केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना का विरोध क्यों कर रहे हैं पन्ना के आदिवासी?

सतीश भारतीय

मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में लोग केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना का विरोध कर रहे हैं। यह विरोध कई व्यापक प्रदर्शनों का रूप ले चुका है। ऐसे ही ‌परियोजना के विरोध में 16 दिसम्बर 2024 को एक बड़ा प्रदर्शन किया गया। इस विरोध प्रदर्शन में लोगों ने परियोजना की विस्थापन प्रक्रिया और प्रशासन के अलोकतांत्रिक रैवये के खिलाफ सवाल उठाये।

क्या है केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना ?


केन-बेतवा नदी जोड़ ‌परियोजना में केन नदी का पानी बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाना है। 22 मार्च, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में केन-बेतवा लिंक परियोजना के कार्यान्वयन हेतु मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2024 को छतरपुर (खजुराहो) में आयोजित एक समारोह में इस परियोजना की आधारशिला रखी। परियोजना की लागत 2020-21 के मूल्य स्तर पर 44,605 करोड़ रुपये है। इसे 8 वर्षों में पूरा किया जाना है।

परियोजना के पहले चरण में पन्ना जिले में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा दौधन बांध प्रस्तावित है। जो मौजूदा गंगऊ वियर से लगभग 2.5 किमी ऊपर की ओर है। दौधन जलाशय के कारण कुल 9,000 हेक्टेयर भूमि डूब में आएगी, जिसमें पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) कोर की 4,141 हेक्टेयर, पीटीआर बफर की 1,314 हेक्टेयर और 10 गांवों की 2,171 हेक्टेयर भूमि शामिल है। इन गांवों में लगभग 1,913 परिवार प्रभावित होंगे।

केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना प्रभावित ग्रामीणों की मांगें


केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के विरोध में पन्ना के आदिवासियों द्वारा कई मांग पत्र प्रशासनिक अधिकारियों को‌ सौंपे गए हैं। हाल में 16 दिसम्बर 2024 को जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन द्वारा राष्ट्रपति के नाम से एक ज्ञापन पत्र जिला कलेक्टर पन्ना को सौंपा गया। इस पत्र में परियोजना से प्रभावित पन्ना के आठ गांवों कूडन, गहदरा, रक्सेहा, कोनी, कटारी, बिल्हटा, खमरी और महरा को उचित मुआवजा ना दिए जाने और पुनर्वास योजना से लोगों को वंचित किये जाने का उल्लेख किया गया है। पत्र में संगठन ने कहा है कि परियोजना से संबंधित पूरी जानकारी सरपंच, जनप्रतिनिधियों और लोगों बताये बिना उन्हें गांवों से हटाया जा रहा है।

ज्ञापन में आगे उल्लेख किया गया है कि, मुआवजा राशि एवं विस्थापन प्रक्रिया पूर्ण किए बिना प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा एनओसी जारी करके वन विभाग को विस्थापित क्षेत्र स्थानांतरित कर दिया है। जिससे कृषि और वन से जुड़ी आय पर रोक लगा दी गयी है। ऐसे में लोग बेरोजगार हो गए हैं।

संगठन ने मांग की है कि, परियोजना की वितरण राशि पैकेज में 18 वर्ष के वयस्कों को भी शामिल किया जाए। परियोजना में विस्थापन प्रक्रिया का पुनः सर्वे करके राशि वितरित की जाए। विस्थापितों को भूमि आवंटित की जाए। विस्थापितों के पुनर्वास में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी अन्य सुविधाएं मुहैया करवायी जाएं।

