पश्चिम बंगाल सरकार आम मरीजों को नजरअंदाज कर स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण कर रही है: पीबीकेएमएस

16 अक्टूबर 2025 को पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर आइपीजीएमइआर एंड एसएसकेएम हॉस्पिटल के प्राइवेट केबिन बिल्डिंग में पांच हजार रुपये से 15 हजार रुपये प्रतिदिन की दर से निजी केबिन और 350 रुपये में सःशुल्क ओपीडी परामर्श की अनुमति दे दी। राज्य सरकार के इस कदम की पश्चिम बंगाल के प्रमुख मजदूर संगठन पीबीकेएमएस ने कड़ी निंदा की है और इसे स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की कोशिश बताते हुए वापस लेने की मांग की है।

कोलकाता: पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वार राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की कोशिशों की कड़ी आलोचना की है। पीबीकेएमएस ने कहा है कि 16 अक्टूबर 2025 को राज्य सरकार ने एक अधिसूचना के माध्यम से आइपीजीएमइआर एंड एसएसकेएम हॉस्पिटल के प्राइवेट केबिन बिल्डिंग अनोनियो (Anonyo) में भुगतान वाली निजी स्वास्थ्य सेवा की शुरुआत की है।

पीबीकेएमएस ने अपने बयान में कहा है कि 5,000 से 15,000 रुपये प्रतिदिन की दर से निजी केबिन और 350 रुपये में सशुल्क ओपीडी परामर्श की अनुमति देने वाला यह कदम पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के व्यवस्थित निजीकरण की दिशा में एक और कदम है। ऐसे समय में जब आम मरीज सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों, डॉक्टरों और बुनियादी ढाँचे की भारी कमी से जूझ रहे हैं, राज्य की प्राथमिकता सभी के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना होनी चाहिए, न कि उन लोगों के लिए विशेष स्थान बनाना जो भुगतान करने में सक्षम हैं। एक सार्वजनिक अस्पताल के अंदर एक निजी क्षेत्र बनाकर सरकार प्रभावी रूप से स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को बेच रही है जो एक अधिकार के रूप में उपलब्ध होनी चाहिए, न कि एक विशेषाधिकार के रूप में

पीबीकेएमएस ने कहा है कि यह निर्णय न केवल नैतिक रूप से अक्षम्य है, बल्कि संवैधानिक रूप से भी अव्यवहार्य है। स्वास्थ्य के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, जिनमें पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति एवं अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य (1996 एससीसी (4) 37) – Paschim Banga Khet Mazdoor Samity & Ors. vs. State of West Bengal & Anr. (1996 SCC (4) 37)जो हमारे ही संगठन द्वारा दायर एक मामला है, भी शामिल है। उस ऐतिहासिक निर्णय में, न्यायालय ने राज्य को चिकित्सा सुविधाओं को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि तत्काल देखभाल की आवश्यकता वाले किसी भी मरीज को सरकारी अस्पताल से कभी भी वापस न भेजा जाए।

लगभग तीन दशक बाद उन निर्देशों को लागू करने और गरीबों के लिए मुफ्त गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा का विस्तार करने के बजाय, राज्य ने विपरीत रास्ता चुना है सार्वजनिक अस्पतालों का व्यवसायीकरण करना और मौजूदा संसाधनों को शुल्क.आधारित सेवाओं की ओर मोड़ना। यह अनुच्छेद 47 के तहत राज्य के संवैधानिक कर्तव्य का घोर उल्लंघन है, जो उसे प्राथमिक जिम्मेदारी के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का आदेश देता है।

सरकार का यह दावा कि ये सेवाएँ “आत्मनिर्भर आधार” पर संचालित होंगी, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के वित्तपोषण का भार राज्य से हटाकर जनता पर डालने की उसकी मंशा को उजागर करता है। करदाताओं के पैसे से जो बनाया जा रहा है, वह अब अमीरों के लिए आरक्षित किया जा रहा है, जबकि गरीबों को और हाशिये पर धकेला जा रहा है।

पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति ने मांग की है कि इस आदेश को तुरंत वापस लिया जाए। सार्वजनिक अस्पताल जनता की सेवा के लिए हैं, बीमारी से लाभ कमाने के लिए नहीं। सरकार को यह याद रखना चाहिए कि जीवन के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है, और सार्वजनिक स्वास्थ्य बिक्री के लिए नहीं होना चाहिए।

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