मौसम की मार से खराब हो रहा लोगों की सब्जी का बजट, छोटे व सीमांत किसान प्रभावित

भारत में सामान्यतः आलू, प्याज, टमाटर सहित अन्य सब्जियां प्रमुख रूप से छोटे और सीमांत किसान उपजाते हैं, जो संसाधन से कम संपन्न होते हैं। ऐसे में अति बारिश, तेज गर्मी और अत्यधिक ठंड से होने वाले फसल नुकसान को वे झेल नहीं पाते, पैदावार कम हो जाती है और फिर इसका असर लोगों की रसोई पर पड़ता है।

नई दिल्लीः दिल्ली की आज़ादपुर मंडी की तंग गलियों में कदम रखते ही आपको सब्ज़ियों की गंध और गहमागहमी का शोर सुनाई देगा। ठेलेवाले दाम लगाते हैं, खरीदार झुंझलाते हैं – “भाई, ये टमाटर इतना महंगा क्यों?” दुकानदार कंधे उचकाता है, “साहब, बारिश ने सब चौपट कर दिया, माल ही नहीं आ रहा।”

यानी सब्जियों के बढती कीमतों के पीछे की असली कहानी कहीं खेतों में है, जहाँ जलवायु संकट अब सबसे बड़ा प्रभावी कारक बन गया है।

हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक, ये प्रमुख रूप से ये दो राज्य गर्मियों और बरसात में दिल्ली की थालियों को टमाटर सप्लाई करते हैं। लेकिन 2023 में यहां या तो बेमौसम बारिश हुई या फिर तेज़ धूप और फिर अचानक बाढ़। हिमाचल प्रदेश में टमाटर की पैदावार 10.9 प्रतिशत तक घटी है, जबकि कर्नाटक् में 12.9 प्रतिशत तक की कमी आयी है। इससे कीमतों पर असर पड़ा है।

नतीजा यह हुआ कि जून में जो टमाटर दिल्ली में 18 रुपये किलो बिक रहा था, वो जुलाई आते-आते 67 रुपये किलो हो गया। मंडी में सप्लाई 400-500 टन से घटकर सिर्फ 318 टन रह गई।

दिल्ली की आजादपुर मंडी के एक आढ़ती बताते हैं, “बारिश में खेतों में ही फसल सड़ गई। जो माल आया भी, उसका रंग-रूप बिगड़ गया था। खराब क्वालिटी के कारण दाम गिरने चाहिए थे, पर सप्लाई इतनी कम थी कि दाम आसमान छू गए।”

प्याज़ की कड़वाहट

टमाटर की तरह मौसम की मार ने प्याज की कड़वाहट भी बढा दी। नवंबर 2023 में महाराष्ट्र में ओलावृष्टि और बारिश ने प्याज़ की खड़ी फसल बर्बाद कर दी। इससे उत्पादन में 28.5 प्रतिशत की कमी आयी। दाम 30 रुपये से चढ़ कर 39 रुपये किलो तक पहुँच गए। याद 2010 व 2019 में सियासी संकट ला चुका है। कीमत की वजह से कई कम आय वर्ग वाले परिवारों ने रसोई में प्याज का उपयोग कम कर दिया। इससे कई घरों में चटनी, रायता और सब्ज़ी का स्वाद फीका पड़ गया।

आलू पर ठंड कासंकट

आलू को आमतौर पर “गरीब की थाली का सहारा” कहा जाता है। लेकिन 2023-24 में आलू भी महंगा हो गया। इसकी वजह थी पश्चिम बंगाल में बेमौसम बारिश और उत्तरप्रदेश में ठंड व पाला। उत्तर प्रदेश में ठंड और पाला ने आलू का उत्पादन सात प्रतिशत तक कम कर दिया। आलू अगस्त 2024 में आज़ादपुर मंडी में औसतन 21 रुपये किलो बिका, जबकि पिछले तीन सालों में यही दाम 10-14 रुपये रहता था।

आज याद कीजिए वर्ष 2024 को सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया। इतना ही नहीं इस साल गर्मी के साथ बेमौसम बारिश भी खूब हुई ओले और बाढ से खड़ी फसल वाले खेत बर्बाद हुए। मौसमी बदलाव से सब्जियों की कीमतों के बदलाव को ऐसे समझिए कि जुलाई 2023 में सब्जी की महंगाई दर 37 प्रतिशत थी जो अक्टूबर 2024 में 42 प्रतिशत पर पहुंच गई। उपभोक्ता खाद्य महंगाई 11 प्रतिशत तक बढ गई। यानी जलवायु संकट सीधे-सीधे हमारी रसोई पर वार कर रहा है।

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत के ज़्यादातर टमाटर, प्याज़ और आलू छोटे और सीमांत किसान ही उगाते हैं। इनके पास न तो कोल्ड स्टोरेज है, न ट्रक, न ही बीमा। यानी वे मौसम की मार से ज्यादा बेहाल हैं। एक किसान का कहना है, “बारिश ज्यादा हुई तो फसल गल जाती है, गर्मी पड़ी तो फूल ही झड़ जाते हैं। ऐसे में हम क्या करें? कर्ज़ लेकर बीज बोते हैं और कर्ज़ में ही दब जाते हैं।”

क्या समाधान संभव है?

टमाटर जैसी फ़सलें ग्रीनहाउस में उगाई जा सकती हैं, ताकि बारिश-धूप का असर कम हो। किसानों को ठंडा गोदाम, रेफ़्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट और मंडियों तक तेज़ सप्लाई चेन मिले। सरकार समय पर मौसम की जानकारी और दामों का अंदाज़ा किसानों तक पहुँचाए। छोटे किसानों के लिए बीमा और पोषण सुरक्षा ज़रूरी है, ताकि नुकसान के बाद उनका घर-चूल्हा चल सके।

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