गुजरात से अपने हिस्से का पैसा लेकर नर्मदा विस्थापितों को उनका हक दे मध्यप्रदेश सरकार: मेधा पाटकर

बारिश का महीना शुरू होने से पहले नर्मदा बचाओ आंदोलन ने एक प्रेस कान्फ्रेंस कर नर्मदा घाटी के पीड़ितों की मांगों को उठाया है और डूब से बचाव के लिए समय पर पहल करने की मांग उठायी है। इसके साथ ही गुजरात से अपने हिस्से का पैसाा लेकर पीड़ितों के पुनर्वास की मांग की है।

भोपाल : नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने 16 जून 2025 को भोपाल के गांधी भवन में एक प्रेस कान्फ्रेंस कर नर्मदा घाटी के लोगों, पीड़ितों के सवालों को उठाया और बारिश का महीना शुरू होने के मद्देनजर लोगों की सुरक्षा व डूब से बचाने के लिए ससमय कदम उठाने की मांग भी दोहरायी। इस दौरान उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार से अपील की कि वह नर्मदा विस्थापितों के पुनर्वास के लिए अपने हिस्से का फंड लेकर उनका पुनर्वास सुनिश्चित करे।

मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा घाटी आंदोलन के 40 साल के संघर्ष के परिणाम स्वरूप् 50 हजार परिवारों का अबतक पुनर्वास कराने में सफलता हासिल हुई है, लेकिन आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनका पुनर्वास बाकी है। पुनर्वास स्थलों पर सुविधाओं का अभाव है और पानी, रास्ते, नालियां, निकास, चारागाह, स्वास्थ्य केंद्र जैसे सुविधाएं अधूरी हैं।

उन्होंने कहा कि कुछ हजार परिवार 2019 से या 2023 में डूबग्रस्त होकर भी पुनर्वास कानून (ट्रिब्यूनल फैसला), नर्मदा योजनाओं के लिए घोषित नीति और 2017 तक के आदेशों के अनुसार किसी अधिकार, मकान के लिए भूखंड, वैकल्पिक जमीन का हक, गृह निर्माण के लिए अनुदान से वंचित रखे गये हैं। कई बार चर्चा, आवेदनों के बावजूद व कुछ आश्वासनों के बाद भी निर्णय नहीं दिया जाने से, जिला, संभाग या राज्य स्तर पर लंबित रहने से ऐसे दलित, आदिवासी, मजदूर, विधवा व एकल महिलाएं विस्थापन का दर्द भुगत रही हैं और कुछ की इस प्रतीक्षा में मौत भी हो गई।

नर्मदा घाटी में नर्मदा बचाओ मानव बचाओ के नजरिये और उद्देश्य के साथ चले अहिंसक सत्याग्रही आंदोलन के अब 40 साल पूरे हो जाने हैं। सरदार सरोवर के मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के तीन राज्यों के किसान, मजदूर, मछुआरे, पशुपालक, वनोपज पर जीने वाले आदिवासी, व्यापारी, सभी सभी ने महिला शक्ति के साथ अहिंसक मैदानी तथा कानूनी संघर्ष के द्वारा करीबन 50 हजार परिवारों का पुनर्वास कराने में सफलता हासिल की, लेकिन आज भी कई विस्थापितों का पुनर्वास बाकी है।

कुछ हजार परिवार 2019 से या 2023 में डूबग्रस्त होकर भी पुनर्वास कानून (ट्रिब्यूनल फैसला) नर्मदा योजनाओं के लिए घोषित नीति और 2017 तक के आदेशों के अनुसार किसी अधिकार, मकान के लिए भूखंड, वैकल्पिक जमीन का हक, गृह निर्माण के लिए अनुदान से वंचित रखे गये हैं। कई बार चर्चा, प्रस्तुति, आवेदनों के बावजूद कुछ आश्वासनों के बाद भी निर्णय नहीं दिया जाने से, जिला, संभाग या राज्य स्तर पर लंबित रहने से ऐसे दलित, आदिवासी, मजदूर, विधवा व एकल महिलाएं जैसे विस्थापित अन्याय भुगत रहे है और कई की बिना पुनर्वास मौत भी हो गई।


यह हकीकत सर्वाेच्च न्यायालय व कुछ उच्च न्यायालय के आदेशों का ही नहीं, मानवीय और संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन की कहानी बता रही हैं। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण जैसी आंतरराज्य संस्था निष्क्रिय दिखाई देती है, जबकि उनके वार्षिक रिपोर्ट में पुनर्वास को पूरा व बकाया कार्य को शून्य दिखाया जाता है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सवाल उठाया है कि कई बार ठोस मुद्दों पर चर्चा के बाद भी, सरदार सरोवर प्रभावित सात तहसीलों में पुनर्वास अधिकारी के साम पद दां सालों से रिक्त क्यों रखे गये हैं? पुनर्वास का भार अनुविभागीय अधिकारियों पर डालकर, कार्य क्यों धीमा किया या ठप्प सा रखा गया है? सर्वाेच्च अदालत के आदेश से गठित शिकायत निवारण प्राधिकरण के पांच सदस्यों के पद सितंबर 2024 से रिक्त रखकर, करीबन 7000 शिकायतें, प्रकरण लंबित होते हुए भी, भूतपूर्व न्यायाधीशों की नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही है? इन सवालों को नजरअंदाज करना क्या असंवेदना साबित नहीं करती है?

