झारखंड में हाथियों की जान पर सबसे अधिक खतरा, रांची, जमशेदपुर व सरायकेला में सबसे अधिक मौत

23 सालों में झारखंड में 225 हाथियों की मौत हुई है। आधारभूत संरचना के निर्माण, जंगलों के कम होने व परस्पर टकराव उनकी मौत के पीछे की प्रमुख वजह हैं।

रांची: वर्ष 2000 से 2023 तक झारखंड में 225 हाथियों की मौत हुई है। इस अवधि में रांची जिला, पूर्वी सिंहभूम जमशेदपुर व सरायकेला खरसावां जिला हाथियों के लिए सबसे अधिक खतरा दर्ज हुआ है। 225 में 152 हाथियों की मौत विभिन्न इंसानी वजहों से हुई, जिसमें करंट लगने की घटना सबसे बड़ी वजह है। बिजली करंट से इस दौरान 67 मौतें हुई हैं। रिसर्च में यह सामने आया है कि जहां सड़कें अधिक है, जंगल कम हैं, वहां हाथियों की मौत की दर अधिक है। भारतीय वन सेवा के अधिकारी रमेश पांडेय की अगुवाई में किये गये अध्ययन क्वांटीफाइंग एलिफेंट मोर्टलिटी इन ए चेंजिंग लैंडस्कैप: इनसाइट फ्रॉम झारखंड, इंडिया (Quantifying elephant mortality in a changing landscape: insights from Jharkhand, India) में ये तथ्य सामने आए हैं। इस रिसर्च के आधार पर सुझाव दिया गया है कि झारखंड के हाथी बहुत ज़्यादा तनाव में हैं और तुरंत दखल दिए बिना हालात और खराब हो सकते हैं।

आधारभूत संरचनाओं का विकास हाथी-मानव टकराव को बढा रहे हैं। ऐसे में टकराव को कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर पेड़ लगाना, सुरक्षित कॉरिडोर बनाना और बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लांनिंग की जरूरत है।

अध्ययन में कहा गया है कि छोटानागपुर पठार में जहां जंगल वाले इलाके अपेक्षाकृत छोटे हैं। इनके बीच में मानव बस्तियां हैं, वहां हाथी अक्सर खेती वाली जमीन से गुजरते हैं। इस वजह से टकराव बढ जाता है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि मानव हाथी टकराव से इंसानों व हाथियों की मौत, संपत्ति का नुकसान, स्थाानीय समुदाय पर मानसिक दबाव जैसी स्थितियां होती है। वर्ष 2010 से 2020 तक भारत में लोगों की बहुत अधिक मौतें हुई हैं, इसमें सबसे अधिक संख्या झारखंड से है।

झारखंड के पलामू क्षेत्र में 1960 के दशक में हाथियों के विचरण का एक दृश्य। Photographed by DCF J. Mishra in 1969-70.

अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2014 में झारखंड में नेशनल हाइवे 2402 किमी था, जो वर्ष 2018 तक 7791 किमी हो गया। राज्य में सिंचाई नहरों का एरिया 560.54 हेक्टेयर है।

1999 में भारतीय वन सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में हाथियों का हैबिटेट 6000 वर्ग किमी में फैला है, जिसमें 600 से 700 हाथी फैले हुए हैं। लेकिन, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में हाथियों की आबादी 679 थी, पर उनका आवास क्ष्ज्ञेत्र 3800 वर्ग किमी रह गया। हाथी धालभूम के जंगल से लंबी यात्रा करके पश्चिम बंगाल व ओडिशा जाते हैं।

इस अध्ययन में कहा गया है कि हाइवे, रेलवे, नहरों के निर्माण, खनन व खेती के बदलते तरीकों की वजह से क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए हैं। इनसानों की वजह से पैदा हुए तनाव की वजह से हाथी हजारीबाग, रांची, रामगढ, बोकारो व धनबाद के इलाके में आ गए। झारखंड के दलमा सेंचुरी से पश्चिम बंगाल के पंचेत वन प्रभाग में माइग्रेट करने वाले हाथियों का रहने का समय हर साल बढता गया है। आसपास की खेती के जमीन का प्रयोग, बिखरे हुए जंगल के सीमित हिस्से मानसून के महीनों में हाथियों के आने-जाने पर असर डालते हैं। यह सुझाव दिया गया है कि नई रणनीति बनाने के लिए न सिर्फ मौजूदा पैटर्न बल्कि पुराने ट्रेंड्स को समझना भी जरूरी है।

इस रिसर्च के हवाले से हवाले से कहा गया है –


वर्ष 2000 से-2023 के दौरान (- 6) प्रतिशत जंगल का एरिया राज्य में बदला है। वहीं, निर्मित क्षेत्र में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस वजह से हाथियों के आवास क्षेत्र व कॉरिडोर पर मानव का कब्जा होता जा रहा है।

हाथियों का ध्वस्त या टूटा हुआ लैंडस्कैप या इलाका उन्हें मानव इलाकों में जाने को मजबूर कर रहा है।

झारखंड में 23 सालों में 255 हाथियों की मौत हुई, जिसमें 152 मौत यानी 68 प्रतिशत इंसानी वजहों से हुई।

बिजली का करंट हाथियों की मौत की सबसे बड़ी वजह है। अकेले इस वजह से इस अवधि में 67 हाथी की मौत हो गई।

हाथियों के मौत के मामले में रांची शीर्ष पर है, उसके बाद पूर्वी सिंहभूम व फिर सरायकेला जिले का नंबर है।

जहां जंगल कम हैं, सड़कें ज्यादा हैं, वहां हाथियों की मौत अधिक होती है। बिना योजना के विकास से मानव-हाथी टकराव बढ रहा हैं।

सितंबर 2025 में काफी अधिक कोयला खदान वाले रामगढ जिले गोला वन क्षेत्र में एक कुएं में गिरे शिशु हाथी। सूचना के बाद में इनका सफलतापूर्वक रेस्क्यू कर लिया गया था।

इस अध्ययन में कुछ अहम सुझाव दिए गए हैं –

जंगल लगाना और हाथियों के आवास क्षेत्र को दुरुस्त किया जाए।

हाथियों व अन्य जीवों के लिए सुरक्षित वाइल्डलाइफ कॉरिडोर बने।

इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास इस बात को ध्यान में रख कर किया जाए कि वह हाथियों व अन्य वन्यजीवों के प्रति भी जिम्मेवार और संवेदनशील हो।

इस सोच को अमल में लाया जाए कि लोगों की आजीविका के साथ हाथियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो।

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