भागलपुर के गुंजेश से मिलिए: नौकरी छोड़ खेती में बनाया कैरियर, बागवानी फसलों के हैं एक्सपर्ट


आम, परबल व कतरनी धान जैसी फसलों के लिए मशहूर भागलपुर के गुंजेश गुंजन ने परंपरागत खेती के बजाय वैसी फसलों का उत्पादन शुरू किया जो परंपरागत रूप से इस क्षेत्र में नहीं उपजाई जाती थी। उन्होंने खेती में आधुनिक तकनीक व रिसर्च एंड डेवलपमेंट को अपनाया और उसे फायदे के काम में तब्दील कर दिया। वे अब दूसरे किसानों के लिए एक प्रेरक व प्रशिक्षक हैं।

भागलपुर से राहुल सिंह की रिपोर्ट

भागलपुरः बिहार के भागलपुर जिले के नाथनगर प्रखंड के कजरैली के युवा किसान गुंजेश गुंजन ने नौकरी छोड़ खेती को अपनाया और आधुनिक खेती का एक मानक स्थापित कर दिया। किसान परिवार से आने वाले 42 वर्षीय गुंजेश गुंजन ने भागलपुर के मारवाड़ी कॉलेज से अर्थशास्त्र में मास्टर की डिग्री हासिल करने के बाद निजी क्षेत्र की एक प्रमुख फाइनेंस कंपनी में पटना व भागलपुर में कुछ सालों तक नौकरी की, लेकिन फिर उनका मन नौकरी छोड़ खेती को पेशे के रूप में अपनाने का हुआ और उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। गुंजेश पिछले 15 सालों से पूरा समय खेती और खेती में नए प्रयोग को दे रहे हैं, जबकि इससे पहले उन्होंने करीब दो साल नौकरी में गुजारा था। उन्होंने इस क्षेत्र में होने वाली प्रमुख फसलों की खेती के बजाय वैसी कुछ प्रमुख बागवानी फसलों की खेती शुरू की जो सामान्यतः यहां नहीं या काफी कम उपजाया जाता था।


गुंजेश गुंजन की खेती बागवानी फसलो पर केंद्रित है और वे परंपरागत तरीके से हट कर खेती करने में भरोसा रखते हैं। 16 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले गुंजेश भागलपुर के सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय, जिला के कृषि विज्ञान केंद्र, व बागवानी मिशन एवं कृषि विभाग के साथ भी कृषि गतिविधियों में अलग-अलग रूप में सक्रिय रहते हैं। गुंजेश कहते हैं, “पहले आधुनिक खेती का फॉर्म दिखाने के लिए बिहार के किसानों को महाराष्ट्र, पंजाब जैसे राज्यों में ले जाया जाता था, लेकिन हमने आधुनिक खेती का एक मॉडल तैयार किया है और अलग-अलग संस्थान के लोग अपने प्रतिनिधियों के साथ हमारे इस मॉडल को देखने के लिए आते हैं, इससे स्थानीय किसान को प्रेरणा मिलती है”।

किसान नरोत्तम कुमार मिश्रा के साथ उनके खेत में गुंजेश। नरोत्तम कुमार मिश्रा एक रिटायर्ड आर्मी मैन हैं और उन्होेंने गुंजेश से प्रेरित होकर व उनकी सलाह से आधुनिक खेती शुरू की।

वे अपनी खेती की कुल जमीन में करीब साढे तीन एकड़ जमीन रिसर्च एवं डेवलपमेंट के लिए उपयोग करते हैं। जैसे, उन्होंने इटली से स्ट्राबेरी का उन्नत बीज मंगवाया और अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट फॉर्म में उसके पौधों को तैयार करने पर काम कर रहे हैं, जिसकी मांग अक्टूबर में होगी। वे बताते हैं कि 15 अक्टूबर से 15 नवंबर का समय स्ट्राबेरी की रोपाई के लिए उपयुक्त है।

स्ट्राबेरी का पौध तैयार करने की प्रक्रिया का एक दृश्य।


गुंजेश ने स्ट्राबेरी की खेती हिमाचल प्रदेश से प्रेरित होकर की है। वे कहते हैं, “हिमाचल प्रदेश की जलवायु स्ट्राबेरी की खेती के अनुकूल है, जबकि हमें यहां उसकी खेती के अनुरूप वातावरण पॉली हाउस में तैयार करना होता है”। उन्होंने चार से पांच लाख स्ट्राबेरी के पौधे तैयार करने का लक्ष्य रखा है। उनका कहना है कि अब यहां जो स्ट्राबेरी का पौधा तैयार होगा उसका सर्वाइवल रेट अधिक होगा, क्योंकि वे यहां के मौसम में ढल जाएगा।


