संताली संस्कृति का जीवंत संग्रहालय है चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज, पर्यटक समृद्ध संताल संस्कृति से हो सकेंगे रू-ब-रू

घाटशिला प्रखंड की काशिदा ग्राम पंचायत के तहत लगभग 2.5 एकड़ क्षेत्र में फैला चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज संताल आदिवासियों की संस्कृति की जीवंत नमूना है। यहां संतालों की जीवन पद्धति, धर्म-उपासना, पर्व-त्योहार, संस्कृति व कला का एक साथ दर्शन होगा। इसकी स्थापना कला मंदिर के संस्थापक अमिताभ घोष की पहल पर हुई है। यहां संताल समाज के 100 लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम): एक दशक से अधिक शोध और ज़मीनी काम के बाद पूर्वी सिंहभूम जिले में जमशेदपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज अब पर्यटकों के लिए खुल गया है। यह संताली संस्कृति का एक जीवंत संग्रहालय है, जिसे जमशेदपुर की गैर लाभकारी संस्था कलामंदिर ने स्थानीय समुदाय की भागीदारी से विकसित किया है और अब यह पर्यटकों, दर्शकों व आम लोगों के लिए उपलब्ध है।

घाटशिला प्रखंड की काशिदा ग्राम पंचायत के तहत लगभग 2.5 एकड़ क्षेत्र में फैला यह स्थल एक पारंपरिक संताली गांव का पुनर्निर्माण है, जिसमें समुदाय के रीति-रिवाजों, त्योहारों, भोजन प्रणाली, संगीत और शासन प्रणाली को प्रदर्शित किया गया है। यहां झोपड़ियां, रेस्टोरेंट, कॉन्फ्रेंस हॉल, प्रदर्शन स्थल और संताली लोककथाओं को दर्शाते भित्ति चित्र हैं।

हेरिटेज विलेज का एक विहंगम दृश्य।

संग्रहालय के बारे में बताते हुए संताली समुदाय की लक्ष्मी हंसदा कहती हैं, पिछले छह वर्षों में हमने लगभग 4,000 पेड़ लगाए हैं और इस भूमि को जलाशयों, खेतों और जंगलों से भरे हरित क्षेत्र के रूप में पुनर्जीवित किया है। अब यहाँ पक्षी, कीड़े.मकोड़े और मछलियाँ वापस लौट आई हैं। अब आसपास के खेतों में सालभर खेती संभव है।

परियोजना में पारिस्थितिकी पर भी जोर है। गांव के आंगनों में कदम, महुआ, सागवान, जामुन, आम, कटहल और नीम के पेड़ लगाए गए हैं। पेड़ों को काटे बिना आसपास के जंगलों में सर्पाकार पगडंडियां बनाई गई हैं और पत्थर की बैठने की व्यवस्था की गई है। चीकू, नींबू, गम्हार, कटहल, सिसम और बाँस के नए बागान समुदाय के लिए जलाऊ लकड़ी, चारा और फल उपलब्ध कराएंगे। पेड़ों के वानस्पतिक और संताली नाम भी प्रदर्शित किए गए हैं ताकि लोगों में जागरूकता बढ़े।

संताली नृत्य का एक दृश्य।

पर्यटकों के लिए सुसज्जित जनजातीय कॉटेज, उच्च गुणवत्ता वाले तंबू, सौर स्ट्रीट लाइटें, स्वच्छ पेयजल और साफ-सुथरे शौचालय जैसी सुविधाएं हैं। तालाबों को मछली पकड़ने और बत्तख पालन के लिए सुलभ बनाया गया है। पक्षी दर्शन, पारंपरिक तीरंदाज़ी, फोटोग्राफी और जैव विविधता अध्ययन शिविरों की योजना भी है।

2013 में मिली प्रेरणा अब हुई साकार

इस परियोजना की प्रेरणा 2013 में मिली जब कलामंदिर के शोधकर्ता झारखंड की लुप्त होती कला और संस्कृति का दस्तावेजीकरण कर रहे थे और उनकी मुलाकात 19वीं सदी के संताली शिक्षक व इतिहासकार माझी रामदास टुडू के लेखन से हुई। उनके द्वारा लिखी गई पांडुलिपि खेलवाल बोंगशो धोरोमपुथी संताली इतिहास और दर्शन को बंगाली लिपि में दर्ज करने का प्रयास थी। कलामंदिर के संस्थापक अमिताभ घोष के अनुसार, टुडू के कार्य और दृष्टिकोण ने इस परियोजना की भावना को आकार दिया।

