मनरेगा को खत्म करने लाया गया नया विधेयक मजदूरों व राज्यों के अधिकारों का हनन: नरेगा संघर्ष मोर्चानरेगा संघर्ष मोर्चा ने मनरेगा को खत्म करने के लिए केंद्र के नए रोजगार विधेयक पर उठाए सवाल
नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार संसद में ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के लिए विकसित भारत – रोजगार आजीविका मिशन विधेयक 2025 वीबी-जी राम जी की निंदा करते हुए इससे मनरेगा के तहत श्रमिकों को मिले कानूनी अधिकारों को खत्म करने की कोशिश बताया। नरेगा संघर्ष मोर्चा ने कहा है कि वह केंद्र के इस नए विधेयक को खारिज करता है और इसके खिलाफ संघर्ष किया जाएगा
नरेगा संघर्ष मोर्चा ने इस मुद्दे पर एक विस्तृत बयान जारी कर बिंदुवार इस विधेयक पर सवाल उठाया है और कहा है कि यह राज्य के अधिकारों का हनन करता है और केंद्र को अधिक अधिकार देने के साथ जवाबदेही से भी मुक्त करता है। मोर्चा ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार ने यह विधेयक मजदूर समूहों से बिना किसी सलाह-मशविरे के पेश किया गया है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा ने कहा है कि इस विधेयक के जरिये केंद्र को अत्यधिक विवेकाधीन शक्ति देने का प्रावधान है। मनरेगा काम के अधिकार का एक वैधानिक अधिकार स्थापित करता है जो मांग पर आधारित है और इसके तहत किसी भी ग्रामीण क्षेत्र में अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को काम दिया जाना चाहिए। लेकिन, नए विधेयक (VB-G RAM G बिल के तहत) की धारा 5(1) में कहा गया है कि “राज्य सरकार, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित राज्य के ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में, हर उस परिवार को जिसके वयस्क सदस्य शारीरिक काम करने के लिए स्वेच्छा से तैयार हैं, कम से कम 125 दिनों का गारंटीशुदा रोज़गार प्रदान करेगी।” इसलिए, यदि किसी ग्रामीण क्षेत्र को केंद्र द्वारा अधिसूचित नहीं किया जाता है, तो उस क्षेत्र के लोगों के लिए काम का कोई अधिकार नहीं है, जिससे सार्वभौमिक रूप से गारंटीशुदा रोज़गार प्रभावी रूप से केंद्र सरकार की दया पर चलने वाली किसी अन्य योजना में बदल जाता है।

मनरेगा अपनी शक्ति अपनी मांग-आधारित प्रकृति से प्राप्त करता है, यानी हर ग्रामीण मज़दूर को 15 दिनों के भीतर काम दिया जाना चाहिए, ऐसा न होने पर वह बेरोजगारी भत्ता पाने का हकदार होता है। मज़दूरी का 100% केंद्र सरकार का विशेषाधिकार है। हालांकि, VB-G RAM G बिल की धारा 4(5) में कहा गया है “केंद्र सरकार हर वित्तीय वर्ष के लिए राज्य-वार मानदंड आवंटन तय करेगी, जो केंद्र सरकार द्वारा तय किए गए ऑब्जेक्टिव पैरामीटर पर आधारित होगा,” जबकि धारा 4(6) में कहा गया है कि “किसी राज्य द्वारा अपने मानदंड आवंटन से ज़्यादा किया गया कोई भी खर्च राज्य सरकार द्वारा ऐसे तरीके से और ऐसी प्रक्रिया से वहन किया जाएगा जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा तय किया जा सकता है।” यह केंद्र सरकार को राज्यों को आवंटित किए जाने वाले फंड की मात्रा मनमाने ढंग से तय करने का अधिकार देता है, जो बदले में यह तय करेगा कि उस राज्य में कितने दिनों का रोज़गार दिया जा सकता है। यह मनरेगा के तर्क को पूरी तरह से उलट देता है, जहाँ फंडिंग मांग के अनुसार होती है, एक सप्लाई-आधारित सिस्टम में जहाँ मांग को पहले से तय बजट के अनुरूप होना चाहिए।
राज्यों पर बोझ बढाने वाला है पस्तावित विधेयक