गुंजेश खेती को अधिक लाभदायक बनाने के लिए इंटर क्रॉपिंग की मदद लेते हैं। यानी एक खेत में एक साथ दो फसलों की खेती करना। जैसे – पपीता और गोभी। वे बताते हैं गोभी की फसल 60 दिन में तैयार हो जाता है और इस समय पपीते के पेड़ में फूल आते हैं।


वे खेती में नए प्रयोगों का जिक्र करते हुए कहते हैं, “हमलोग परंपरागत रूप से किसान परिवार से हैं, हमारे दादाजी और पीताजी भी किसान थे, लेकिन जब वे पपीते की खेती करते थे, तो उपज कम होती थी और मुनाफा कम होता था। वे चड्डा शीड्स का इसके लिए प्रयोग करते थे, जिसमें नर व मादा पौधे अलग-अलग होते थे और एक ही जगह नर पौधे या माधा पौधे अधिक हो जाते तो उपज कम होती थी। देसी पद्धति में 50 प्रतिशत नर व 50 प्रतिशत मादा पौधे होते हैं, लेकिन उन्हें पहचानना मुश्किल होता है। ऐसे हमें हमने जेनेटिक मोडिफाई व उभयलिंगी किस्म रेड लेडी पपीते की खेती शुरू की और इसकी खेती को मुनाफे में तब्दील कर दिया”।

गुजेश के खेत में तैयार फली वाली सब्जी।


गुंजेश खरबूज, तारबूज, शिमला मिर्च, बिन्स, खीरा आदि की खेती भी करते हैं। वे कहते हैं, “मार्च-अप्रैल में खीरा की फसल तैयार करना लाभदायक नहीं होता है, क्योंकि हम महंगी पद्धति से खेती करते हैं तो हमारी लागत भी नहीं निकल पाएगी, इसलिए हम उसकी पैदावार ऑफ सीजन में लेते हैं, जब बाजार कीमत अधिक होती है”।


गुंजेश ने अपने आधी एकड़ जमीन में सेड नेट हाउस लगाया है, जिसमें उन्होंने पिछले साल खरबूज की खेती की थी और इस साल स्ट्रॉबेरी की खेती की है। वे बताते हैं कि आधी एकड़ जमीन में उन्होंने 60 क्विंटल खरबूज की पैदावर हासिल की थी, जो 4500 रुपये क्विंटल के भाव बिका था।

इस सवाल पर कि आम की बागवानी वाले इलाके में उन्होंने स्ट्राबेरी जैसी फसलों की बागवानी का निर्णय क्यों लिया, गुंजेश कहते हैं, “मौजूदा हालात में आम की खेती में बहुत लाभ नहीं है, हमारे यहां अभी भी एक एकड़ भूमि पर आम के 40 पेड़ लगाये जा रहे हैं, इसकी पद्धति में बदलाव की जरूरत है। कई दूसरे क्षेत्र में आम की काफी सघन बागवानी हो रही है। फिर उपज काफी अधिक होने पर कीमत काफी गिर जाती है, उसके लिए प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है। इसलिए मैंने दूसरी बागवानी फसलों का रुख किया”।


उत्पाद और उसका बाजार


गुंजेश कहते हैं, “प्रोडक्शन और मार्केटिंग दो अलग चीजें हैं और हमें इसके बारे में गंभीरता से सोचना होता है। हम जो उपज लेते हैं, उसके लिए बाजार उपलब्ध होना चाहिए। वे कहते हैं कि भागलपुर व आसपास के इलाके में हमें बाजार मिल जाता है, लेकिन हम अधिक उपज होने व बेहतर मुनाफे के लिए कोलकाता व सिलीगुड़ी भी अपनी उपज भेजते हैं। कोलकाता एक महानगर है तो वहां मांग अधिक है”। गुंजेश ने अबतक करीब 500 किसानों को खेती का प्रशिक्षण दिया है। आसपास के क्षेत्र के किसान उनसे खेती के संबंध में सलाह व प्रशिक्षण लेने आते हैं। उनका कहना है कि किसान अधिक से अधिक सूचना संपन्न हों, उनके पास जानकारी हो तभी वे अपनी मेहनत का बेहतर लाभ प्राप्त कर सकेंगे।

