केंद्र सरकार ने कलकत्ता हाइकोर्ट के राज्य में फिर से एक अगस्त 2025 से मनरेगा का काम शुरू करने के आदेश पर अबतक अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया है।
कोलकाता: पश्चिम बंगाल में मनरेगा मजदूरों के काम के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले मजदूर संगठन पश्चिम बंग खेत मजूर समिति (पीबीकेएमएस) ने कहा है कि राज्य में मनरेगा की पुनर्बहाली को लेकर केंद्र का रुख राज्य में ग्रामीण गरीबों के प्रति गहरे अनादर को उजागर करता है।
पीबीकेएमएस ने यह बयान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के पश्चिम बंगाल में मनरेगा को फिर से बहाल करने के प्रति टालमटोल वाले हालिया रुख पर दिया है।
उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का पश्चिम बंगाल में कार्यान्वयन नहीं होने से संबंधित मामला 13 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध था। यह मामला जस्टिस विक्रम नाथ और प्रशांत कुमार मिश्रा की डिवीजन बेंच के सामने प्रस्तुत हुआ।
पीबीकेएमएस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ एस मुरलीधर ने पैरवी की और उनकी सहायता अधिवक्ता पुर्वायन चक्रवर्ती व प्रसन्ना एस ने की। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उपस्थित हुए, जिन्होंने 22 सितंबर 2025 की सुनवाई के बाद लगातार दूसरी बार मामले में स्थगन की मांग की। पीबीकेएमएस ने इसका कड़ा विरोध किया और इंगित किया कि कलकत्ता हाइकोर्ट के निर्देशों के अनुसार केंद्र सरकार को एक अगस्त 2025 से पश्चिम बंगाल में मनरेगा का कार्य पुनः शुरू करने का दायित्व था।
पीबीकेएमएस ने कहा है कि केंद्र लगातार स्थगन को एक सुनियोजित रणनीति के रूप में प्रयोग कर रहा है ताकि आदेश अनुपालन में देरी की जा सके, जबकि राज्य के ढाई करोड़ मनरेगा मजदूर कानून के तहत गांरटी युक्त रोजगार से वंचित हैं। पीबीकेएमएस ने कहा है कि केंद्र की राजनीतिक प्रतिशोध की भावना व प्रशासनिक उदासीनता ने करोड़ों लोगों की आजीविका नष्ट कर दी है।
वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार के रुख की आलोचना करते हुए पीबीकेएमएस ने कहा है कि राज्य सरकार अपने मजदूरों के लिए खड़े होने में विफल रही है, उसने काम को फिर से शुरू करने के मांग के बजाय स्वयं को केवल केंद्र से बकाया धन की मांग तक सीमित रखा।
बहरहाल, 27 अक्टूबर 2025 को इस मामले की अगली सुनवाई शीर्ष अदालत में तय हुई है। पीबीकेएमएस ने कहा है कि वह पश्चिम बंगाल के गरीब ग्रामीणों के अधिकारों की मांग को दोहराता रहेगा ताकि गरीबों के संवैधानिक काम और गरिमा के अधिकार की पुनर्बहाली हो सके।