थांगसोई एम ख्यामनियुंगन
मैं एक फिल्मकार हूं और नागालैंड राज्य के नोकलाक जिले में स्थित चोकलांगन गांव में रहता हूं। मैं मूल रूप से ख्यामनियुंगन समुदाय से हूं। वर्ष 2022 में मैंने हनी हंटर्स नामक एक डॉक्यूमेंट्री बनायी थी। यह फिल्म मेरे समुदाय द्वारा की जाने वाली शहद की खेती और ऊंची चट्टानों पर चढ़कर शहद इकट्ठा करने वाले ‘हनी हंटर्स’ की कहानी है। शहद की खेती करना हमारे समुदाय का पारंपरिक पेशा है। पुराने समय में हमारा समुदाय शहद इकट्ठा करने के बाद स्वयं ही उसका सेवन करता था। चूंकि हमारे गांव की सीमा म्यांमार से सटी हुई है, इसलिए हम उनके लोगों से शहद के मोम (हनी-वैक्स) के बदले नमक का सौदा करते थे। वर्तमान में म्यांमार में चल रहे तनाव के कारण अब यह लेन-देन संभव नहीं है।
अपने काम के दौरान मैंने शहद इकट्ठा किए जाने की पूरी प्रक्रिया को नजदीक से समझा। इससे मुझे यह भी समझ आया कि समुदाय और मधुमक्खियों का आपसी रिश्ता महज निजी उपभोग पर नहीं टिका हुआ है। चोकलांगन के लोग मधुमक्खियों के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। उनकी मान्यता है कि सभी पहाड़ियां मधुमक्खियों की मिल्कियत है। हमारा उन पर अधिकार केवल शहद प्राप्त करने तक सीमित है। इसलिए शहद ढूंढने से लेकर उसे इकट्ठा करने तक हर कदम पर इस आस्था की झलक साफ नजर आती है।
शहद इकट्ठा करने की अगुवाई समूह के सबसे विनम्र व्यक्ति को दी जाती है। माना जाता है कि वे मधुमक्खियों से सबसे अच्छी तरह संवाद कर सकते हैं। यह व्यक्ति अमूमन मधुमक्खियों को संदेश देते हैं, “आज हम आपके पास आये हैं। हम आपसे विनती करते हैं कि थोड़ी देर के लिए जगह बदल लें, ताकि हम अपना काम कर पायें।” इसके बाद वह आग जलाकर धुएं से मधुमक्खियों को उनकी जगह से दूसरी जगह भेजने की प्रक्रिया शुरू करते हैं। इससे मधुमक्खियां शांति से आस-पास की किसी दूसरी चट्टान पर चली जाती हैं, जिससे लोगों को शहद इकट्ठा करने का पर्याप्त समय और जगह मिल जाती है।
गांव के लोग बताते हैं कि एक बार शहद लेने गयी टोली को सारे जतन करने के बावजूद शहद नसीब नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने मधुमखियों से विनम्रता से बात नहीं की थी। चट्टान पर सबसे पहले पहुंचने वाले व्यक्ति को नया शहद इकट्ठा करना होता है और फिर उसे पूरे समूह के साथ बांटना भी होता है। मधुमक्खियों के डंक से बचने के लिए सभी लोग अपनी त्वचा पर शहद का लेप लगा लेते हैं। एक अन्य चलन यह भी है कि सबसे पहले शहद चखने वाले व्यक्ति का यह कहना आवश्यक है कि “शहद कड़वा है।”

ख्यामनियुंगन जनजाति का मानना है कि पहाड़ियां मधुमक्खियों की मिल्कियत है और उनपर लोगों का अधिकार केवल शहद प्राप्त करने तक सीमित है। | चित्र साभार: थांगसोई एम ख्यामनियुंगन।
स्थानीय मान्यता के अनुसार, यदि मधुमक्खियों की रानी को शहद की मिठास की भनक लग जाती है, तो मधुमक्खियां बिना देरी के सारा शहद चट कर देती हैं। चोकलांगन के शहद कृषक साल में दो बार शहद शहद इकट्ठा करते हैं। इस प्रक्रिया का पहला चक्र (अप्रैल/मई) म्यूले कहलाता है तो दूसरे चक्र (अक्टूबर/नवंबर) को न्यामत्सो कहते हैं। एक बड़े छत्ते से 20 से 25 लीटर तक शहद प्राप्त हो सकता है। शहद कृषकों का यह भी मानना है कि अधिक से अधिक शहद इकट्ठा करने से आगामी वर्ष में उत्पादन में वृद्धि होती है।
लेकिन शहद इकट्ठा करने जितना ही कठिन है शहद को बाहर निकालना। चूंकि शहद निकालने के लिए छत्ते को कई छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ना पड़ता है, इसलिए इस प्रक्रिया में बहुत मेहनत और समय की जरूरत होती है। बढ़ते शहरीकरण के साथ स्थानीय युवाओं का झुकाव सरकारी नौकरी और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है। मैं पहाड़ों की चोटियों से शहद इकट्ठा करने की अपनी सामुदायिक परंपरा में फिर से जान फूंकना चाहता हूं।
इस काम के लिए मैंने फिल्म के माध्यम को चुना है, क्योंकि इससे मेरी बात लोगों तक पहुंचने के साथ-साथ मुझे सरकार और गैर-लाभकारी संस्थाओं से मदद भी मिल सकती है। मेरा मानना है कि आने वाले समय में चोकलांगन समूचे नागालैंड के साथ-साथ पूरी दुनिया में अपना शहद निर्यात कर सकता है। लेकिन इस लक्ष्य को साकार करने के लिए हमें अपने शहद कृषकों, यानी हनी हंटर्स को बेहतर सुविधाओं से लैस करना होगा, जिससे उनके काम में जोखिम कम हो और यह पूरी प्रक्रिया सरल बन पाये ।
(थांगसोई एम ख्यामनियुंगन नागालैंड स्थित एक डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता हैं। थांगसोई एम ख्यामनियुंगन एक स्वतंत्र फ़िल्म निर्माता और फोटोग्राफर हैं, जो नागालैंड के नोकलाक जिले के चोकलंगान गांव से हैं। उन्होंने 2022 में ‘हनी हंटर्स ऑफ माई विलेज’ नामक फिल्म बनाई थी, जिसे 2024 में आयोजित 12वें सीएमएस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘लाइवलीहुड एंड सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज़’ श्रेणी के तहत सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए नामांकित किया गया था।)
यह लेख आईडीआर नॉर्थईस्ट फेलो 2024–25 केलेट्सिनो मेजुरा से हुई बातचीत पर आधारित है।
इस लिंक को क्लिक कर आप थांगसोई एम ख्यामनियुंगन की डाक्यूमेंट्री फिल्म को देख सकते हैं।
(यह आलेख हमने आईडीआर हिंदी से साभार प्रकाशित किया है।)