गोवाहाटी: असम स्थित राष्ट्रीय उद्यान काजीरंगा की बुजुर्ग हथिनी मोहनमाला का 14 अगस्त 2025 को निधन हो गया। उन्हें भावपूर्ण तरीके से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के कर्मियों ने विदाई दी। इसके साथ ही उनके महान योगदान को याद किया गया।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान ने 14 अगस्त को अपने सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर जानकारी दी, “काजीरंगा अपनी प्रिय विभागीय हथिनी मोहनमाला को अंतिम विदाई दे रहा है, जिनका वृद्धावस्था में शांतिपूर्वक निधन हो गया। 1970 से वे काजीरंगा परिवार का हिस्सा रहीं, वह बाढ़ के समय एक निडर रक्षक, शिकार विरोधी सहयोगी और वफ़ादारी की प्रतीक थीं”।
असम के प्रमुख अंग्रेजी अखबार द असम ट्रिब्यून ने मोहनमाला के बारे में लिखा, “काजीरंगा के वन विभाग की सबसे बुजुर्ग हथिनी मोहनमाला का 50 साल से अधिक सेवा के बाद उम्र जनित बीमारियों के कारण निधन हो गया। लगभग 80 साल की आयु की मोहनमाला को 17 मई, 1970 को काजीरंगा लाया गया था और वे उद्यान के संरक्षण इतिहास का अभिन्न अंग बन गईं। अधिकारियों ने बताया कि 2003 में सक्रिय सेवा से सेवानिवृत्त हो गईं और तब से उन्हें सरकारी पेंशन मिल रही थी”।

मोहनमाला के अंतिम संस्कार का एक दृश्य। फोटो: काजीरंगा नेशनल पार्क।
उनका निधन काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के मीडिल रेंच के मिहिमुख में हुआ, जहां वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों और उनकी प्रमुख महावत किरण राभा की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार किया गया व उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
मोहनमाला अपनी निडरता, आज्ञाकारिता व विनम्र स्वभाव के लिए जानी जाती थी और एक श्रेष्ठ तैराक व बाढ़ के दौरान एक भरोसेमंद साथी थीं। अखबार ने काजीरंगा पार्क के अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि जब नावें नहीं चल पाती थीं, तो वह अक्सर कर्मचारियों को जल प्लावित क्षेत्र में ले जाती थीं, जिससे जरूरी गश्ती का काम जारी रहता था। उन्होंने पार्क के विभिन्न रेंजों में सेवा दी और शिकार विरोधी अभियानों में भी सक्रिय भूमिका निभाई। चुनौतीपूर्ण इलाकों व परिस्थितियों में कर्मचारियों की सहायता की।

मोहनमाला ने दो मादा बच्चों को जन्म दिया था, जिनमें मालती की 17 साल की उम्र में मौत हो गई और उनकी एक दूसरी शिशु जिसकी मौत जन्म के तीन दिन बाद ही एक बाघ के हमले में हो गई।
उनके निधन से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान ने न सिर्फ एक हथिनी बल्कि एक भरोसेमंद सहयोगी, बाढ़ के समय रक्षक और निष्ठा एवं साहस का प्रतीक खो दिया है।
पर्यावरण पत्रकार शैलेश श्रीवास्तव ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “हालांकि मोहनमाला ने अनगिनत बाढ़ बचाव अभियानों और शिकार विरोधी अभियानों में भाग लियाए लेकिन उन्हें मिहिबील आर्द्रभूमि के पास एक नाटकीय मुठभेड़ के लिए याद किया जाता है। जब एक जंगली हाथी ने उन पर धावा बोला तो मोहनमाला गहरे पानी में कूद गईं और अपनी महावत किरण राभा और बछड़े मालती को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। वह जंगल में कुछ दिनों तक गायब रहीं, लेकिन हफ़्तों बाद शांत और सुरक्षित लौटीं। मोहनमाला की विरासत न केवल यादों में, बल्कि उनके द्वारा बचाए गए जीवन और उनके द्वारा अपनाई गई सह अस्तित्व की भावना में भी जीवित है”।