ऐसा ही एक मांग पत्र जय आदिवासी युवा शक्ति ने कलेक्टर के नाम दिनांक 08 अक्टूबर 2024 को लिखा। इस पत्र में संगठन ने मांगे ना माने जाने की स्थिति में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की बात कही है। इससे पहले भी 18 सितम्बर 2024 को केन बेतवा नदी जोड़ योजना से प्रभावित लोग पन्ना जिला कलेक्टर को एक मांग पत्र दे चुके हैं। इस पत्र के माध्यम प्रभावित ग्रामीणों ने पैकेज और मकान राशि का भुगतान ना दिए जाने तक तक प्रभावित क्षेत्र में खेती करने की मांग की गई। पत्र में सभी विस्थापित ग्रामवासियों को बसाने और सुविधाएँ देने की मांग भी रखी।

परियोजना के विरोध में धरना प्रदर्शन करते स्थानीय लोग।

केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना का क्यों हो रहा विरोध ?


केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना को लेकर जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के पन्ना जिला अध्यक्ष मुकेश कुमार गौंड कहते हैं कि, “परियोजना के तहत पन्ना जिले के 8 गांव को प्रभावित घोषित किया गया है। इन गांवों की भूमि अर्जित की जा रही है। मगर, हमें कहीं ऐसा नहीं लग रहा कि इन सभी गांवों की भूमि अर्जित करने की जरूरत थी। क्योंकि, ना ही इन गांवों से नहर निकाली जा रही है। ना ही ये गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इन गांवों को शासन-प्रशासन की मिलीभगत से विस्थापित किया जा रहा है।“ ऐसी सूचना है कि इन गांवों की जमीन को प्रतिपूरक पौधारोपण (कम्पेन्सेटरी प्लांटेशन) के लिए लिया जा रहा है।

मुकेश गौंड आगे बयां करते हैं कि, “प्रभावित गांव 90 प्रतिशत आदिवासी क्षेत्र हैं। इन गांवों में लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। लेकिन, इन लोगों को सुविधाएं देने की वजाए विस्थापित किया जा रहा है। परियोजना में आदिवासियों को कुर्बानी देनी पड़ रही है। हम पहले विकास से वंचित हैं। ऐसे में परियोजना से हमारा क्षेत्र तहस-नहस हो जायेगा।“

मुकेश आगे व्यक्त करते हैं कि, “मेरा अनुभव है कि पन्ना में जितने भी बांध बनाए गये, उसमें ज्यादातर बांध आदिवासियों की जमीन पर बनाए गए हैं। इन बांध योजनाओं में बहुत लोगों को मुआवजा नहीं मिला है। बहुत लोगों को बहुत कम मिला है। जिससे उनका जीवन विखंडित हो गया है।“

पन्ना जिले के कटारी, बिल्हटा पंचायत के जनपद सदस्य दयाराम मराबी परियोजना को लेकर हमें बताते हैं कि, “इस परियोजना में सरकार हमारी मुआवजा, निवास जैसी कई मांगों को स्वीकार नहीं रही है। यदि यह परियोजना बन गई तो हमें कई परेशानियां भोगनी पड़ेगी‌। आदिवासी मारे-मारे फिरेगें। परियोजना से बहुत कुछ बर्बाद हो जायेगा।“

दयाराम आगे कहते हैं कि, “सोचिए! परियोजना के कार्य प्रारंभ होने से लोगों की बदहाली शुरू हो गयी है। जब परियोजना का निर्माण पूरा हो जायेगा, तब लोगों की हालत कैसी होगी? परियोजना से लोगों के संसाधन, पशुओं से लेकर पर्यावरण सब को बहुत हानि होगी। इस हानि का भुगतान कोई नहीं कर सकता।”

परियोजना पर अपने विचार रखते हुए घाघरा ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच रामकिशोर (बबलू) यादव बताते हैं कि, “परियोजना में विस्थापितों को 12 लाख 50 हजार की पैकेज राशि दी जा रही है। मेरा दावा है कि, इतनी कम राशि से आदिवासी बर्बाद हो जायेगा। परियोजना से पर्यावरण, आदिवासी संस्कृति वन्य जीव-जंतु खत्म हो जायेगें।”

