ओडिशा : जलवायु चुनौतियों से निबटने मैंग्रोव संरक्षण के कार्य में जुटी महिलाओं की कहानी

पुरी से राखी घोष की रिपोर्ट

पुरी (ओडिशा): 45 वर्षीया नलिनी कंडी अब अपने गांव झाड़लिंग को चक्रवाती तूफानों और बाढ़ से बचाने वाले मैंग्रोव वन के महत्व को समझती हैं। 2019 के चक्रवात फानी के आने से पहले के दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया, “भारतीय मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की थी कि चक्रवात फानी हमारे गांव के पास आएगा। हम घबरा गए, लेकिन हमने महत्वपूर्ण दस्तावेज, प्रमाण पत्र, पैसे, गहने और दवाइयों सहित बुनियादी और आवश्यक सामान को एल्युमिनियम के ट्रंक में और कपड़ों को एक बंडल में पैक किया और एक सरकारी स्कूल की ओर चल पड़े”।

जब गांव के पुरुष अगले दिन लौटे तो उन्होंने पाया कि झाड़लिंग और आसपास के कुछ अन्य गांवों में चक्रवात की गंभीरता अपेक्षा से कम थी। चक्रवाती तूफान झाड़लिंग से 49 किमी दूर बालुखंडा में आया था। नलिनी ने कहा, “हमें बताया गया कि 1.5 किमी के घने मैंग्रोव जंगल ने हमें तूफान की तीव्रता से बचाया। मैंग्रोव नमक सहन करने वाले पेड़ और झाड़ियाँ हैं जो आम तौर पर मुहाना और अंतरज्वारीय उन क्षेत्रों में उगते हैं जहाँ मीठे पानी और खारे पानी का मिलन होता है और जहाँ की मिट्टी दलदली होती है”।

ममीना कांडी (39 वर्षीया) कहती हैं, “बचपन से हम चक्रवाती तूफ़ानों का सामना करते आ रहे हैं, जिनमें 1999 का सुपर साइक्लोन, 2013 का फैलिन और 2019 का फानी सबसे विनाशकारी थे। जब प्रशासन चेतावनी जारी करता है तो हम खुद को बचाने के लिए स्कूल की ओर भागते हैं। जब हम वापस लौटते हैं तो गांव का ज़्यादातर हिस्सा जलमग्न हो जाता है। हमारे खेत तबाह हो जाते हैं। हम कमर तक पानी में सात से 10 दिन तक रहते हैं, जब तक कि पानी पूरी तरह से निकल नहीं जाता”। चक्रवाती तूफ़ानों और उसके बाद अस्तारंगा ब्लॉक के झाड़लिंग सहित लगभग 80 गांवों के निवासियों का जीवन ठहर जाता है।

महिलाओं को ओडिशा पर्यावरण संरक्षण अभियान ट्रस्ट की ओर से मैंग्रोव संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया।  (Photo – Rakhi Ghosh, 101Reporters)

जब तक कि अस्तरंगा ब्लॉक के समुद्री कछुओं और मैंग्रोव के संरक्षणकर्ता सौम्या रंजन बिस्वाल ने इन ग्रामीणों को इस मुद्दे पर जागरूक नहीं किया, तब तक तब तक ग्रामीणों ने चक्रवाती तूफानों के खिलाफ ढाल के रूप में मैंग्रोव की रक्षा करने के बारे में नहीं सोचा था। सौम्या रंजन बिस्वाल कहते हैं, हालांकि ओडिशा पर्यावरण संरक्षण अभियान ट्रस्ट एक दशक से अधिक समय से ऑलिव रिडले समुद्री कछुआ संरक्षण परियोजना पर काम कर रहा है, लेकिन हमें अहसास हुआ कि अगर हम झाड़लिंग पंचायत के आसपास के मैंग्रोव वन की रक्षा कर सकते हैं, तो इससे इस तटीय गांव के कमजोर समुदाय को फायदा होगा। हमने संरक्षण पहल का नेतृत्व करने के लिए महिलाओं को शामिल करने के बारे में भी सोचा। बिस्वाल इस ट्रस्ट के संस्थापक हैं।

बिस्वाल कहते हैं, “देवी नदी के मुहाने पर ऑलिव रिडली के संरक्षण के दौरान, मैंने पाया कि अस्तारंगा ब्लॉक के आस-पास के मैंग्रोव वन कई जगहों पर नष्ट हो गए हैं। इसलिए, मैंने अपने पैतृक गांव गुंडलबा, जो कि झाडलिंग का पड़ोसी गांव है, के कुछ युवाओं के साथ मिलकर मैंग्रोव के पौधे लगाने के लिए नर्सरी बेड बनाना शुरू किया। हम सुबह जल्दी जाते थे और देर शाम को लौटते थे। 2023 में एक दिन, मैंने पाँच महिलाओं को मैंग्रोव से जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करते देखा। मैंने उन्हें मैंग्रोव वन के महत्व के बारे में समझाने की कोशिश की और बताया कि अगर वे लगातार लकड़ी इकट्ठा करती रहीं तो यह कैसे नष्ट हो जाएगा।”