वित्तीय मुद्दों पर गुजरात व मध्यप्रदेश के बीच विवाद


सबसे महत्व का मुद्दा यह भी है कि कुछ सालों से मध्यप्रदेश और गुजरात शासन के बीच वित्तीय सहायता (फंडिंग) के मुद्दे पर विवाद जारी है। मध्यस्थता की प्रक्रिया से भी आज तक विवाद का निराकरण नहीं हुआ है। जबकि डूबग्रस्त हुई शासकीय भूमि, वनभूमि की भरपाई और सभी विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास का खर्चा गुजरात को नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार उठाना है। तब भी इन मुद्दों पर करीबन 7000 करोड़ से अधिक राशि की मध्यप्रदेश की मांग पूरी नहीं हो पायी है? मध्यप्रदेश राज्य को 192 गांव और धरमपुरी नगर के हजारों परिवार, हजारों हेक्टेयर डूब क्षेत्र तथा पुनर्वास स्थलों के लिए अर्जित भूमि, हजारों मकान; 2000 से अधिक हेक्टेयर जंगल सब कुछ सरदार सरोवर के लिए खोने के बाद, करोड़ों रुपये के पूंजीनिवेश के बाद भी, मध्य प्रदेश शासन को बिजली का एकमात्र अपेक्षित लाभ भी नहीं मिलने से 900 करोड़ से अधिक रुपए की भरपाई क्यों मांगनी पड़ रही है? जबकि सरदार सरोवर की लागत अब अधिकृत रूप से 75000 करोड़ रुपए की होना जाहिर किया गया है तो उसमें स्टेच्यू ऑफ यूनिटी और पर्यटन परियोजनाओं का खर्चा शामिल किया गया है; तो पुनर्वास के लिए भुगतान क्यों नहीं संभव है? गुजरात शासन इसे क्यों टाल रहा है और मध्यप्रदेश शासन क्यों अपना हक नहीं ले पा रहा है अपना हक?

आज गुजरात की कच्छ, सौराष्ट्र की जनता हैरान है । उन्हें अपेक्षित सिंचाई और पेयजल सुविधा भी सही तरीके से और सही मात्रा में उपलब्ध नहीं हो रही है। आजीविका से वंचित विस्थापित आदिवासी भी रास्ते पर उतरकर व न्यायालय में पहुंचकर सवाल उठा रहे हैं। बांध के नीचेवास के किसान, मछुआरे, गांव-नगरवासी भी परेशानी भुगत चुके हैं, 2023 जैसी बांध से अक्षम्य देरी से 15,16 के बदले 17 सितंबर 2023 को पानी छोड़ा गया। 18 लाख क्यूसेक्स पानी से हुई खेती, मकान, नाव, जाल, भूजल तथा मंदिर, तीर्थ स्थल तबाह हो गए थे। 2023 में ही बैकवॉटर क्षेत्र के डूब से बाहर घोषित किये गये पुनर्वास अधूरा छोड़ें हजारों विस्थापित, मध्यप्रदेश के उपरी क्षेत्र के 172 गांव में भी डूब भुगत चुके हैं। इन सबके लिए जरूरी है, ठोस निर्णय, संपूर्ण पुनर्वास का तथा नीचेवास की गुजरात की जनता के लिए पर्याप्त पानी नियमित छोड़े जाने की।

वर्ष 2025 का वर्षाकाल शुरू हो चुका है। बड़वानी, धार, अलीराजपुर, खरगोन जिले की जनता का सवाल है कि क्या जलप्रवाह का (ऊपरी सभी बांधों से छोड़े जाते) नियमन, सरदार सरोवर और ऊपरी बांधों के गेट समय पर खोलकर नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण से नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण तथा गुजरात शासन के साथ समन्वय से किया जाएगा? नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सवाल उठाया कि डूबग्रस्तों का सालों से प्रलंबित पुनर्वास का कार्य समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा? ऐसा कब तक किया जाएगा? जनता के साथ मां नर्मदा को भी अधिकार है जीने का, उसे दूषित करने वाला औद्योगिक प्रदूषण, अवैध खनन, शहरों का गंदा सीवेज बिना उपचार का, और अवैध क्रूज से जल परिवहन रोका जाए। आज तक कई आदेश, कानून, निर्देशों के बावजूद ऐसा नहीं हो रहा है।

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