रामकिशोर (बबलू) यादव आगे चेतावनी देते हुए बोलते हैं कि, “परियोजना का हम लगातार विरोध करते रहेंगे। 25 दिसंबर को परियोजना की आधारशिला रखने प्रधानमंत्री जी छतरपुर आ रहे रहें। इस दिन हम अपने घरों में चूल्हा नहीं जलाएंगे और परियोजना को लेकर अनशन करेंगे। यह परियोजना सार्वजनिक जीवन के हित में नहीं है।”

केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना का पर्यावरण पर प्रभाव


अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर एक रिसर्च की है। इस रिसर्च में बताया गया है कि, इस परियोजना के कारण पन्ना बाघ अभ्यारण (पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर)) का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब जाएगा, जिससे रिजर्व में स्थित बाघों के आवास क्षेत्र का 58.03 वर्ग किमी (10.07%) का प्रत्यक्ष अनुमानित नुकसान होगा। इसके अतिरिक्त उनके आवास के विखंडन एवं संपर्क टूटने से मुख्य बाघ क्षेत्र का 105.23 वर्ग किमी हिस्सा अप्रत्यक्ष तौर से प्रभावित होगा। इससे बाघों के साथ-साथ अन्य वन्य जीवों चीतल, सांभर आदि खतरे में हैं। साथ ही 20 लाख पेड़ों का नुकसान होगा। (वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (फारेस्ट एडवाइजरी कमेटी) की एक मीटिंग के मिनट्स के अनुसार इस परियोजना के लिए संभवत 46 लाख पेड़ों को काटा जायेगा।) राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) पहले ही इस पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुकी है।

इस परियोजना को लेकर हमने पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट कार्यरत वैज्ञानिक अनिल गौतम से बातचीत की। कहते हैं कि, “केन-बेतवा प्रोजेक्ट में मुख्य बिंदु यह रखा गया था कि, केन में पानी अधिक है और बेतवा में विचार करने योग्य है। यह मान्यता ही ग़लत है‌। क्योंकि दोनों नदियों के बेसिन में वर्षा दर समान है। केन नदी जल का अधिक दोहन नहीं हुआ है जबकि बेतवा नदी के जल का अत्यधिक दोहन हुआ है। इसलिए यह कहा जाता है कि, केन नदी में पानी अधिक है। जबकि, यह बात पूरी तरह से गलत है।”

अनिल गौतम आगे बताते हैं कि, “परियोजना से सटा हुआ पन्ना टाईगर रिजर्व भी है। उसका क्षेत्र भी परियोजना में डूब रहा है। वहीं, परियोजना से केन घड़ियाल सेंचुरी भी प्रभावित होगी। इसके अलावा परियोजना क्षेत्र में पहले से बने सिंचाई नहर की प्राथमिकता भी खत्म होगी।“

पर्यावरणविद सुभाष सी पांडे परियोजना पर‌ अपनी चिंता व्यक्त करते हुए बताते हैं कि, “नदियों का अपना स्वभाव होता है। उनका स्वभाव क्षेत्र की मिट्टी, वनस्पति, आवोहवा से बनता‌ है। यही कारण है कि, एक नदी के जीव-जंतु और वनस्पति दूसरे नदी के जीव-जंतु और वनस्पति से भिन्न होते हैं। ऐसे में केन-बेतवा जैसी नदियों को जोड़ने से इन नदियों आश्रित पारिस्थितिकी तंत्र का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा।” सुभाष सी पांडे आगे उल्लेख करते हैं कि इस नदी जोड़ योजना से टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा जिससे बाघों के विकास और व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

(सतीश भारतीय मध्यप्रदेश से एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, उनका यह आलेख मूल रूप से एसएनडीआरपी पर प्रकाशित हुआ था, वहां पर इसे पढने के लिए इस लिंक को क्लिक करें। सतीश भारतीय से उनके इमेल sat2018ish@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *