पतली चोंच वाली कर्ल्यू: अब इस पक्षी की तसवीर से संतोष कीजिए, क्योंकि यह लुप्त हो चुकी है

30 साल पहले आखिरी बार देखी गई पतली चोंच वाली कर्ल्यू आधिकारिक तौर पर आइयूसीएन द्वारा विलुप्त घोषित कर दी गई है। स्लेंडर बिल्ड कर्ल्यू की आखिरी अनुमनित संख्या 50 थी और इसका विलुप्ल होना एक गंभीर चेतावनी की तरह है और यह स्थिति इस जरूरत को रेखांकित करती है कि संरक्षण प्रयासों को तेज करने करने की जरूरत है।

बॉन (जर्मनी) : आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) ने 10 अक्टूबर 2025 को आधिकारिक तौर पर स्लेंडर बिल्ड कर्ल्यू (Slender-billed Curlew – Numenius tenuirostris) नामक जल पक्षी को विलुप्त घोषित कर दिया है। यह पूर्व में व्यापक रूप से ज्ञात एक प्रवासी पक्षी का पहला ज्ञात वैश्विक विलुप्तीकरण है। इस पक्षी का का क्षेत्र मुख्य रूप से यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में फैला हुआ था। इस प्रजाति को अंतिम बार करीब 30 साल पहले 25 फरवरी 1995 को मोरक्को के मेरजा जर्गा में देखा गया था।

सालों की गहन तलाशी के बाद आइयूसीएन की इस घोषणा के साथ इस प्रजाति का अस्तित्व होने की उम्मीद अब खत्म हो गई है। यह विनाशकारी नुकसान प्रवासी पक्षी और सामान्य से रूप से प्रवासी प्रजातियों के लिए मजबूत और समन्वित संरक्षण प्रयासों की तत्काल और निरंतर आवश्यकता को रेखांकित करती है।

इस संबंध में सीएमएस (CMS) की कार्यकारी सचिव एमी फ्रेंकेल ने कहा, “पतली चोंच वाले कर्ल्यू का विलुप्त होना प्रवासी पक्षी संरक्षण के लिए एक दुःखद और गंभीर क्षण है। यह प्रवासी प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी संरक्षण उपायों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। आशा है कि इस प्रजाति के विलुप्त होने से अन्य संकटग्रस्त प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिए कार्रवाई को गति मिलेगी”।

1979 में कन्वेंशन पर हस्ताक्षर के समय पतली चोंच वाले कर्ल्यू को सीएमएस परिशिष्ट एक और दो के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया था। सितंबर 1994 में इस पक्षी के अंतिम बार देखे जाने की पुष्टि से ठीक पाँच महीने पहले सीएमएस के तहत कर्ल्यू के संरक्षण उपायों से संबंधित एक समझौता ज्ञापन को अपनाया गया था। इसका लक्ष्य उत्तर-पश्चिमी साइबेरिया और कज़ाकिस्तान के घोंसले के शिकार क्षेत्रों से लेकर दक्षिण-पूर्वी यूरोप, मध्य पूर्व, भूमध्य सागर और उत्तरी अफ्रीका के गैर प्रजनन स्थलों तक 30 रेंज राज्यों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से इस प्रजाति के शेष सदस्यों (जो उस समय अनुमानित लगभग 50 थी) की सुरक्षा करना था।

Photo Credit – https://www.birdlife.org/

सीएमएस ने अपने एक बयान में कहा है, जून 1995 में अफ्रीकी-यूरेशियाई उड़ान मार्ग में प्रवासी जलपक्षियों की संख्या में कमी को रोकने के लिए सीएमएस ढांचे के तहत बातचीत से एक नई संधि का जन्म हुआ। अफ्रीकी-यूरेशियाई प्रवासी जलपक्षियों के संरक्षण पर नए समझौते (African-Eurasian Migratory Waterbirds – AEWA) पर हस्ताक्षर के समय, संरक्षण के लिए सूचीबद्ध 255 जलपक्षी प्रजातियों में स्लेंडर-बिल्ड कर्ल्यू को भी एक प्राथमिकता वाली प्रजाति के रूप में शामिल किया गया था।

AEWA के कार्यकारी सचिव जैक्स ट्रौविलीज़ ने कहा, “दो-तिहाई पक्षी प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं और स्लेंडर-बिल्ड कर्ल्यू का विलुप्त होना एक मार्मिक चेतावनी है कि संरक्षण ढाँचों को पर्याप्त विज्ञान, संसाधनों और निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति के समर्थन से शीघ्रता से लागू किया जाना चाहिए।”

हाल के वर्षों में, CMS या AEWA (या दोनों) के अंतर्गत सूचीबद्ध कई अन्य जलपक्षी प्रजातियों को IUCN की लाल सूची में उच्च जोखिम स्तर पर रखा गया है, जो दर्शाता है कि उनकी संख्या में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। इनमें वेडर पक्षी, जैसे ग्रे प्लोवर (प्लुविएलिस स्क्वैटारोला), ब्रॉड-बिल्ड सैंडपाइपर (कैलिड्रिस फाल्सीनेलस), और कर्ल्यू सैंडपाइपर (कैलिड्रिस फेरुगिनिया) शामिल हैं, जिन्हें संकटग्रस्त की सूची में रखा गया है, और रूडी टर्नस्टोन (एरेनेरिया इंटरप्रिस) और डनलिन (कैलिड्रिस अल्पीना) को निकट संकटग्रस्त की सूची में रखा गया है।

CMS/बर्डलाइफ स्लेंडर-बिल्ड कर्ल्यू वर्किंग ग्रुप की अध्यक्ष निकोला क्रॉकफोर्ड ने कहा है, “अब उपलब्ध नई तकनीकों और ज्ञान के साथ, ऐसी त्रासदियों को दोहराने की अनुमति देने का कोई बहाना नहीं है। एक बार किसी प्रजाति के विलुप्त हो जाने के बाद आप उसे पुनर्स्थापित नहीं कर सकते”।

CMS ने अपने बयान में कहा है कि हालांकि स्लेंडर बिल्ड कर्ल्यू के विलुप्त होने की सबसे करीबी वजह पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, लेकिन असंतुलित शिकार और आवास का क्षरण लगभग निश्चित रूप से प्रमुख कारक थे। कई प्रवासी प्रजातियों के बढ़ते खतरे के साथ, सरकारों और हितधारकों को एक साथ लाने में CMS और AEWA जैसी संधियों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। ये संधियाँ इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए समन्वित कार्रवाई हेतु आवश्यक ढाँचाए मार्गदर्शन और उपकरण प्रदान करती हैं।

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