वर्ष 2024 में कोशी सहित बिहार की दो अन्य प्रमुख नदियों गंडक व बागमती में तीव्र बाढ़ आयी। उत्तर बिहार के कई जिलों में पिछले साल आयी बाढ़ के प्रभाव को अबतक महसूस किया जा सकता है। आधा जून बीत चुका है और यही वह वक्त होता है जब पूर्वी भारत में मानसूनी बारिश शुरू होती है। कोशी बिहार के एक अत्यधिक बड़े भूगोल और बड़ी आबादी को प्रभावित करती है। कोशी क्षेत्र में बाढ़ से बचाव की तैयारियां भी चल रही हैं। सरकार-प्रशासन अपने स्तर पर तैयारियां में व्यस्त है और समुदाय अपने स्तर पर। कोशी की आपदा में सबसे बुरी स्थिति तटबंध के अंदर बसे लोगों की होती है। कोशी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव तटबंध के अंदर के लोगों के सवालो को लेकर पिछले कई सालों से प्रशासनिक अधिकारियों व सरकार के समक्ष मुखर रहे हैं। पत्रकार राहुल सिंह ने उनसे कोशी, बाढ़, समुदाय से जुड़े मुद्दे पर बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश…
स्वाल: पिछले साल सालों बाद कोशी में अत्यधिक तीव्रता की बाढ़ आयी थी। इससे क्या सीख ली जा सकती है?
जवाब: कोशी में पिछले साल आयी बाढ़ से तीन-चार सीख ली जा सकती है। एक तो यह कि तटबंध के भीतर के लोगों के साथ आगे भी इस तरह की समस्या नहीं आए, इसके लिए गंभीर पहल की जरूरत है। सरकार उनका सर्वे करवा कर तटबंध के बाहर उनका पुनर्वास कराए। सरकार को उन्हें जमीन देना ही चाहिए। दूसरी बात, इससे पहले जबतक उन्हें जमीन नहीं दी जाती है, तबतक उनके बुनियादी सवालों व जरूरतों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। जैसे, हर जगह ऊँचा टीला बनवाया जाए, पानी बढने पर तटबंध के भीतर से उनके बाहर निकलने की व्यवस्था हो, घाटों पर मोटर बोट व नाव की सुविधा हो, बच्चों की शिक्षा व उनके स्वास्थ्य के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए।
तीसरी सीख यह है कि तटबंध के बाहर जो खुद को सुरक्षित मान रहे हैं, वे भी सचेत हो गए हैं और उन्हें अहसास हो गया है कि बाढ़ के खतरे से वे बहुत दूर नहीं हैं। इस बार दरभंगा के भूभोल में जिस तरह बांध टूटा उससे यह पता चला कि वह सुरक्षित नहीं है। पिछले साल सुपौल शहर के आसपास पूर्वी तटबंध पर अनेक जगह स्पर टूट गए थे। यह खतरे का एक संकेतक है। सुपौल शहर के आसपास जिस तरह पानी का स्तर बढा, अगर पानी का थोड़ा स्तर और बढता तो सुपौल शहर को भी बाढ़ का खतरा होता।
पिछले साल की बाढ़ आने वाले संकट का एक संकेतक है। 6.61 लाख क्यूसेक में पानी कोसी बेराज के ऊपर से बह गया। तटबंध के तट के ऊँंचा होने से गाद की समस्या बढी है। हमलोग यह मान चुके हैं कि हम अब जलवायु परिवर्तन के दौर में हैं।
वर्ष 2024 में सितंबर के अंत में बाढ़ आयी। लेकिन, इससे पहले 30 जनवरी से 13 फरवरी तक हमलोगों ने सुपौल के बैरिया मंच से पटना तक कोशी पीड़ितों के सवाल पर पदयात्रा की थी। इसके माध्यम से सरकार व प्रशासन को हम कोशी के लोगों की समस्याओं से वाकिफ कराना चाहते थे, लेकिन हमारी बातें नहीं सुनी गईं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट बताती कि जलवायु चुनौतियां अधिक सघन होंगी। कोशी हिमालय और तिब्बत से निकल कर आती है। बिहार में जलवायु परिवर्तन का असर सबसे पहले कोशी जैसे इलाके में पड़ेगा, क्योंकि हिमालय में जो भी घटनाएं घटित होंगी उसका असर यहां दिखेगा। और कोशी में होने वाले बदलाव का सबसे अधिक असर तटबंध के भीतर के लोगों पर पडेगा। यह भी हो सकता है कि तटबंध के बाहर सूखा रहे और अंदर पानी हो।

