संताल परगना के संताल आदिवासी पिछले कुछ महीनों से ओलचिकी व संताली को व्यापक मान्यता देने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। उनका तर्क है कि पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में अगर संताली और ओलिचिकी को व्यापक मान्यता मिली है तो झारखंड में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है?
दुमका: दुमका जिले के मसलिया प्रखंड के रांगा गांव में ग्रामीणों ने ओलचिकी लिपि को व्यापक मान्यता दिलवाने की मांग को लेकर 10 अप्रैल को मोड़े मझी का आयोजन किया। संताल स्वशासन व्यवस्था में यह पांच से आठ गांव के स्तर की इकाई है और इन गांवों के लोग इसकी बैठक में शामिल होते हैं।
मोड़े मांझी संताल आदिवासियों के स्वशासन व्यवस्था मंझी परगना की एक अहम बैठक होती है। झारखंड राज्य में KG से PG सभी शिक्षण संस्थानों में संताल आदिवासी की ओलचिकी लिपि से भी सभी विषयों कि पढाई संताली से शुरू करने, संताली भाषा को प्रथम राज्य भाषा घोषित करने और दुमका व राज्य के संताल बहुल क्षेत्र के सभी छुटे हुए सरकारी भवनों के नामपट्ट संताली की ओलचिकी लिपि से भी लिखने के मांग को लेकर ग्रामीणों ने यह आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता लखिन्दर मरांडी ने की।

मोड़े मांझी की बैठक में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी हिस्सा लिया।
ग्रामीणों का कहना है कि झारखंड राज्य का गठन मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए किया गया था। झारखंड राज्य बनने के 25 वर्षों के बाद भी आदिवासी समुदायों का संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास अपेक्षित स्तर तक नहीं हुआ है। जिसका मुख्य कारण संताल आदिवासी का शैक्षणिक स्तर निम्न होना है। इसे अपनी भाषा और अपनी लिपि के माध्यम से सुधारा जा सकता है।
ग्रामीणों का यह भी कहना है कि पड़ोस के पश्चिम बंगाल में संताल आदिवासियों की संख्या झारखंड के तुलना में कम है, लेकिन वहां सभी शिक्षण संस्थानों में संताल आदिवासियों की ओलचिकी लिपि से भी सभी विषयों का पढाई होती है तो झारखंड में क्यों नही? इसके साथ-साथ ओडिशा, आसाम जैसे राज्य में भी संताली भाषा की ओलचिकी लिपि को मान्यता मिली हुई है। ओलचिकी लिपि संताल समाज के लिए स्वदेशी और स्वंय की लिपि है। इसके आविष्कारक संताली के विद्वान व संताल समाज से आने वाले पंडित रघुनाथ मुर्मू हैं। उनके द्वारा आविष्कृत लिपि में संताली को 100 प्रतिशत शुद्ध और सबसे वैज्ञानिक स्वरूप में लिखा जाता है।
बैठक के दौरान यह मांग रखी गई कि झारखंड राज्य में केजी से पीजी तक पाठ्यपुस्तकों को संताली की ओलचिकी लिपि में छपवाया जाए और पठन-पाठन करवाया जाए। सरकारी शिक्षण संस्थानों में ओलिचिकी शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। संताली को प्रथम राजभाषा घोषित किया जाए। महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों व भवनों में ओलिचिकी में नाम पट्ट लिखा जाए।
मोड़े मंझी की बैठक में ग्रामीणों ने यह भी निर्णय लिया कि बहुत जल्द मुख्यमंत्री और विधायको के नाम मांग पत्र लिखा जाएगा। मोड़े मंझी में में रूपेश सोरेन, अम्बिका मुर्मू, सुनील किस्कू, मंत्री सोरेन, बालकिशोर हेम्ब्रम, लुखिन हेम्ब्रम, जयदेव मुर्मू, सुशील मरांडी, गोसाई सोरेन, वकील मरांडी, मोटा मरांडी, हीरामनि टुडू, किरण मुर्मू, राजेश हेम्ब्रम, शरबेश्वर हांसदा, सुमेश्वर मरांडी, पोरमे मुर्मू, राजेश टुडू, राजेन्द्र हेम्ब्रम, अजयलाल टुडू, शुरू मुर्मू के साथ कई गांव के मंझी बाबा, योगमंझी, नायकी, गुडित, प्राणिक आदि उपस्थित थे।