संताली भाषा व उसके रचना संसार को सहेजते श्याम चरण टुडू

श्याम चरण टुडू ने बांग्ला माध्यम से पढाई की और संताली व हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएट किया। उनका रचना संसार संताली, हिंदी व बांग्ला भाषा के बीच फैला हुआ है, हालांकि संताली भाषा व ओलचिकी लिपि उसके केंद्र में है। उनके रचना संसार के विभिन्न आयाम हैं, जिसके जरिये वे आदिवासी संस्कृति, परंपरा व ज्ञान के संवर्द्धन के लिए प्रयास कर रहे हैं।

श्याम चरण टुडू या श्याम सी टुडू की उम्र 42 साल है, लेकिन संताली भाषा के रचना संसार को संपन्न करते हुए वे अबतक करीब 35 पुस्तकों का लेखन, संपादन, अनुवाद कर चुके हैं। उनका रचना संसार संताली, हिंदी और बांग्ला भाषाओं में फैला हुआ है। वे प्रकृति, जीवन, नारी पर सुंदर कविताओं की भी रचना करते हैं। उनकी कविताएं यह बताती है कि आदिवासी होना कितना जरूरी है और उन्हें सभ्य नहीं बनाया जा सकता, बल्कि उनसे सभ्य होना सीखा जा सकता है। क्योंकि, उनका जीवन स्वयं पर नहीं समुदाय-सामूहिकता व प्रकृति-पृथ्वी पर केंद्रित होता है।

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका प्रखंड के दाबांकी गांव के निवासी श्याम सी टुडू फिलहाल पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले के सालबोनी कॉलेज में संताली भाषा के सहायक प्राध्यापक के रूप में तैनात हैं। वे सालबोनी कॉलेज में संताली पढाते हैं। दिलचस्प यह कि उन्होंने शुरुआत में बांग्ला माध्यम में पढाई की है और संताली व हिंदी भाषाओं में पोस्ट ग्रेजुएट किया है। श्याम चरण टुडू पश्चिम बंगाल के विद्यासागर विश्वविद्यालय से संताली भाषा के पीएचडी स्कॉलर भी हैं।

श्याम चरण टुडू ने हिंदी में संताली भाषा शिक्षा नाम से एक किताब लिखी है, जिसके जरिये ऐसे लोग जो संताली भाषा नहीं जानते हैं, वे संताली सीखने व लिखने की शुरुआत कर सकते हैं। इस पुस्तक में संताली वर्णमाला, वाक्य बनाने के सूत्र, हिंदी संताली शब्दकोश, संताली पहेलियां और मुहावरे शामिल है।

संताली बुक्स में उपलब्ध संताली साहित्य व भाषा की पुस्तकें।

श्याम टुडू ने 2010 में दाबांकी प्रेस प्रकाशन संस्था की स्थापना की, जिसका उद्देश्य संताली साहित्य का प्रकाशन व संताली लेखकों को सामने लाना व उन्हें मंच प्रदान करना था। फिर वर्ष 2019 में इस प्रकाशन संस्थान का नाम संताली बुक्स किया गया। हालांकि कॉलेज में योगदान देने के बाद अब प्रकाशन का काम उनकी पत्नी सुप्रिया हांसदा और उनके छोटे भाई शामु टुडू संभालते हैं। श्याम बताते हैं कि बतौर प्रकाशक उन्होंने 2010 में भोगला सोरेन की पहली पुस्तक राही रावाँक् काना संताली भाषा व ओलचिकी लिपि में प्रकाशित की। यह एक नाटक है। इसके लिए भोगला सोरेन को साहित्य आकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

2010 में श्याम सी टुडू के द्वारा प्रकाशित की गई लेखक भोगला सोरेन की पहली संताली पुस्तक जिसे साहित्य आकादमी पुरस्कार मिला।

खुद श्याम टुडू भी साहित्य आकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। उन्हें वर्ष 2012 में साहित्य आकादमी का युवा लेखक पुरस्कार प्राप्त हुआ। वे झारखंड से संताली भाषा में यह पुरस्कार पाने वाले पहले शख्स हैं। उन्हें यह पुरस्कार कविता संग्रह जाला दाक् के लिए दिया गया था।

श्याम सी टुडू की एक संताली पुस्तक का कवर।

श्याम सी टुडू की लिखी दो पुस्तकें संताली भाषा विज्ञान – पारसि साणेस और थ्योरी ऑफ लिटरेचर – साँवहेत् साड़िम कॉलेज की कक्षाओं में पढाई जाती है। उनके द्वारा शुरू किए गए प्रकाशन संताली बुक्स ने अबतक करीब 100 किताबें प्रकाशित की है, जिसमें 95 प्रतिशत से अधिक किताबें संताली भाषा और ओलचिकी लिपि में प्रकाशित की गई हैं। वे कहते हैं, झारखंड, पश्चिम बंगाल व ओडिशा के लेखकों की किताबें प्रमुख रूप से हमारे प्रकाशन से प्रकाशित होती है। इसके साथ ही बिहार व असम के लेखकों की भी किताबें हमने प्रकाशित की है।

एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्याम सी टुडू।

श्याम सी टुडू के भाई शामु टुडू कहते हैं, “जमशेदपुर में संताली पुस्तकों का हमारे आसपास के इलाके में एक हमारा ही प्रतिष्ठान है, हालांकि अन्य जगहों पर संताली प्रतिष्ठान हैं, ऐसे में हम स्कूली व कॉलेज के छात्रों के लिए जरूरी संताली पुस्तकों का भी प्रबंध करते हैं”। वे कहते हैं – “नौवीं-दसवीं से लेकर कॉलेज की सभी कक्षाओं के लिए संताली पुस्तकों की मांग रहती हैं और हम लेखकों से संपर्क करते हैं। जमशेदपुर के करनडीह में एक क्लब द्वारा बच्चों को ओलचिकी लिपि सिखाई जाती है, इसलिए वहां से भी पुस्तकों की मांग होती है”।

श्याम चरण टुडू के छोटे भाई शामु टुडू जो उनके द्वारा संताली भाषा को लेकर शुरू किए गए काम को आगे बढा रहे हैं।

लिपि और आर्थिक पक्षा पर श्याम टुडू का दृष्टिकोण

श्याम सी टुडू एक सवाल के जवाब में कहते हैं कि ओलचिकी लिपि में पुस्तकों का प्रकाशन सहज है और हर लिपि के विकास का क्रम चलता रहता है। वे ओलिचिकी लिपि के प्रसार के लिए नई पीढी में इसे सिखाने पर जोर देते हैं। क्या संताली भाषा में किताबों का प्रकाशन आर्थिक रूप से वहनीय है, इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि यह न नफा, न नुकसान का काम है। यानी जो लागत है वो तो निकल जाती है।

श्याम सी टुडू की एक बांग्ला पुस्तक का कवर।

श्याम सी टुडू पांच ऐसी संताली पत्रिकाओं का संपादन करते हैं जो द्विमासिक या त्रिमासिक हैं। इनके नाम हैं – पांजा – पदचिह्न, ओनहड़े – कविता, तोरजोमा -अनुवाद, जुवान ओनोलिया – युवा लेखक, सार जोम सावहेत् – घायल साहित्य। वे बताते हैं कि इन पत्रिकाओं को प्रिंट कर हम दुकानों पर भेजते हैं, जहां से इनकी बिक्री होती है।

श्याम सी टुडू की एक हिंदी पुस्तक का कवर।

वे संताली लेखकों के संगठन जुवान ओनोलिया (युवा लेखक) के संस्थापक सचिव हैं और इससे करीब 500 से अधिक युवा जुड़े हुए हैं। वे ऑल इंडिया संताली लेखक संघ के वर्ष 2015 से सहायक महासचिव भी हैं। उन्होंने संताली भाषा और ओलिचिकी लिपि को सिखाने में मदद के लिए यू ट्यूब चौनल भी शुरू किया है, जिसे आप इस लिंक के जरिये देख सकते हैं – https://www.youtube.com/@shyamctudu626

श्याम सी टुडू की एक कविता –

आदिवासियों को रहने दो वहीं

आदिवासियों को
रहने दो वहीं
खाने दो वही
पीने दो वही
पहनने दो वही
जो वे चाहते हैं।

आदिवासियों को
सिखने दो अपने तरीके से
पढ़ने दो अपने तरीके से
शासन चलाने दो अपने तरीके से
न्याय भी करने दो अपने तरीके से
जैसा वे चाहते हैं।

आदिवासियों पर
शिक्षा मत थोपो
मुख्य धारा में न लाओ
खाने और रहने के तरीके न सिखाओ
सभ्य मत बनाओ
सभ्य होना उनसे सीखो।

आदिवासियों को
खुश देखना चाहते हो अगर
संसार की हरियाली बचाना चाहते हो अगर
पृथ्वी को बचाना चाहते हो अगर …
आदिवासियों को
रहने दो वहीं
उन जंगलों में
उन पहाड़ों में
जहां वे रहना चाहते हैं।

(राहुल सिंह से श्याम चरण टुडू व शामु टुडू से हुई बातचीत पर आधारित आलेख।)

श्याम सी टुडू से उनके इमेल पर संपर्क किया जा सकता है shyamtudu83@gmai.com

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