गुंजेश के खेतों में लगी टमाटर की फसल।


किसानों के लिए महत्वपूर्ण है सरकारी सहायता व इंश्योरेंस


गुंजेश कहते हैं कि किसानों के लिए सरकार की कृषि योजनाएं बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। सरकार पॉली हाउस, उपकरणों की खरीद व कई अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करती है। किसानों को इसके बारे में जानकारी हासिल करना चाहिए। सरकार को इस मदद को वैसे किसानों को उपलब्ध कराना चाहिए जो वास्तविक किसान हैं और यह जांच भी होती रहनी चाहिए कि उन योजनाओं का लाभ लेने वाले किसान उसका उपयोग कर रहे हैं या नहीं। नेट हाउस, पॉली हाउस सभी जरूरतमंद किसानों तक पहुंचे तो उनकी आय बढ़ सकेगी। वे किसानों को सलाह देते हैं कि वे तकनीक का उपयोग करें, तभी अच्छी उपज और कमाई होगी। वे खेती में ड्रिप इरिगेशन, निकाई-गुड़ाई के लिए आधुनिक मशीनों के उपयोग के पक्षधर हैं। वे खुद ड्रिप इरिगेशन व आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं। हालांकि वे एक शिकायत करते हैं कि मौजूदा वक्त में किसानों के पास अपनी फसल के बेहतर इंश्योरेंस की सुविधा नहीं है। अभी बीमा सरकार कराती है और मूल्यांकन की जटिल पद्धति के कारण उसका सही लाभ हासिल करना मुश्किल होता है। इसी तरह किसान खुद इंश्योरेंस कराना चाहे तो वह कंपनी की मांग के अनुरूप पूरी जटिलताओं को पूरा नहीं कर सकता, इसलिए इसे सहज बनाने की पहल होनी चाहिए।


गुंजेश की पारिवारिक पृष्ठभूमि


गुंजेश के एक भाई इसरो में वैज्ञानिक हैं और एक भाई बैंक में नौकरी करते हैं। ऐसे में घर पर रहने वाला कोई युवा सदस्य नहीं था और उन्होंने घर वापसी का निर्णय लिया। वे कहते हैं कि पारिवारिक परिस्थितियों व खेती की संभावनाओं में तलाश के लिए वे घर वापस लौटे और उनके मन में यह भी बात थी कि वे अन्य किसानों को उन्नत खेती का प्रशिक्षण देकर उनकी उत्पादकता बढाने में योगदान दें। वे कहते हैं कि बिहार की छवि एक पिछड़ा राज्य की है, जिसे हम खुद अपनी मेहनत से बदल सकते हैं। बिहार में इतनी उर्वर मिट्टी और अच्छी जलवायु है कि किसान बहुत अच्छी खेती कर सकते हैं।

सब्जी की खेती का दृश्य, गुंजेश खेती में आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हैं और खुद बीज व पौधों के एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जोर देते हैं। फोटो – राहुल सिंह।

रिटायर्ड फौजी ने गुंजेश की प्रेरणा से शुरू की खेती


भागलपुर जिले के शाहकुंड ब्लॉक की दासपुर पंचायत के रामपुरडीह के 51 वर्षीय नरोत्तम कुमार मिश्रा फौज में नौकरी करते थे। अप्रैल 2022 में वे नौकरी से रिटायर हुए और इसके बाद उनके पास रिटायर्ड सर्विस मैन के रूप में नौकरी की दूसरी पाली का मौका था। नरोत्तम कुमार मिश्रा कहते हैं, “मैं चूंकि एक स्पोर्ट्स पर्सन हूँ, क्रिकेटर रहा हूँ और वॉलीबॉल व बास्टकेटबॉल का कोच रहा हूँ, इसलिए मेरे लिए दूसरे विकल्प थे, लेकिन मेरे छोटे भाई ने मुझे गुंजेश जी से मिलवाया और उनसे मुलाकात के बाद मेरा रूझान खेती की ओर हुआ। इसके बाद मैंने हरनाथपुर गांव में आधुनिक पद्धति से खेती शुरू की”। वे हरनाथपुर में अपनी छह एकड़ जमीन में आधुनिक विधि से खेती कर रहे हैं।

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