नरेगा संघर्ष मोर्चा ने कहा है कि नए प्रस्तावित विधेयक राज्यों पर बोझ बढाने वाला है। मनरेगा के तहत केंद्र सरकार 100 प्रतिशत मजदूरी और 75 सामग्री मजदूरी के लिए जिम्मेवार है। व्यवहार में इसका मतलब है कि केंद्र व राज्यों के बीच 90ः10 का लागत बंटवारा है। नरेगा संघर्ष मोर्चा ने कहा है कि नए प्रस्तावित विधेयक राज्यों पर बोझ बढाने वाला है। मनरेगा के तहत केंद्र सरकार 100 प्रतिशत मजदूरी और 75 सामग्री मजदूरी के लिए जिम्मेवार है। व्यवहार में इसका मतलब है कि केंद्र व राज्यों के बीच 90ः10 का लागत बंटवारा है।
G-RAM-G बिल की धारा 22(2) में कहा गया है कि “केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच फंड-शेयरिंग पैटर्न उत्तर पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर) के लिए 90:10 और विधायिका वाले अन्य सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 60:40 होगा।” यह क्लॉज़ न केवल राज्यों पर भारी बोझ डालता है, बल्कि गरीब और ज़्यादा प्रवासी भेजने वाले राज्यों पर भी असमान रूप से असर डालता है, जिन्हें ग्रामीण रोज़गार की ज़्यादा ज़रूरत है। बढ़ा हुआ वित्तीय बोझ राज्यों को वित्तीय रूढ़िवादिता अपनाने और श्रमिकों की काम की मांग को रजिस्टर न करने के लिए मजबूर करेगा।
मोर्चा ने कहा है कि 73वें संशोधन के अनुसार, मनरेगा में कामों की योजना ग्रामसभा के माध्यम से स्थानीय जरूरतों के आधार पर की जाती थी। लेकिन इस प्रावधान को VB-G RAM G बिल के शेड्यूल 1, क्लॉज़ 6(4) द्वारा पलट दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि “विकसित भारत नेशनल रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक राज्यों, ज़िलों और पंचायती राज संस्थानों को प्राथमिकता वाले इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों की पहचान करने, काम के डिज़ाइनों को मानकीकृत करने, और यह सुनिश्चित करने में मार्गदर्शन करेगा कि सार्वजनिक निवेश ग्राम पंचायत, ब्लॉक और ज़िला स्तरों पर संतृप्ति परिणामों में मापने योग्य योगदान दें।” योजना प्रक्रिया को स्थानीय से एक पूर्व-निर्धारित केंद्रीकृत प्राथमिकता प्रणाली में स्थानांतरित करने से 73वें संवैधानिक संशोधन का उल्लंघन होगा।

मोर्चा ने डिजिटल हाजरी बनाने के प्रावधानों पर भी सवाल उठाया है। कहा है कि श्रमिक संगठनों ने आधार आधारित भुगतान प्रणालियों व डिजिटल अटेंडेंस की कमियों को बार-बार उजागर किया है। इसके बावजूद नए विधेयक में बायोमैट्रिक प्रमाणीकरण के उपयोग का ढांचा पेश करने का प्रयास किया गया है।
60 दिन का तय ब्लैक आउट पीरियड
मनरेगा में कोई भी ग्रामीण निवासी साल के किसी भी समय काम की मांग कर सकता है और काम पा सकता है। VB-G RAM G बिल की धारा 6(2) में कहा गया है कि “राज्य सरकारें एक वित्तीय वर्ष में साठ दिनों की अवधि पहले से अधिसूचित करेंगी, जिसमें बुवाई और कटाई के चरम कृषि मौसम शामिल होंगे, जिसके दौरान इस अधिनियम के तहत काम नहीं किए जाएंगे।” यानी ज़रूरतमंद और काम करने के इच्छुक मज़दूर, खासकर महिला मज़दूर, अब कम से कम 2 महीने के लिए कानूनी रूप से काम से वंचित रहेंगे।
नरेगा संघर्ष मोचा ने कहा है कि केंद्र का नया बिल कोई सुधार नहीं बल्कि दशकों के निरंतर संघर्षांे से मजदूरों द्वारा जीते गए लोकतांत्रिक और संवैधानिक गारंटियों को वापस लेना है। केंद्र सरकार एक ऐतिहासिक अधिकार आधारित कानून को खत्म करना चाहती है और काम के अधिकार को मनमानी खैरात के रूप में सीमित करना चाहती है। यह संविधान के 73वें संशोधन को कमजोर करता है और श्रमिकों, ग्रामसभाओं और राज्यों की शक्तियों को छीन कर केंद्र सरकार के हाथों में देकर सामाजिक व आर्थिक न्याय के मूल पर चोट करता है।