अच्छी बात यह रही कि बिस्वाल उन्हें मनाने में कामयाब रहे, इसलिए उन्होंने मैंग्रोव से जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करना बंद कर दिया। वर्ष 2023 में बिस्वाल ने अनजाने में बड़े मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को हुए नुकसान को दूर करने के लिए वूमन फॉर मैंग्रोव्स पहल की शुरुआत की। गांव की महिलाएं शुरू में इसमें शामिल होने के लिए अनिच्छुक थीं, लेकिन वह उन्हें अस्तारंगा में अपने प्रशिक्षण केंद्र में ले गए, जहां उन्होंने स्कूली बच्चों और ग्रामीणों को पर्यावरण प्रशिक्षण दिया और मैंग्रोव वनों के महत्व और चक्रवाती तूफानों और बाढ़ के खिलाफ ढाल के रूप में यह कैसे काम करता है, इस बारे में विस्तार से जानकारी दी।

49 वर्षीया नैना कांडी जो अब वुमन फॉर मैंग्रोव पहल की सदस्य हैं, कहती हैं, “प्रशिक्षण में भाग लेने के बाद हम इस पहल में शामिल होने के लिए तैयार थे”।

मैंग्रोव संरक्षण के कार्य में लगी महिलाएं पहले आजीविका के लिए केकड़ा पकड़ती थीं, अब मैंग्रोव संरक्षण प्रयासों ने उनकी जिंदगी बदल दी है।  (Photo – Rakhi Ghosh, 101Reporters)

शुरुआत में, पाँच महिलाएँ समूह में शामिल हुईं और हर सुबह घर के काम खत्म करने के बाद वे संरक्षण कार्य के लिए मैंग्रोव वन में जाती थीं। रंजुलाता कंडी (45) ने कहा, “चूँकि यह काम जितना आसान लगता है, उतना आसान नहीं है, इसलिए हमने अपने गाँव के कुछ पुरुषों से संपर्क किया”। वे कहती हैं, “वे हमें नाव में ले जाते हैं और जब हम घने जंगल में जाते हैं तो वे हमारा मार्गदर्शन करते हैं। कभी-कभी जंगली जानवरों और साँपों के हमले का डर रहता है”। अनौपचारिक रूप से शुरू हुई मैंग्रोव संरक्षण परियोजना समय के साथ बढ़ती गई है। भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या बढ़कर 25 हो गई है। इस प्रयास में सात मछुआरे भी शामिल हैं। दो साल की अवधि में 22,000 से अधिक मैंग्रोव पौधे लगाए गए हैं। प्रतिभागी कम ज्वार के दौरान पानी कम होने पर नदी के किनारे से बीज एकत्र करते हैं और उन्हें अंकुरित होने के लिए संरक्षित करते हैं। इसके बाद, वे अंकुरित बीजों को बाड़ वाली नर्सरी क्यारियों में बोते हैं। इस काम में पुरुष उनकी मदद करते हैं।

महिलाओं को सप्ताह में तीन से चार दिन, ज़्यादातर ज्वार के दौरान, चार घंटे तक संरक्षण कार्य करने के लिए प्रतिदिन 250 रुपये का भुगतान किया जाता है। पर्यावरण संरक्षण अभियान ट्रस्ट उन्हें बिलियन ट्रीज़ से मिलने वाले वित्तीय सहयोग से भुगतान करता है, जो सुब्रतो चटर्जी, कटक स्थित सामाजिक कल्याण संगठन जागृत ओडिशा, गोविंद त्रिपाठी स्मृति परिषद; जैसे परोपकारी लोगों, संगठनों और शुभचिंतकों द्वारा संचालित एक पहल है। इसे अभी तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है।

महिला सदस्यों को बीज चयन का स्वदेशी ज्ञान है। वे जानती हैं कि कौन-सा बीज किस प्रकार की मिट्टी में उगेगा। नलिनी बताती हैं, हम जानते हैं कि स्वदेशी प्रजातियाँ राई, सिंदुका, कलियाचुआ, बंदारी और केरुआन दलदली क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगते हैं। अब हम यह समझने में अधिक रुचि रखते हैं कि हमारे मैंग्रोव वनों में कौन सी अन्य किस्में उपलब्ध हैं और यह कहाँ अच्छी तरह से उगेगी।

भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के लिए मशहूर केंद्रपाड़ा जिले में ओडिशा में सबसे ज़्यादा मैंग्रोव वन क्षेत्र है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 से पता चलता है कि राज्य में 259.06 वर्ग किलोमीटर का मैंग्रोव क्षेत्र है, जिसमें से केंद्रपाड़ा में सबसे ज़्यादा 212.69 वर्ग किलोमीटर (81 प्रतिशत) का क्षेत्र है, उसके बाद भद्रक (32.39 वर्ग किलोमीटर), जगतसिंहपुर (8.42 वर्ग किलोमीटर), बालासोर (4.82 वर्ग किलोमीटर), और पुरी (0.74 वर्ग किलोमीटर) का स्थान है।

2024 में जब चक्रवात दाना के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान और धामरा बंदरगाह के पास आने का अनुमान लगाया गया तो लोगों को डर था कि यह उनके गांवों को नष्ट कर देगा। लेकिन, केंद्रपाड़ा के घने मैंग्रोव क्षेत्र ने इसके प्रभाव को कम करने में मदद की।

मैंग्रोव रोपण के काम के लिए जाने के दौरान मैंग्रोव संरक्षक महिलाएं।  (Photo – Rakhi Ghosh, 101Reporters)

ओडिशा राज्य वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव विकास रंजन दाश ने 101रिपोर्टर्स को बताया कि मैंग्रोव वन चक्रवाती तूफानों के खिलाफ ढाल का काम करते हैं लेकिन कुछ लोगों ने केंद्रपाड़ा में झींगा मछली पकड़ने के लिए अवैध घेरी (अतिक्रमण करना) बना लिया है।उन्होंने कहा, “विभाग इन अतिक्रमणों के खिलाफ़ कार्रवाई कर रहा है और स्थानीय समर्थन से वृक्षारोपण अभियान शुरू किया है। इससे आजीविका के विकल्प मिलेंगे, खासकर महिलाओं को”।

संरक्षण प्रयास शुरू करने से पहले, झाड़लिंग की महिलाएँ मैंग्रोव से केकड़े पकड़ती थीं और उन्हें स्थानीय व्यापारियों को बेचती थीं। प्रत्येक महिला तीन से चार दिनों में 18 से 20 केकड़े इकट्ठा करती थी, जिससे 300 से 500 रुपये मिलते थे। वे मैंग्रोव से खाना पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी भी इकट्ठा करती थीं।

सुलोचना कंडी (49) ने कहा, “हमारे पति खेतों में काम करते हैं और कभी.कभी मज़दूरी करने के लिए पास के शहरों में जाते हैं। अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए हम केकड़े पकड़ते थे, यह काम कभी-कभी ख़तरनाक भी होता था। अगर कोई थोड़ी सी भी लापरवाही करता तो केकड़े के काटने की संभावना बहुत ज़्यादा होती थी। हमारे गाँव में कोई और काम उपलब्ध नहीं था, इसलिए हमने तब तक यही काम जारी रखा जब तक कि संरक्षण परियोजना ने हमारे लिए नए अवसर पैदा नहीं कर दिए”।

नलिनी मुस्कुराती हुई कहती हैं, “हम अब केकड़े नहीं पकड़ते, बल्कि अपना समय संरक्षण कार्य में लगा रहे हैं। उन्हें मिलने वाली मज़दूरी से ही परिवार की आर्थिक मदद हो जाती है। वे मैंग्रोव के जंगलों पर निर्भर रहने के बजाय आसपास से जलाऊ लकड़ी लाते हैं”।

ममीना आशा भरे भाव से कहती हैं, हम भविष्य में चक्रवाती तूफ़ानों से अस्तारंगा के तटीय इलाकों के गांवों को बचाने के लिए वृक्षारोपण कार्य में लगे हुए हैं। चक्रवात की चेतावनी आने पर हमारे बच्चों को भागना नहीं पड़ेगा।

वन विभाग से मिले सहयोग के बारे में पूछे जाने पर बिस्वाल ने कहा, वे हमारी मैंग्रोव पहल की सराहना करते हैं और उसे प्रोत्साहित करते हैं।

पुरी वन प्रमंडल के किसी भी अधिकारी ने झाड़लिंग में महिलाओं के प्रयासों पर बात करने के लिए सहमति नहीं जताई, उन्होंने कहा कि केवल प्रधान मुख्य वन संरक्षक या भुवनेश्वर कार्यालय के किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी ही इस मुद्दे पर बोल सकते हैं। इस संरक्षण कार्य का परिणाम अगले 10 वर्षों में दिखाई देने की संभावना है, क्योंकि मैंग्रोव पौधों को बढ़ने में तीन से पांच साल लगते हैं।

(यह स्टोरी 101Reporters पर अंग्रेजी में प्रकाशित स्टोरी The women mangrove keepers of Jhadling का हिंदी अनुवाद है। हमने इसे अपनी वेबसाइट पर साभार प्रकाशित किया है।)

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