बिहार इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की दिशा में किस तरह आगे बढ़ रहा है और उसकी चुनौतियां क्या हैं?

बिहार में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में उच्च पूंजी लागत, सीमित चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर और बैटरी की उपलब्धता जैसी बाधाएं हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहन नीति के ज़रिये राज्य सरकार इससे निबटने के लिए प्रयास कर रही है।

बिहार से राहुल सिंह की रिपोर्ट

उमाशंकर साह बिहार के शिवहर जिले के निवासी हैं और इलेक्ट्रिक ऑटो चलाकर अपनी आजीविका अर्जित करते हैं। उमाशंकर बताते हैं कि सामान्य दिन में खर्च काट कर 800-900 रुपये तक, और कोई खास दिन रहने पर डेढ-दो हजार रुपये तक भी कमाई हो जाती है। ताजा आर्थिक सर्वे के अनुसार, कई आर्थिक पैमानों पर शिवहर जिला अन्य जिलों से पीछे है, जहां रोजगार और स्थानीय स्तर पर आजीविका कमाने के विकल्प बहुत कम हैं।

ऐसे में कभी खुद एक प्रवासी मजदूर रहे उमाशंकर ने इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा को अपनी आजीविका का आधार बनाया है। साह अपने नये रोजगार से खुश हैं, लेकिन उनकी चिंता ऑटो की चार्जिंग को लेकर है। वे कहते हैं कि नई गाड़ी एक बार चार्ज करने पर 120 किमी तक चलती है और उन्हें हर दिन दो बार बैट्री चार्ज करना होता है और यह सुविधा अभी उनके लिए सिर्फ घर पर ही है। बैटरी कम चार्ज रहने पर दूर की सवारी मिले तो सोचना पड़ता है क्योंकि अभी चार्जिंग स्टेशन की सुविधा नहीं है।

बिहार की इलेक्ट्रिक वाहन नीति क्या है?

बिहार में किसी भी श्रेणी के इलेक्ट्रिक वाहन (इलेक्ट्रिक व्हीकल- ईवी) के लिए सार्वजनिक चार्जिंग प्वाइंट वर्तमान में सबसे अहम समस्या है। हालांकि इलेक्ट्रिक वाहन नीति में चरणबद्ध रूप से शुरुआती चरण में चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है। सार्वजनिक भवनों और संपत्ति पर पांच साल में दो चरणों में 277 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही, इस नीति में शुरुआती चरण में वाहनों की खरीद पर आर्थिक सहायता या सब्सिडी और रजिस्ट्रेशन में 75% तक की छूट का प्रावधान किया गया है।

बिहार में पांच दिसंबर, 2023 को जारी की गई इलेक्ट्रिक वाहन नीति अगले पांच सालों के लिए प्रभावी है। इसके तहत बिहार ने एक ईवी इकोसिस्टम विकसित करते हुए 2028 तक कुल नए रजिस्ट्रेशन वाले वाहनों में ईवी की हिस्सेदारी 15% और 2030 तक 30% करने का लक्ष्य रखा है। फिलहाल, यह 6.85% है जो देश में नए वाहनों में ईवी की हिस्सेदारी 6.40% से थोड़ा आगे है।

इस पॉलिसी के जारी होने के बाद बिहार सरकार के परिवहन विभाग ने एक इलेक्ट्रिक व्हीकल सेल का गठन किया है और पॉलिसी के तहत सब्सिडी देने के लिए एक वेब पोर्टल तैयार किया जा रहा है।

ईवी थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स में ई-मोबिलिटी स्पेशलिस्ट अर्चित फर्सुले कहते हैं, “बिहार की इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी में बसों और रिक्शा सहित सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण पर जोर दिया गया है और इसके प्रोत्साहन के लिए 56.54 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान भी किया गया है।”

अर्चित कहते हैं, “इलेक्ट्रिक व्हीकल बिहार की अर्थव्यवस्था, परिवहन व्यवस्था और पर्यावरण में अहम योगदान कर सकते हैं। ईवी विनिर्माण उद्योग, रखरखाव और चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से रोजगार के अवसरों का सृजन होगा। ईवी विनिर्माण और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश आकर्षित करने से बिहार के औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा मिल सकता है। पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधनों पर निर्भरता कम होने से ईंधन लागत में भारी बचत होगी। इससे राज्य में वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है और वायु गुणवत्ता में सुधार संभव है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के अनुसार, भारत का जीवाश्म ईंधन की वजह से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वर्ष 2021 में योगदान लगभग 6.8% रहा।” ये साल 2000-2021 में 156% बढ़ा है।

इलेक्ट्रिक बसें कुशल, स्वच्छ और शांत परिवहन प्रदान करके सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर बना सकती हैं। बिहार ईवी नीति का उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक बसों को तैनात करना, कनेक्टिविटी में सुधार करना और निजी वाहनों पर निर्भरता कम करना है।

मुजफ्फरपुर बिहार का एक प्रमुख शहर है, जहां ईवी चार्जिंग प्वाइंट लगे हैं और पटना-दरभंगा व पटना-मुजफ्फरपुर के बीच चलने वाले इलेक्ट्रिक बसों को चार्ज किया जाता है। फोटो क्रेडिट – आईडीआर/राहुल सिंह।

इलेक्ट्रिक बसों का परिचालन

बिहार सरकार की एजेंसी बिहार राज्य पथ परिवहन निगम केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की फेम-2 स्कीम के तहत राज्य में 25 इलेक्ट्रिक बसों का परिचालन कर रही है।

इलेक्ट्रिक बसें दो श्रेणी की हैं– एक नौ मीटर और दूसरी 12 मीटर। इनका लोकप्रिय नाम 9एम और 12एम बसें हैं। हालांकि अत्यधिक लागत और रियायती किराये की वजह से इन बसों को चलाया जाना इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ाने के लिए की गई एक खर्चीली कवायद है। बिहार राज्य पथ परिवहन निगम (बीएसआरटीसी) के एक अधिकारी ने बताया, “नौ मीटर बसों के परिचालन में 79 रुपये प्रति किमी खर्च आता है जबकि 12 मीटर बस के परिचालन में 84 रुपये प्रति किमी खर्च आता है। जबकि इन दोनों प्रकार की बसों से करीब 40 रुपये प्रति किमी की दर से राजस्व संग्रहण होता है।” इन बसों का स्वामित्व इसकी निर्माता कंपनी अशोका लिलैंड के पास है और ड्राइवर भी उसी कंपनी का होता है जिसका फेम-2 के तहत परिवहन निगम परिचालन करता है। इन बसों को चलाए जाने के खर्च और इनसे होने वाली कमाई के अंतर की भरपाई केंद्र व परिवहन विभाग की सब्सिडी के जरिए होती है। बस के प्रति किमी परिचालन के हिसाब से बीएसआरटीसी बस ऑपरेटर कंपनी को भुगतान करता है और यात्री परिवहन से हासिल होने वाले राजस्व का काम वह खुद संभालता है।

अर्चित फर्सुले कहते हैं, “यह बात सही है कि इलेक्ट्रिक बसों की अधिक पूंजी लागत इसे व्यापक रूप से अपनाए जाने में एक बाधा है, लेकिन ऐसी कई रणनीतियां हैं जो इनकी लागत को कम कर सकती हैं, जैसे– थोक खरीद यानी कई शहरों या राज्यों में मांग को एकत्रित करके, सरकार निर्माताओं के साथ बेहतर कीमतों पर बातचीत कर सकती है।“

सार्वजनिक-निजी भागीदारी के ज़रिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को शामिल करने से वित्तीय बोझ को साझा करने में मदद मिल सकती है। सीधे खरीद की बजाय, सरकार ई-बसों को लीज पर लेने पर विचार कर सकती है। ग्रीनबॉन्ड, जलवायु निधि और रियायती ऋण जैसे नए वित्तीय तंत्रों का उपयोग करके कम ब्याज दरों और अनुकूल शर्तों पर ई-बस खरीद के लिए आवश्यक पूंजी प्रदान की जा सकती है।

इस संबंध में अर्चित कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विस लिमिटेड (सीइएसएल) की उस केस स्टडी का उदाहरण देते हैं, जिसमें भारत के प्रमुख महानगरों में इलेक्ट्रिक बसों की एक साथ खरीद करने से परिचालन लागत व सरकार की प्रति किमी सब्सिडी को कम करने में सफलता मिली है।

इलेक्ट्रिक बसों की परिचालन लागत, उसकी ऊंची कीमत और अधिक रखरखाव लागत की वजह से भले ही अधिक हो लेकिन ईंधन लागत के स्तर पर यह अपेक्षाकृत काफी सस्ती है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सीएनजी व डीजल बसों के एक किमी परिचालन पर 23.50 रुपये की ईंधन लागत आती है जबकि इलेक्ट्रिक बस को चार्ज करने की लागत प्रति किमी मात्र 14 रुपये आती है।

लंबे रूट में चलने वाली इलेक्ट्रिक बसों का किराया डीजल से चलने वाली एसी बसों के बराबर है और ग्राहक से कोई अतिरिक्त किराया नहीं वसूला जाता है। लेकिन जगह-जगह फिलहाल चार्जिंग स्टेशन न होने के कारण बस बीच रास्ते एक दूसरी चार्ज हुई बस से बदल दी जाती है। यात्रियों ने अपना अनुभव साझा करते हुए इसमें सफर करने को अधिक सुकूनदायक बताया। पटना के दानापुर के रहने वाले 40 वर्षीय विनोद कुमार ने कहा, “इलेक्ट्रिक बसों में सफर बेहतर है और हम इसका इंतजार करते हैं। किराये में भी बहुत फर्क नहीं है।“

केंद्र सरकार ने पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर 10 हजार इलेक्ट्रिक बसों के परिचालन के लिए 16 अगस्त 2023 को पीएम ई-बस सेवा योजना शुरू की। इस योजना के तहत पहले चरण में 10 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को 3600 इलेक्ट्रिक बसें आवंटित की गई हैं, जिसमें बिहार को 400 इलेक्ट्रिक बसें आवंटित की गई हैं। केंद्र सरकार इस योजना के तहत पूरे देश में बसों के परिचालन पर 10 साल के लिए सहायता देगी जिसके तहत 6400 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे।

फिलहाल राजधानी पटना में बसों के लिए एकमात्र चार्जिंग स्टेशन है, जहां पर एक साथ कई बसें चार्ज की जा सकती हैं। मुजफ्फरपुर, राजगीर जैसे शहरों में चार्जिंग प्वाइंट है।

इलेक्ट्रिक दोपहिया व कार का बाजार

पटना में एक टाटा मोटर शोरूम के सेल्स टीम हेड पवन नागपाल कहते हैं, “हमारी कंपनी पांच साल से ईवी सेक्टर में है और इसमें लगातार विकास हो रहा है।“ वे आगे जोड़ते हैं कि “हमारे यहां बिकने वाली 10 में दो से तीन गाड़ियां ईवी होती हैं। ग्राहकों का आकर्षण ईवी की ओर बढ़ रहा है और सरकार की स्कीम से भी वे प्रभावित होते हैं, बिहार सरकार द्वारा जारी की गई ईवी पॉलिसी से हम आशान्वित हैं।”

हालांकि यह ट्रेंड सिर्फ राजधानी पटना का है और राज्य के दूसरे शहरों के बारे में ऐसे दावे नहीं किये जा सकते हैं क्योंकि बिहार में कुल इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में कार की बिक्री आधे प्रतिशत से भी कम है।

इसी तरह पटना के एक दोपहिया ईवी शो रूम एथर के सेल्स मैनेजर प्रियांशु सिंह ने कहा, “भारत सरकार के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम के तहत वाहन की खरीद पर 10 हजार रुपये की सब्सिडी फिलहाल मिल रही है। बिहार सरकार की ईवी पॉलिसी आने के बाद उसके पोर्टल के जरिये ग्राहकों का आकर्षण बढ़ने की संभावना है।“ प्रियांशु मानते हैं कि सेल्स बढ़ाने के लिए चार्जिंग प्वाइंट या स्टेशन का नेटवर्क जरूरी है।

एक ईवी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वित्त वर्ष 2023-2024 में ईवी बिक्री में 5.5% हिस्सेदारी के साथ बिहार पांचवें नंबर पर है। दक्षिणी-पश्चिमी राज्यों में जहां दो पहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की अधिक बिक्री का ट्रेंड दिखता है; वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश व असम जैसे राज्यों में पैसेंजर ई-थ्री-व्हीलर की बिक्री का अनुपात ज्यादा है। इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर का पहले से ही बिहार, उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। बिहार में दो पहिया वाहनों (13.87%) की तुलना में पैसेंजर ई-थ्री-व्हीलर (83.72%) की बिक्री छह गुना अधिक है।

हालांकि आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि वित्त वर्ष 2018 की तुलना में वित्त वर्ष 2024 तक बिहार में इलेक्ट्रिक व्हीकल का बेड़ा 39 गुना बड़ा हो चुका है।

ईवी की चुनौतियां और संभावनाएं

इलेक्ट्रिक व्हीकल के अलग-अलग सेगमेंट के लिए चुनौतियां भी अलग-अलग हैं। जैसे दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहन के लिए उसकी निर्माता कंपनियों द्वारा चार्जिंग स्टेशन का निर्माण शहरी क्षेत्र में ही किया गया है, ऐसे में शहर से बाहर लंबी दूरी के लिए उन्हें लेकर नहीं जाया जा सकता। यही स्थिति इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहनों के साथ है, जिसके चालक की मजबूरी है कि वे उसे घर पर ही चार्ज कर सकते हैं। बिहार में इलेक्ट्रिक बसों के लिए अभी पटना में एकमात्र चार्जिंग स्टेशन है, जबकि मुजफ्फरपुर व राजगीर इलाकों में उसके लिए चार्जिंग प्वाइंट हैं।

चार पहिया व दो पहिया वाहनों की सेल्स टीम के सदस्यों से बात करने के बाद यह तथ्य उभर कर सामने आया कि उन्हें पेट्रोल-डीजल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के लिए ग्राहकों की अधिक समझाइश करनी पड़ती है और इसकी वजह उनके प्रोडक्ट में कोई इश्यू होना नहीं बल्कि चार्जिंग स्टेशन नेटवर्क की कमी होना है। हालांकि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ाने के लिए कुछ चुनिंदा शहरों में इसके लिए सघन अभियान चलाने व स्कूलों को ईवी अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने जैसे सुझाव भी हैं।

अर्चित फर्सुले कहते हैं, “बिहार में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी कुछ चुनौतियों के बावजूद रोमांचक राह पर है। उच्च पूंजी लागत, सीमित चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर और बैटरी की उपलब्धता से जुड़ी समस्याएं प्रमुख बाधाएं हैं, लेकिन सरकार इससे निबटने के लिए प्रयास कर रही है। नई नीति की एक प्रमुख विशेषता स्थानीय बैटरी उत्पादन को बढ़ावा देना है, जो भारत में हाल ही में हुई लिथियम खोजों का लाभ उठाएगा और जिससे लागत और आयात पर निर्भरता कम होगी।“ लिथियम ऑयन बैटरी की क्षमता लेड एसिड बैटरी से ज्यादा होती है– जिन पर ज्यादातर ईवी परिवहन चलते थे और आज भी चलते हैं। जहां लेड एसिड बैटरी को रीसाइकल करने में पर्यावरण और स्वास्थ्य को बहुत हानि है, वहीं लिथियम की रिसाइकलिंग रेट 90 से 95% है, लेकिन ये बायोडिग्रेडेबल नहीं है। अगर इसे रीसाइकल नहीं करके ऐसे ही जमीन में छोड़ देंगे तो यह उसे बंजर कर सकता है, और इसका निबटान एक बड़ी चुनौती है।

यह स्टोरी आईडीआर हिंदी से साभार ली गई है, जिसे अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के रिन्यूएबल एनर्जी ग्रांट के तहत कवर किया गया है।

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