सवाल: बिहार सरकार या भारत सरकार की ओर से वर्ष 2024 की बाढ़ के बाद क्या सार्थक कदम उठाए गए हैं? आप एक जमीनी कार्यकर्ता हैं और आपके अनुभवों से क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
जवाब: इस आपदा के बाद भी तटबंध के भीतर के लोगों के पुनर्वास के लिए कुछ नहीं किया गया। इसके उलट सरकार कोशी-मेची परियोजना को आगे बढा रही है। स्रकार आपदा से सीख क्या लेती है, यह महत्वपूर्ण है। पिछले साल बाढ़ से हुई क्षति का जो मरम्मत कार्य अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर के महीने में हो जाना चाहिए था, वह मार्च महीने में इस साल कराया गया। कई जगह काम मार्च के बाद भी कराये गए। इससे ऐसी मरम्मत या निर्माण को मजबूत होेने का पर्याप्त वक्त नहीं मिलता है। अगर यह कार्य पहले हो गया होता तो अधिक अच्छा होता।
अब बारिश का महीना शुरू हो गया है, लेकिन अबतक बड़ी संख्या में पिछले साल के बाढ़ पीड़ितों को गृह क्षति, वस्त्र वितरण व अन्य क्षतिपूर्ति नहीं मिली है। हम इसके लिए प्रशासन के समक्ष व विभिन्न मंचों पर लगातार आवाज उठा रहे हैं।
इस साल अबतक पर्याप्त मानसून पूर्व तैयारियां नहीं हुई हैं। घाटों पर नावों का निबंधन नहीं हुआ है। पिछली बाढ़ में जो टिले डूब गए थे, उन्हें ऊँचा कर बुनियादी सुविधाएं देनी चाहिए। चिह्नित समुदाय के लिए कुछ नहीं किया गया।
सरकार हाइडैम में बाढ़ की समस्या का समाधान तलाश रही है। कोशी एक ट्रांसबाउंड्री नदी है। भारत-नेपाल की मैत्री व संबंधों के उतार-चढाव से इसका भविष्य भी प्रभावित होगा।

सवाल: तटबंध के भीतर के लोगों का पुनर्वास अब भी अधूरा है। क्या कदम उठाए जा सकते हैं उनके लिए? जमीनी अनुभव से मुझे ऐसा लगता है कि तटबंध ने कोशी के लोगों को भी दो हिस्सों में बांट दिया है।
जवाब: कोशी पीड़ितों की पुनर्वास की जमीन पर अवैध कब्जा है। दबंगों की बिल्डिंग टूट जाती है, लेकिन ऐसे दबंगों से सरकार क्यों नहीं लड़ पाती है? कोशी पीड़ितों के लिए उनसे निबटना और जमीन वापस हासिल करना मुश्किल है। ऐसे में हमारा यही कहना है कि सरकार सर्वे करवा कर नई जगह पीड़ितों को जमीन उपलब्ध करवाये और उन्हें बसाये।
जहां तक लोगों को दो भागों में बांटने का सवाल है तो आपका ऐसा अनुभव रहा है तो यह एक वास्तविकता है। कोशी के तटबंध ने कोशी के लोगों को वास्तव में दो भागों में बांट दिया है।
जब शुरू-शुरू में तटबंध बांधा गया होगा तो निश्चित रूप से तटबंध के बाहर के लोगों की तटबंध के भीतर के लोगों के प्रति संवेदनशीलता रही होगी। लेकिन, राजनीतिक दलों व अफसरों की भीतर के लोगों के प्रति उदासीनता की वजह से और जैसे-जैसे तटबंध के भीतर के लोगों को मुद्दों को हाशिये पर डाला गया होगा, उससे दोनों तबकों में दूरी बन गई होगी और लोगों की धारणाएं बदल गई होंगी।
