह अनिल सदगोपाल ने किताबें दी। राहुल यादुका लाइब्रेरी के कमरे का किराया देने में तो कोई और साथी किसी और कार्य में सहयोग करता है”।


राहुल यादुका कहते हैं, “हमारे लिए यह देखना महत्वपूर्ण होता है कि लड़कियां भी लाइब्रेरी आती हैं और पढाई करती हैं। पिछले दिनों लाइब्रेरी में यहां की एक बहू ने पढाई के लिए आना शुरू किया। इसके दो महत्वपूर्ण संकेत हैं – एक यह कि ससुराल वाले इतने सहज और आश्वस्त हैं कि वे अपनी बहू को भी यहां पढाई के लिए आने देने को तैयार हैं, दूसरा उस लड़की में पढाई की ललक है”।


तटबंध के बीच के गांवों में कोशी जीवनशाला की पहल


कोशी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव कहते हैं, “कोशी यूथ लाइब्रेरी शहर में की गई पहल है, लेकिन हमलोगों की कोशिश से तटबंध के अंदर के कुछ गांवों में जीवन शाला का भी संचालन हो रहा है”। दरअसल, यह जीवन शाला छोटे बच्चों के लिए पाठशाला है। महेंद्र यादव बताते हैं, “कोशी के अंदर के गांवों में जीवन शाला की नींव 2016 में रखी गई थी। हमने वहां काम करते हुए देखा कि साक्षरता दर कम है, खासकर लड़कियों को पढने में दिक्कत होती थी, मुसहर बच्चे पढाई से वंचित रह जाते थे, ऐसे में हमने यह पहल की”।

खोखनहा गोठ में संचालित जीवनशाला।

सुपौल जिले में कोशी तटबंध के भीतर तीन ब्लॉक के छह गांवों में और भागलपुर जिले के बिहपुर ब्लॉक के गोविंदपुरी में एक जीवनशाला का संचालन होता है। सुपौल जिले में किशनपुर ब्लॉक के खोखनहा गांव में तीन, परसाही में एक और मड़ौना ब्लॉक के एकेडरा में एक व निर्मली ब्लॉक की सिकरहटा गांव में एक जीवनशाला संचालित हो रही है। प्रियंका, मनीष कुमार, तुलसी ऋषिदेव ऐसे युवा हैं, जो इन गांवों में बच्चों को पढाते हैं। इसके ऐवज में संगठन की ओर से उनके लिए एक मानदेय का प्रबंध किया जाता है।

खोखनहा मन्नाटोला में संचालित जीवनशाला।


इन शिक्षकों में एक 31 वर्षीय मनीष कुमार ने बताया कि वे खोखनहा गांव के खोखनहा गोठ में बच्चों को पढाते हैं। यहां की जीवनशाला में 100 से अधिक बच्चे पढने आते हैं जो दूसरी से चौथी कक्षा के छात्र होते हैं। यहां पढने वाले 60 प्रतिशत बच्चे लड़कियां हैं। इसकी वजह पूछने पर मनीष कहते हैं, “यह नदी का इलाका है, सामाजिक वजहों से लड़कियों के लिए नदी की धारा पार कर स्कूल तक जाना अधिक मुश्किल होता है, इसलिए वे जीवनशाला पर पढाई के लिए ज्यादा आश्रित हैं”। मनीष बताते हैं कि इस वक्त दिन के समय में है, इसलिए जीवनशाला शाम चार बजे से साढे छह बजे तक चलती है, जब स्कूल सुबह संचालित होता है तो जीवनशाला थोड़ा पहले लगती है।

सिकरहटा में संचालित जीवनशाला।

मनीष खुद स्नातक हैं और कहते हैं कि बच्चों को पढाना उनके लिए अच्छा अनुभव है, इससे इस मुश्किल इलाके में शिक्षा का स्तर बढ रहा है, खासकर लड़कियों को लाभ हो रहा है।

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