राजेश कुमार मंडल
हम कोशी नदी के बीच के निवासी हैं। हम तीसरी पीढ़ी हैं जो दो तटबंधों के बीच अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। हमारे दादा ने और फिर हमारे पिता ने ऐसी जिंदगी जी और अब हम तटबंधों के बीच जिंदगी गुजार रहे हैं। हमारे बच्चे भी इसके बीच रहेंगे और न पता नहीं कितनी पीढ़ियां ऐसे ही रहेंगी। हमें अपना भविष्य अंधकारमय दिखता है।
जब कोशी पर तटबंध बन रहा था तो हमारे दादा की पीढ़ी को तब के नेताओं व सरकार के लोगों ने आश्वासन दिया गया था कि आपलोगों को नुकसान नहीं होगा और आप यहां सुरक्षित रहेंगे। तब यह कहा गया था कि यहां से पूरब की ओर पानी बढेगा, लेकिन अब हम डूब रहे हैं और कोई देखने वाला नहीं है। यहां हमारी 10 बीघा जमीन है, पूरब में दोे कट्टा भी जमीन हमारा होता तो हम वहां बसने चले जाते।
इस बार बाढ़ आयी तो हमारे डीएम साहब बोले कि हमारा तटबंध सुरक्षित है। हमें लगता है कि तटबंध की सुरक्षा का सवाल उठता है, उसके लिए चिंता जतायी जाती है, लेकिन उसके बीच में जो लोग हैं, वे सुरक्षित हैं या नहीं इसकी चिंता किसे है? नदी के बीच के लोगों पर बात कहां होती है?
कोशी की जिंदगी का दृश्य।
बाढ़ से हमारी जिंदगी बुरी तरह प्रभावित होती है और इस साल तो बहुत ही अधिक बाढ़ आयी थी। बाढ़ से लोगों की अनाज पानी में डूब कर बर्बाद हो गया और उनके पास खाने की भी दिक्कत है। बहुत सारे लोग किसी से मिले अनाज पर निर्भर हैं। बाढ़ से बहुत सारे पशु पानी में बह गये, लोग भी बहे लेकिन उसका लेखा-जोखा नहीं है। ऐसा लगता है कि बारिश और बाढ़ के पानी से हमारे यहां की जिंदगी हो गई है। हमारे गांव के एक छात्र गुलशन कुमार को इस साल 25 जुलाई को सांप ने डंस लिया। उस दिन नदी की धार बहुत तेज थी, पानी की लहरें उछाल मार रही थीं, ऐसे मौसम में नाव मिलना और जाना आसान नहीं था, काफी मशक्कत के बाद नाव मिली भी, जिस वजह से उसे इलाज के लिए सुपौल सदर अस्पताल ले जाने में देरी हुई। वहां से उसे मधेपुरा रेफर कर दिया गया लेकिन रास्ते में उसकी मौत हो गई। हमारे इलाके में ऐसे हालात में मौतें आम हैं। बढ़े पानी के साथ सांप भी आते है। उनसे बच्चों, बुजुर्गाें व सबके जीवन को खतरा होता है।
हमारे यहां स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं है। अभी इतनी बड़ी बाढ़ के बाद में कोई स्वास्थ्य कार्यकर्ता गांव नहीं आया और आशा कार्यकर्ता व सेविका के जरिये भी कोई कार्य नहीं हुआ। लोकल नेता लोग दौरा करते हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर सुध लेने वाला कोई नहीं है।
पढाई की भी कोई सही व्यवस्था हमारे गांव में नहीं है। पूरे कोशी इलाके में स्कूल लचर है। हमारे गांव में एक प्राइमरी स्कूल है, मिडिल व हाईस्कूल के लिए बच्चे को पढने बाहर दूसरे गांव जाना होता है। बच्चों को हाइस्कूल की पढाई के लिए नाव से जाना होता है और नाव मिलेगा तो वह जा सकेगा नहीं तो वापस लौट जाएगा। शिक्षक पढाई में कम और हाजिरी बनाने में अधिक रुचि लेते हैं।
