इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन (अंतरराष्ट्रीय गैंडा फाउंडेशन) ने विश्व गैंडा दिवस (22 सितंबर) से ठीक पहले एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें इस जीव के संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों व संरक्षण प्रयास की उपलब्धियों का जिक्र किया गया है। स्टेट ऑफ द राइनो 2025 नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में इस वक्त कुल गैंडों की संख्या 26,700 है। 2022 से 2025 के दौरान के आंकड़े गैडों की संख्या में 430 की वृद्धि दर्शाते हैं। इससे पहले 2022 की गणना में इनकी संख्या 26270 थी।
इस रिपोर्ट में एशिया व अफ्रीका में पाए जाने वाले पांच प्रकार के गैंडों का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इनमें तीन गंभीर रूप से संकटग्रस्त(Critically Endangered), एक खतरे के करीब (Near Threatened) और एक संवेदनशील (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है।
सफेद गैंडा (White rhinos/Ceratotherium simum) : आइयूसीएन ने इसकी संख्या 15,752 होने अनुमान प्रकट किया है और इसे संकटग्रस्त श्रेणी के निकट रखा है। सफेद गैंडे इस प्रजाति की पांच किस्मों में सबसे अधिक संख्या में हैं। अफ्रीका के 13 देशों में लगभग 15,752 सफेद गैंडे हैं। सफेद गैंडे की दो उप-प्रजातियाँ हैं, दक्षिणी और उत्तरी लेकिन चूँकि दुनिया में केवल दो उत्तरी सफेद गैंडे बचे हैं – दोनों मादा – इसलिए इस उप-प्रजाति को कार्यात्मक रूप से विलुप्त माना जाता है। 20वीं सदी की शुरुआत में, दुनिया में 100 से भी कम सफेद गैंडे थे। पर 100 साल में यह संख्या बढी और 2012 तक, यह संख्या बढ़कर 21,000 से भी अधिक हो गई।
फिर, 2012 और 2021 के बीच, उनकी उच्च जनसंख्या ने उन्हें गैंडा शिकारियों का मुख्य लक्ष्य बना दिया। परिणामस्वरूप, इस अवधि के दौरान सफेद गैंडों की संख्या में 24% की गिरावट आई और यह अनुमानित 15,942 रह गई। सफेद गैंडों की आबादी 2021 में 15,942 से बढ़कर 2022 में 16,834 हो गई, जो 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। 2023 में, आबादी फिर से बढ़कर 17,464 हो गई, जो 3.7 प्रतिशत की और वृद्धि दर्शाता है। हालाँकि, 2024 के अंत तक, अफ्रीका में सफेद गैंडों की संख्या घटकर 15,752 रह गई, जो अफ्रीकी गैंडों की आबादी में उल्लेखनीय गिरावट दर्शाता है।
काला गैंडा(Black rhinos/Diceros bicornis) : आइयूसीएन ने इसकी अनुमानित संख्या 6788 बतायी है और इसे गंभीर रूप से संकट ग्रस्त श्रेणी में रखा है। काले गैंडे अफ्रीका के 12 देशों में रहते हैं, जिनकी अनुमानित संख्या 6,788 है। काले गैंडों की तीन उप-प्रजातियाँ हैं। 2024 के अंत तक, 2,597 दक्षिण-पश्चिमी काले गैंडे, 1,471 पूर्वी काले गैंडे और 2,720 दक्षिण-मध्य काले गैंडे थे। चौथी उप-प्रजाति, पश्चिमी काला गैंडा को 2011 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था; इसके अस्तित्व का अंतिम प्रमाण 2006 में कैमरून में मिला था।
काले गैंडे कभी दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाली गैंडा प्रजाति थे, जिनकी संख्या 1960 में पूरे अफ्रीका में 1,00,000 तक थी। 1970 तक, अवैध शिकार के कारण काले गैंडों की संख्या लगभग 65,000 तक कम हो गई थी। उनकी संख्या लगातार गिरती रही और 1990 के दशक के मध्य तक लगभग 2,300 के निम्न स्तर पर पहुँच गई। अब, लगातार अवैध शिकार के दबाव के बावजूद, शक्तिशाली संरक्षण और प्रबंधन रणनीतियों की बदौलत काले गैंडों की आबादी स्थिर बनी हुई है। हालाँकि आबादी में साल-दर-साल उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन संख्या में वृद्धि उत्साहजनक है। काले गैंडों के हालिया आइयूसीएन आकलन ने उनके पुनरुद्धार की पर्याप्त संभावना का संकेत दिया है। यदि वर्तमान संरक्षण प्रबंधन प्रयास जारी रहे, तो आइयूसीएन का मानना है कि 2032 तक जनसंख्या 8,943 तक बढ़ सकती है।
एक सींग वाला गैंडा (Greater one-horned rhinos/Rhinoceros unicornis) : आइयूसीएन ने इसकी संख्या 4,075 होने का अनुमान पेश किया है और इसे वलनरेबल या संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। भारत में यही गैंडा है। बड़े एक सींग वाले गैंडे (राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस) भारत और नेपाल में रहते हैं। पिछले 100 वर्षों में, बड़े एक सींग वाले गैंडों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 100 से भी कम से बढ़कर आज 4,000 से अधिक हो गई है। फरवरी 2025 में, भारत के पश्चिम बंगाल में जलदापाड़ा और गोरुमारा राष्ट्रीय उद्यानों के अधिकारियों ने जनसंख्या सर्वेक्षण किए। पिछले सर्वेक्षण के बाद से जलदापाड़ा में 44 गैंडों की वृद्धि दर्ज की गई, जबकि गोरुमारा में नौ गैंडों की वृद्धि देखी गई। हालांकि बड़े एक सींग वाले गैंडों की संख्या बढ़ रही है, फिर भी उन्हें असुरक्षित श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। अवैध शिकार एक निरंतर खतरा है। जनवरी 2022 से अप्रैल 2025 तक, बड़े एक सींग वाले गैंडों के खिलाफ अपराधों के संबंध में 52 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया।

