हमारे खेत पानी में डूब जाते हैं तो हमारे लोग पंजाब-हरियाणा में धान की बोआई करते हैं

सुपौल से राजेश मंडल


सुपौल (बिहार) : हमारे इलाके में तीन दिन पहले कोशी नदी में पानी बढने से खेत व रास्ते जब जलमग्न हो गए हैं। अब सिर्फ लोगों का घर ही बचा है। 23 जुलाई को बीरपुर स्थित कोशी बराज से पानी छोड़े जाने के बाद नदी में पानी का स्तर काफी बढ गया। हालांकि अगले दिन फिर पानी में कमी आयी।

कोशी के तटबंध के बीच के गांवों के अधिकतर खेत इन दिनों जलमग्न हो गए हैं और नदी के तटीय इलाके में लकड़ी बिखरी हुई है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस साल इस दिन पहली बार बीरपुर बराज पर कोशी का पानी डेढ लाख क्यूसेक के पार 1.73 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया। इसके बाद 24 गेट खोले गए।

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इस वजह से हमारे गांव सुपौल जिले के किशनपुर ब्लॉक के बेलागोठ, बगल के पंचगछिया, बेगमगंज, बगहा में फसलों के खेत पानी में डूब गए हैं। ऐसे में उसमें खरीफ की कोई उपज होने की उम्मीद ही नहीं है।

पानी का स्तर कम होने के बाद का एक दृश्य।

पानी के साथ ढेर सारी लकड़ी बहकर आयी है, जो पानी उतरने के बाद चारों ओर बिखरी हुई है। पानी के साथ विषैले सांप भी आए। हमारे क्षेत्र में सर्पदंश के मामले भी दर्ज होते हैं।

पानी का स्तर बढने के बाद कई दुर्घटनाएं भी होती हैं। कई बार लोग या बच्चे पानी में डूब जाते हैं या फिर सर्पदंश से भी लोगों की मौत हो जाती है। हमारी जिंदगी दशहरा के त्योहार तक कोशी की धार के बीच अटकी रहती है। मई के महीने से दुर्गापूजा तक लोगों बाढ के भय में रहते हैं। इसके बाद ही आशंका कम होती है।

हमारा गांव के पूर्वी व पश्चिमी दोनों दिशा से कोशी की धार गुजरती है और हम बीच में रहते हैं। हमलोगों का कोई पुनर्वास नहीं हुआ है, इसलिए ऐसे जीना हमारी मजबूरी है। हमारे क्षेत्र में लोगों के पास पंजाब-हरियाणा में धान की बोआई के लिए पलायन ही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि हमारा खेत तो पानी में डूब जाता है। कुछ लोग शहर में राजमिस्त्री के साथ मजदूरी कर लेते हैं।

लोग सरकारी सहायता की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। हालांकि सरकार को हमारा उचित पुनर्वास करना चाहिए। पानी बढने के बाद क्षेत्र में दुर्घटनाएं भी बढ जाती हैं।

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