संतालों के गौरव का प्रमाण ऐतिहासिक संताल कटा पोखर की चहारदीवारी क्षतिग्रस्त

दुमका के रानीश्वर से गौतम चटर्जी की रिपोर्ट


झारखंड के दुमका जिले के रानीश्वर प्रखंड के दिगुली स्थित ऐतिहासिक संताल कटा पोखर की चहारदीवारी क्षतिग्रस्त हो गई है। यह पोखर 1855 के संताल विद्रोह से जुड़ा है। पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे दिगुली गांव में स्थित संताल काटा पोखर का सौंदर्यीकरण किया गया था एवं लोहे के ग्रील से घेराबंदी कर उसे चहारदीवारी का स्वरूप दिया गया था। पर, लोहे का ग्रिल धराशायी हो गया है।

साथ ही यहां पथ निर्माण प्रमंडल, दुमका के द्वारा पोखरा के पास पोखर के संक्षिप्त इतिहास से जुड़ा लगाया गया होडिंग भी धराशायी हो गया हैं। यह स्थल प्रखंड मुख्यालय रानीश्वर से आठ किलो मीटर की दूरी पर पश्चिम बंगाल की सीमा के बेहद करीब है। इस पोखर को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विकसित करने का कार्य दुमका के पूर्व उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने शुरू करवाया था।

बशेष प्रमंडल दुमका के माध्यम से यहां अस्सी लाख की लागत पर संताल विद्रोह के इतिहास से जुड़ा पोखर का सौंदर्यीकरण एवं लोहे की चहारदीवारी निर्माण कराया गया। अब यह नीचे गिर गया है और स्थानीय प्रशासन एवं स्पेशल डिवीजन दुमका के अभियंता बेखबर बने हुए हैं।

1855 के संताल बिद्रोह के मार्मिक समापन के समय यह इलाका बीरभूम जिला के अधीन था। 56 साल के बाद 1911 में बिहार राज्य गठन के समय यह स्थल संताल परगना जिले के साथ जोड़ा गया था। उस बिद्रोह के 167 साल के बाद भी यहां के इतिहास को सही स्थान नहीं मिला है। अंतिम सर्वे रिकार्ड में पोखर को संताल काटा पोखर नाम से दर्ज किया गया है। बर्ष 2000 में सर्वप्रथम झारखंड बंग भाषी जागरण पत्रिका में संताल काटा पोखर का इतिहास को प्रकाशित किया था। लगातार बांग्ला एवं हिंदी पत्र पत्रिकाओं में इस पोखर के इतिहास को प्रकाशित करने के बाद दुमका जिला प्रशासन ने विशेष रुचि लेकर इस पोखर को राष्ट्रीय ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पहल शुरू की है। डा रामदयाल मुंडा शोध संस्थान में भी संतााल काटा पोखर के इतिहास को जगह दी गई है।

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