राहुल सिंह
भूबोल/तेतरी/खैसा(दरभंगा): दरभंगा जिले के उमेश सदा का घर कोसी के पश्चिमी तटबंध के ठीक उस हिस्से के सामने कुछ सौ मीटर की दूरी पर था, जहां वह 29 सितंबर 2024 की रात करीब 12 बजे टूट गया। उमेश का परिवार अब इस इलाके के उन सैकड़ों परिवारों में एक है जो तटबंध पर प्लास्टिक के ऐसे तंबू में रह रहा है, जिसकी लंबाई-चौड़ाई सामान्य इंसान के जितनी भी नहीं है। इन तंबुओं की ऊंचाई बमुश्किल 3 से 4 फीट के बीच है।
उमेश और उनका परिवार सेवार्थ बांटी जा रही खाने-पीने की चीजों और सामुदायिक किचन पर निर्भर है।
उमेश कहते हैं, “हमरो घर स्कूल के पीछू छेले, जब स्कूले नैय बचल त घर कहां से बचतीये” (मेरा घर स्कूल के पीछे था, जब स्कूल ही नहीं बचा तो मेरा घर कहां से बचता)। उमेश अपनी छह सिलाई मशीन और बहुओं के जेवर-सामान बहने पर अफसोस जताते हैं। लेकिन, इससे ज्यादा उन्हें अफसोस इस बात का है कि गांव के एक दो मंजिला मकान में रहेन वाले परिवार को ज्यादा नुकसान हुआ। वह बताते हैं कि पक्का घर होने की वजह से तटबंध टूट जाने की स्थिति में बाढ़ के पानी की तीव्रता का वे सही अनुमान नहीं लगा सके। उस मकान में रहने वाले दो लोग पानी म3 बाह गये।
अब तीन अक्टूबर को पानी का स्तर थोड़ा कम हुआ है और तटबंध की अस्थायी मरम्मत जारी है। इसके लिए ठोस मिट्टी-मोरम की बोरियां डाली जा रही हैं। तटबंध पर एम्बुलेंस, पुलिस और सरकारी महकमों की गाड़ियां दिन भर दौड़ती नज़र आती हैं। बिहार के जल संसाधन विभाग द्वारा जारी सूचना में इस स्थल पर तटबंध के क्षतिग्रस्त होने की बात कही गई है। लेकिन, यहां करीब 200 मीटर तटबंध पूरी तरह से टूट गया है।
कमजोर वर्ग को सबसे ज्यादा दिक्कत
उमेश मुसहर समुदाय से आते हैं और इस समुदाय के सैकड़ों परिवार तटबंध पर गुजारा करने को मजबूर है। दूसरी जातियों के लोग भी इसमें शामिल हैं। हालांकि, जमीनी पड़ताल में मुसहर या अन्य कमजोर तबके के लोग ज्यादा मिले। मुस्लिम परिवार भी बड़ी संख्या में प्रभावित हुए हैं।
कोसी की धारा के बीच में स्थित लछमिनिया गांव के निवासी सतीश यादव कहते हैं, ” पानी बढ़ने पर हम अपने गेहूं को नाव से लेकर तटबंध पर आए, ताकि ऊंचाई पर वह सुरक्षित रहे। लेकिन, यहां भी वह पानी में डूब गया”। वे कहते हैं कि उनका करीब 40 क्विंटल गेहूं बर्बाद हो गया। वे मिट्टी-कंकर मिले बचे गेहूं को तटबंध के एक किनारे सुखाते दिखे।
कई लोगों ने बारिश से बचने और तंबू बनाने के लिए प्लास्टिक नहीं मिलने की शिकायत की, जबकि कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें यह एक अक्टूबर को मिला। आसपास अस्थाई शौचालय कहीं नज़र नहीं आता और दोनों ओर पानी की धार के बीच तटबंध पर उसे बनाना भी लगभग नामुमकिन ही है। सरकारी टैंकरों से कुछ जगहों पर पानी का वितरण होता नजर आया। जगह-जगह हेल्थ कैम्प जरूर नज़र आए। एक हेल्थ कैम्प में तैनात मेडिकल स्टॉफ ने बताया कि इस वक्त उनके यहां ज्यादातर सर्दी-खांसी व हलके बुखार से ग्रस्त बाढ़ पीड़ित आ रहे हैं। दूसरा नंबर पेट की बीमारियों की शिकायत लेकर आने वालों का है।
