पंडित रघुनाथ मुर्मू की जयंती के मौके पर दो संताल युवाओं ने शुरू किया बच्चों के लिए ओलिचिकी का निःशुल्क ट्यूशन

ओलचिकी के साथ आदिवासी बच्चों को अन्य विषयों की भी शिक्षा दी जाती है, इसके साथ ही सप्ताह के आखिरी दिन आदिवासी संस्कृति से उन्हें अवगत कराया जाता है ताकि वे अपनी संस्कृति को न भूलें और उसका महत्व समझें


दुमका:
संताली भाषा की लिपि ओलचिकी के जनक पंडित रघुनाथ मुर्मू के जयंती (5 मई) के पावन अवसर पर मासलिया प्रखंड की रांगा पंचायत के अंतर्गत झिलवा गांव के युवा शुरू मुर्मू (पुरुष) और चिंतामुनि मरांडी(लड़की) के साझा प्रयास से से ग्रामीण बच्चों के लिए गांव में ही मुफ्त ओलचिकी ट्यूशन की शुरुआत की गई है।

शुरू मुर्मू ने पोस्ट ग्रेजुऐशन तक की पढाई की है, उनका कहना है ओलिचिकी लिपि व संताली भाषा में आदिवासी बच्चों को शिक्षा देना उनका सामाजिक दायित्व है।

शुरू मुर्मू ने पोस्ट ग्रेजुएट की पढाई की है जबकि चिंतामुनि मरांडी स्नातक में पढ़ाई कर रही हैं। इन दोनों का कहना है कि वे पंडित रघुनाथ मुर्मू से काफी प्रभावित हैं, जिस तरह पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा ओलचिकी का अविष्कार कर संताल आदिवासियों में शिक्षा ललक जगायी गयी, वह प्रेरक है। उन्होंने कहा कि उससे प्रेरित होकर ही आज हम दोनों ने ओलचिकी का मुफ्त ट्यूशन शुरू किया है। उनके अनुसार, ओलचिकी हम संताल आदिवासियों का अपना लिपि है। इस लिपि के कारण हम संताल आदिवासियों को पूरे विश्व मे अलग पहचान मिलती है। इसलिए यह हमारी भी सामाजिक जिम्मेवारी है कि इसका प्रचार-प्रसार हम करें और इसमें बच्चों को शिक्षा दें। इन दोनों के ट्यूशन में वर्ग एक से लेकर वर्ग आठ के बच्चे हैं।

संताली भाषा व ओलिचिकी लिपि में आदिवासी बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना सहज है और यह प्रयास संताल अस्मिता से भी जुड़ा है।

बच्चों को ओलचिकी शिक्षा के साथ साथ स्कूल में पढ़ाई जाने वाली हिंदी, अंग्रेजी, गणित आदि विषयों की भी शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही बच्चों को आदिवासी संस्कृति और सभ्यता की शिक्षा भी दी जा रही है। बच्चों को सप्ताह के सातों दिन पढाया जाता है। सोमवार से शनिवार तक ओलचिकी और स्कूल का ट्यूशन दिया जाता है और रविवार को बच्चों को उनकी आदिवासी संस्कृति और सभ्यता का शिक्षा दी जाती है और पूज्य स्थल मांझी थान में सप्ताहिक पूजा की जाती है।

चिंतामुनि मरांडी स्नातक में पढाई कर रही हैं, लेकिन आदिवासी बच्चों की शिक्षा व उनके अंदर सांस्कृतिक चेतना लाने के लिए वे तत्पर हैं।

इस पहल से बच्चे और उनके परिजन बहुत खुश हैं। इस मौके पर रीनू मुर्मू, ललिता बास्की, प्रमिला मुर्मू, रीमा बास्की, रोशनी मुर्मू, शिल्पा मुर्मू, बासुदेव बास्की, फिलिप मुर्मू, फिरोज मुर्मू, जियो मुर्मू, अविनाश सोरेन, संजय हेम्ब्रम, सुमित बास्की, जीतलाल सोरेन, मुस्कान मुर्मू, निशा हेम्ब्रम, रविचांद हेम्ब्रोम, जयराम बास्की, शर्मिला हेम्ब्रम आदि छात्र-छात्रा उपस्थित थे।

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