साइकिल और मोटरसाइकिल को भी पास के बाजार, कस्बे व शहर तक नाव से ही ले जाया जा सकता है, क्योंकि उनके परिवहन के लिए सीधा सड़क मार्ग नहीं है।
बिहार सरकार ने कृषि इनपुट अनुदान देने के लिए अपना पोर्टल खोला, जो 31 अक्टूबर तक खुला रहना था, लेकिन उसे समय से पहले बंद कर दिया गया। 18 तारीख से ही वह बंद है। बाढ प्रभावित हजारों किसान इसके लिए आवेदन नहीं कर पाए। सब परेशान हैं। हमने जिला में और पटना इसके लिए बात की। हमने आग्रह किया कि इसे 31 अक्टूबर तक खुला रखिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कृषि इनपुट योजना के आवेदन के लिए को-आर्डिनेटर पैसा लेकर पेपर पर दस्तखत करते थे। ब्लॉक में दो-तीन पंचायतों के लिए एक को-आर्डिनेटर की तैनाती की जाती है। पर, शिकायत की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। हमलोग कोसी नदी के बीच के लोग हैं, हमारे साथ कई दिक्कतें हैं। कोसी के पूर्वी भाग के किसान इसके लिए आवेदन कर सके, लेकिन बीच वाले बहुत सारे किसान नहीं कर सके, क्योंकि इसकी ऑनलाइन प्रक्रिया होती है और यहां के लोगों को इसमें दिक्कत आती है।
नाव व कटाव कोशी तटबंध के बीच के लोगों के जीवन के दो अहम पक्ष हैं। यहां लोग नाव से यात्रा की तैयारी में दिख रहे हैं और साथ ही कटाव भी दिख रहा है।
इसी तरह बाढ़ पीड़ित के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली जीआर सहायता राशि से बहुत सारे पीड़ित इसलिए वंचित रह गये क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं है। इसके आवेदन के लिए राशन कार्ड की अनिवार्यता नहीं है, लेकिन पंचायत-ब्लॉक के कर्मचारी ने बिना राशन कार्ड वालों का आवेदन हीं नहीं लिया। योजनाओं का लाभ डीबीटी से मिलता है तो बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनका डीबीटी लिंक नहीं है तो उनके पास सहायता राशि नहीं पहुंचती। इसके पीछे भी दिक्कत है। लोगों का आधार अब तक उनके खाते से लिंक नहीं हुआ है। अब अगर आधार के नाम में त्रुटि है तो उससे वह होता नहीं है और फिर लोग सुविधाओं का लाभ होने से वंचित रह जाते हैं। आम लोगों, ग्रामीणों को तकनीकी ज्ञान भी कम है, वे डीबीटी, एनपीसी नहीं समझ पाते हैं। इसलिए भी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। नाम में त्रुटियों से तो बहुत अधिक दिक्कतें होती हैं।
(राजेश कुमार मंडल बिहार के सुपौल जिले में कोशी नदी के बीच स्थित बेलागोठ गांव के निवासी हैं और कोशी नवनिर्माण मंच के सक्रिय सदस्य हैं।)
संपादक नोट – हमने यह आलेख समुदाय की बात, समुदाय के शब्दों में दूसरी कड़ी के रूप में प्रकाशित किया है, जिसके जरिये हम समुदाय की परेशानियों व बातों को उनके शब्दों में सामने लाना चाहते हैं। इसकी पहली कड़ी के रूप में झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के झारिया गांव की 12वीं की छात्रा रतनी बास्के का आलेख छापा था, जिसमें उन्होंने बारिश की अनिश्चितता की वजह से किसानों को होने वाले नुकसान के बारे में बताया है।
सभी तसवीरें राजेश मंडल की।