तटबंध के भीतर के लोग आज काफी पीछे छूट गए हैं। अब समय काफी गुजर गया है। समाज में संवेदनाएं भी घटी हैं। नई पीढी उस दौर से बहुत वाकिफ नहीं है। तटबंध के बाहर की नई पीढी को यह समझना होगा कि उनकी खुशहाली तटबंध के अंदर के लोगों के बलिदान पर ही है। जो लोग तटबंध के बाहर सुरक्षित जिंदगी जी रहे हैं उन्हें तटबंध के बीच रहने वालों के लिए अधिक संवेदनशील होना होगा।
सवाल: क्या कोशी को पुराने स्वरूप में छोड़ा जा सकता है और उसकी सहायक नदियों को फिर से सक्रिय किया जा सकता है ताकि बाढ़ के खतरे कम हों।
जवाब: कोशी का पुराना मार्ग है, पर उसमें कहीं मलबा है, कहीं अतिक्रमण है। तटबंध को बनाने के बाद से आजतक इन्फ्रास्ट्रक्चर बदला है, परिस्थितियां बदली हैं; इसलिए उन्हें अचानक तोड़ देना समस्या का समाधान नहीं है। उन्हें तोड़ने के बजाय दूसरे विकल्प तलाशना चाहिए, दूसरे विकल्प में जो पुरानी धार थी जिसमें कोशी बहा करती थी, उस पुरानी धार को फिर से जीवित किया जा सकता है। और पानी को उन सभी में नियंत्रित तरीके से वितरित करना चाहिए। उससे उन सभी इलाकों में पानी आएगा और वहां का जलस्तर ठीक होगा। इससे बाढ़ आने पर पानी का वितरण अधिक विस्तृत हो सकेगा, तटबंधों पर दबाव कम रहेगा। यहां एक ही नदी बेसिन है, दूसरा कोई बेसिन नहीं है, इससे पारिस्थितिकीय दिक्कतें भी कम होंगी। जो लोग बांध के बाहर हैं वे भी तटबंध टूटने व बाढ़ की आशंका से ग्रसित रहते हैं, उनके लिए भी खतरे कम होंगे। यह आसान और कम खर्चे का विकल्प है।
सवाल: ऐसा देखने में आता है कि पिछड़े क्षेत्रों के लिए विकास प्राधिकरणों का गठन किया जाता है। आपको क्या लगता है कि कोशी के लिए ऐसी कोई पहल कारगर हो सकती है?
जवाब: पहले ही कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार बिहार सरकार द्वारा बनाया गया था। लेकिन, अब उसका कुछ पता नहीं है। बिंदेश्वरी दूबे जब बिहार के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने चंद्रकिशोर पाठक कमेटी बनाई, उस कमेटी की अनुशंसा पर उन्होंने मंत्रिमंडल की एक उप समिति बनाई। उसकी अनुशंसा पर बिहार सरकार ने 30 जनवरी 1987 को कोशी विकास प्राधिकार का गठन किया। उस प्राधिकार के लिए कुछ कार्यक्रम निश्चित किए गए जो आजतक अधूरे हैं। इन कार्यक्रमों में उनकी जमीन का मुद्दा था, फिर बांध के भीतर रहने वाले सभी लोगों का प्रभावित आठ जिलों के समूह ग व घ की नौकरी में सभी जाति के लोगों के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। यह सरकारी व निजी दोनों तरह की नौकरियों के लिए था।
लहटन चौधरी जब कोशी पीड़ित प्राधिकार के अध्यक्ष थे तो उन्होंने कहा था कि कोशी तटबंध के भीतर के लोग भगवान शंकर की तरह गरल पान किया और अपनी छाती पर तटबंध बनने दिया, इनके लिए सरकार जितना काम करे उतना कम है। अब वह प्राधिकार ही गायब है, सहरसा में ऑफिस था, उसके बारे में भी अब पता नहीं है। मैंने चार-चार आरटीआइ इस प्राधिकार के बारे में जानकारी जुटाने के लिए लगाया, मेरा आरटीआइ आवेदन कार्यालयों में घूमता रहा, जवाब नहीं मिला।
मेरी समझ से कोशी को विशेष क्षेत्र का दर्जा दिया जाना चाहिए। अगर भौगोलिक बनावट के अनुरूप, यहां की प्रकृति के अनुरूप पहल नहीं करेंगे तो समस्या विकराल होती जाएगी। आपदा बढ रही है। इसके लिए सचेत होना होगा।