संताली पद्धति से तैयार एक भवन।

यहां पर्यटक पारंपरिक ‘मोरे होर’ परिषद प्रणाली का भी अनुभव कर सकेंगे, जो गांव के पदाधिकारियों जैसे माझी (मुखिया), जोग माझी और नायके (पुजारी) की भूमिका और न्याय प्रणाली को दर्शाती है। भित्ति-चित्रों में पिलचू हरम और पिलचू बुधी की कहानी दिखाई गई है, जिन्हें संताली समुदाय मानव जाति का प्रथम स्त्री-पुरुष मानता है। परिसर में ‘जाहेरथान’ (पूजा स्थल), ‘आखरा’ (नृत्य स्थल) और सिंचाई व मत्स्य पालन के लिए जलाशय भी हैं।

रोजगार सृजन इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य है। लगभग 100 संताली लोग यहां काम करेंगे – 50 पारंपरिक नर्तक और संगीतकार, 20 आतिथ्य सेवाओं में, बाकी चित्रकार, माली, ड्राइवर, सफाईकर्मी और इलेक्ट्रीशियन के रूप में। पर्यटन के व्यस्त मौसम में 35 से 40 स्थानीय महिलाएं दैनिक कार्यों का प्रबंधन करेंगी। एक समय में 18 से 27 पर्यटक और डॉरमिट्री में 68 तक ठहर सकते हैं।

परिसर के अंदर के घरों या भवनों की दीवार पर संताली संस्कृति के अनुरूप पेंटिंग की गई है।

अमिताभ घोष कहते हैं, “यह पहल आजीविका के साथ-साथ समुदाय के सम्मान से भी जुड़ी है। संतालों को अक्सर मुख्यधारा के विकास से अलग महसूस कराया गया है। लेकिन यहां उनकी परंपराओं, खान-पान और मान्यताओं का आदर किया जा रहा है। बेरोजगारी और पलायन से लुप्त हो रही ये परंपराएं अब गरिमा के साथ संरक्षित होंगी।”

भादो मुर्मु के नेतृत्व में बनी ‘हैरिटेज टूरिज्म संचालन समिति’ इस स्थल का प्रबंधन करेगी। मुर्मु कहते हैं, “आज चेंजोड़ा में उत्साह का माहौल है। हमारी मेहनत का फल दिख रहा है। यह पूरे गांव और हमारी संस्कृति के लिए गर्व का क्षण है।”

चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज में परंपरागत तरीके से बागवानी की गई है, जो लोगों को जमीनी अनुभव प्रदान करेगा।

पर्यटकों को सोर्रे, लेटो, पीठा और साल के पत्तों में पका चिकन या मशरूम जैसे पारंपरिक व्यंजन परोसे जाएंगे। बाँस, इमली, आँवला और हाथीपाँव के अचार भी होंगे। शाम को लोकनर्तक ‘लांगड़े’ जैसे संताली नृत्य प्रस्तुत करेंगे। ‘आखरा’ में सोहराई, सरहुल, मकर, बाहा और कर्मा जैसे त्यौहार मनाए जाएंगे।

संताली कुल परंपराओं से प्रेरित दाग चित्र (टैटू प्रिंट) जैसे स्मृति चिन्ह भी उपलब्ध होंगे। ये उसी पुरानी व्यवस्था से प्रेरित हैं, जिसमें अलग-अलग काम अलग कुलों को सौंपे जाते थे – जैसे बढ़ईगीरी हंसदा को, खेती मर्डी को, और शिक्षण हेम्ब्रम को।

संताली पद्धति से स्वागत का दृश्य। तसवीरें: कला मंदिर।

अधिकारी बताते हैं कि इस स्थल को क्षेत्र के अन्य आकर्षणों जैसे बुरुडीह झील, रंकिणी मंदिर, धारागिरी जलप्रपात और घाटशिला स्थित उपन्यासकार विभूतिभूषण बंदोपाध्याय के घर से भी जोड़ा जाएगा।

अमिताभ घोष कहते हैं, “चेंजोड़ा हैरिटेज विलेज हमें याद दिलाता है कि आदिवासी ज्ञान अतीत का अवशेष नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक जीवंत संसाधन है।”

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