कोसी पर बना यह तटबंध कई किमी लंबा है। इन दिनों इसके कम से कम 5 किमी लंबाई में बाढ़ प्रभावित रह रहे हैं। तटबंध टूटने से उसका पानी दूसरी ओर बढ़ा और वह कमला नदी की धारा पर बने तटबंध तक फैल गया। इससे इन दोनों तटबंधों के बीच पड़ने वाले गांवों के लोग भी प्रभावित हुए और वे कमला पर बने तटबंध पर शरण लिए हुए हैं। वहां भी कई किमी तक तटबंध लोगों का अस्थाई घर बन गया है। कई लोग तो अभी तंबू डालते ही दिखे।
राहत सामग्री में गड़बड़ी का आरोप
ऐसे ही एक प्रभावित गांव खैसा के मो सब्दुल्लाह ने कहा कि हम चार भाई हैं और हम सबके 10 छोटे बच्चे हैं। उनको लेकर हम यहां बांध पर रहने को मजबूर हैं। उनकी मां रईसा खातून कहती हैं कि बाढ़ ने हमे बर्बाद कर दिया। इनकी बेटी अफसाना खातून जिसकी गांव में ही शादी हुई है, अपने बच्चों के साथ इस हाल में रहने को मजबूर है।
यहां मिले पूरन पंडित नाम के 35 साल के युवक कहते हैं कि 1987 में ऐसी बाढ़ आई थी। इसके बाद 2024 में ऐसी भयानक बाढ़ आई है। हालांकि, पूरन की यह जानकारी बुजुर्गों से सुनी गई बातों पर आधारित है।
वे कहते हैं कि बाढ़ से मवेशियों का भी काफी नुकसान हुआ है। कमला नदी पर बने तटबंध से पूरब एक और तटबंध है, जिसके बारे में स्थानीय लोगों ने बताया कि वह बलान पर है। यानी इस इलाके के लोग तीन तटबंधों के जरिये न सिर्फ बाढ़ से अपनी सुरक्षा की आस रखते हैं, बल्कि ऐसे हालात में उस पर आसरा भी तलाशते हैं।
स्थानीय निवासी कारू पांडे बाढ़ राहत में अनियमितता का आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं कि असल पीड़ितों तक लाभ नहीं पहुंच पा रहा है, क्योंकि शुरू में ही ऐसे लोग राहत सामग्री ले लेते हैं, जिन पर बाढ़ का असर कम है। जगह-जगह सूखे राशन के पैकेटों पर टूटते लोग, खाने की चीज़ों पर गिरते-पड़ते लोग दिखे। कहीं-कहीं कपड़ों को गाड़ियों से फेंक कर वितरण करते स्वयंसेवी लोग व समूह नज़र आए।
अलबत्ता, इलाके में आने वाले नेताओं को लेकर लोगों ने गुस्सा जताया, क्योंकि पानी व कटाव की वजह से वे ग्राउंड जीरो पर नहीं पहुंचते और आसपास के बाज़ार-कस्बे में लोगों से बात कर व जायजा लेकर चले जाते हैं। सरकारी अफसरों को लेकर भी लोगों में गुस्सा है।
मोबाइल चार्ज कराने के पैसे
बाढ़ प्रभावित इलाके में बिजली नहीं है और ऐसे में लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कत मोबाइल चार्ज करने में हो रही है। एक युवक फ़क़ीर मोहम्मद ने कहा कि शुरू में तो लोग 1 पॉइंट (1 प्रतिशत) मोबाइल चार्ज करने का एक रुपया वसूल रहे थे, अगर आप 30 परसेंट या पॉइंट चार्ज करते हैं तो 30 रुपये देने होंगे। पानी कम होने के बाद कुछ लोग आसपास के बाजार या दूसरे गांव में मोबाइल चार्ज करने तक जा रहे हैं। कहीं-कहीं तटबंधों पर ट्रैक्टर पर जरनेटर वाले भी दिखे। वे मुख्य रूप से मोबाइल चार्ज करने के लिए ही जरनेटर लगाए हुए हैं। लोगों के इलेक्ट्रिक लैंप सोलर प्लेट के जरिए चार्ज हो जा रहे हैं। छोटे-मंझोले सोलर प्लेट जगह-जगह तंबुओं के सामने और खंभे पर भी दिखे।