जावन गैंडा (Javan rhinos/Rhinoceros sondaicus) : आइयूसीएन ने इसकी अनुमानित संख्या 50 बतायी है। यह गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में है। ऐसा माना जाता है कि इंडोनेशिया के द्वीप जावा के जंगगलों में 50 जावन गैंडे बचे हैं। यहां 26 गैंडों की हत्या अवैध रूप से जंगल में घुसे शिकारी गिरोह द्वारा की गई। कैमरा फुटेज से इसकी पुष्टि हुई और पास के एक गांव से 13 संदिग्ध शिकारियों की पहचान हुई। इनमें दो भाई थे जो गिरोह का नेतृत्व करते थे। 2024 में जांच के बाद पुलिस ने शिकारियों को गिरफ्तार किया और दोष सिद्ध होने पर अदालत ने अपराधियों को 12 साल की सजा सुनायी व जुर्माना भी लगाया।
सुमात्रा गैंडा (Sumatran rhinos/Dicerorhinus sumatrensis) : आयूसीएन ने इसकी अनुमानित संख्या 34 से 47 होने की बात कही है। यह भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में है। इंडोनेशिया में सुमात्रा गैंडों की चार अलग-अलग आबादियां हैं और यह माना जाता है कि इनमें से केवल एक जंगली आबादी में प्रजनन के लिए पर्याप्त संख्या में गैंडा हैं। इनकी संख्या 34 से 47 होने का अनुमान है। हालांकि इनके प्रजनन कार्यक्रम एक उम्मीद की किरण जगाते हैं। पिछले 30 सालों में इनकी संख्या में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसे 2015 में मलेशिना में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। अब ये केवल इंडोनेशिया में बचे हैं और वहां भी खंडित वर्षावन में रहने के कारण प्रजनन की उम्र वाले गैंडों का एक-दूसरे से मिलना मुश्किल हो जाता है।
एशिया में गैंडों की स्थिति और भारत-नेपाल की भूमिका
एशिया तीन गैंडों का घर है, जिसमें बड़े सींग वाले, सुमात्रा और जावन। मार्च 2025 तक 4,075 बड़े सींग वाले गैंडे थे, जिसनमें 3,323 भारत में 752 नेपाल में थे। यह संख्या 2022 में दर्ज की गई संख्या 4014 से थोड़ी अधिक है। भारत और नेपाल में गैंडों की आबादी 2007 से लगातार बढ रही है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में निरंतर सफल संरक्षण कार्य व मजबूत कानून के कारण एक सींग वाले गैंडों की आबादी 2007 में 2150 से बढकर 2024 में 3323 हो गई। नेपाल में भी एक सींग वाले गैंडों की आबादी में लगातार वृद्धि हुई है, जो 2007 के 413 से बढ कर 2024 में 752 हो गई है।

फोटो क्रेडिट: काजीरंगा नेशनल पॉर्क।
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जनवरी 2021 से दिसंबर 2024 तक शिकारियों ने एक सींग वाले नौ गैंडों को मार डाला। नेपाल में इसी अवधि के दौरान एक सींग वाले चार गैंडों को मारा गया है। भारत के असम प्रांत में जहां सबसे अधिक एक सींग वाले गैंडे हैं, वहां 2022 से 2024 के बीच चार गैंडों का अवैध शिकार किया गया। इन चारों हत्याओं में गिरफ्तारी हुई और मामला अदालत में चल रहा है।
शिकार की प्रमुख वजह
एशिया में गैंडों के अनोखे सींग की काफी अधिक मांग है। यह इसके शिकार की सबसे प्रमुख वजह है। सींग उसी प्रोटीन से बनते हैं, जिससे बाल बनते हैं। सींग से बनी पारंपरिक दवाइयों को कैंसर सहित कई अन्य बीमारियों में कारगर माना जाता है। सींगों का प्रयोग सजावटी नक्काशी में भी किया जाता है।
गैंडों का शिकार चांदनी रात के समय प्रमुख रूप से किया जाता है। पूर्णिमा के दौरान इनका दिखना आसान होता है। घास में लोटते समय गैंडों की त्वचा कीचड़ से ढक जाती है और उस पर चांद की रोशनी पड़ने से वह चमक उठती है, जिससे शिकारियों को उन्हें देख पाना आसान होता है।
हालांकि इंटनरेशन राइनो फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि गैंडों की निगरानी को नए तरीके अपनाया गया है। इसमें सींग काटना भी एक उपाय है। सींग को काट देने से उनके शिकार की संभावना 78 प्रतिशत तक कम पायी गयी। यह पाया गया कि जिन गैंडों के सिंग काटे गए उनको शिकारियों द्वारा मारे जाने की संभावना कम है। हालांकि यह अंतिम उपाय नहीं है, क्योंकि सींग काटे जाने के बाद शिकारी बचे हुए सींग के हिस्से के लिए भी उन्हें मार सकते हैं।