छोटी बिल्लियों को जैव विविधता नीति और वन प्रबंधन योजनाओं में शामिल किया जाए : स्टेटस रिपोर्ट

भारत सरकार द्वारा जारी एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में पाया गया कि जंगल कैट देश में सबसे अधिक फैली हुई छोटी बिल्ली प्रजाति है, जबकि रस्‍टी-स्‍पॉटेड कैट की उपस्थिति में 21% की गिरावट आई है। रेगिस्तानी बिल्ली की उपस्थिति शुष्क और अर्ध-शुष्क वनों में स्थिर पाई गई, जबकि क्लाउडेड लेपर्ड और मार्बल्ड कैट जैसी दुर्लभ प्रजातियां केवल पूर्वोत्तर भारत के सीमित क्षेत्रों में दर्ज की गईं। रिपोर्ट ने इन प्रजातियों को भारत की संरक्षण योजनाओं में शामिल करने और लंबे समय तक निगरानी की जरूरत पर ज़ोर दिया है।

मनीष चंद्र मिश्रा की रिपोर्ट

भारत में पाई जाने वाली छोटी जंगली बिल्ली प्रजातियों में जंगल कैट सबसे बड़े इलाके में पाई गई है, जबकि रस्‍टी-स्‍पॉटेड कैट की उपस्थिति में गिरावट देखी गई है। यह जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी एक राष्ट्रीय रिपोर्ट में दी गई है। स्‍टेटस ऑफ स्‍मॉल कैट्स इन टाइगर लैंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया नामक यह रिपोर्ट ग्लोबल टाइगर डे के अवसर पर 29 जुलाई 2025 को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में जारी की गई। यह भारत में बाघ की रेंज वाले वनों में पाई जाने वाली छोटी बिल्लियों की नौ प्रजातियों पर पहली राष्ट्रव्यापी रिपोर्ट है।

यह अध्ययन वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) द्वारा तैयार किया गया है। रिपोर्ट में 2018 और 2022 के ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन (AITE) से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

भारत के 18 राज्यों में 57,000 से अधिक कैमरा ट्रैप स्थानों पर सर्वे किया गया, जिसके दौरान 2018 से 2022 के बीच छोटी जंगली बिल्लियों की 24,800 तस्वीरें और 17,000 से ज्यादा रिकॉर्ड दर्ज किए गए।

जंगल कैट सबसे अधिक, रस्‍टी-स्‍पॉटेड कैट की घटती उपस्थिति

रिपोर्ट के अनुसार, जंगल कैट की उपस्थिति लगभग 96,275 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में दर्ज की गई और इसकी उपस्थिति 46 फीसदी सैंपलिंग ग्रिड में पाई गई। साल 2018 से 2022 के बीच इसके फैलाव में 14 फीसदी की वृद्धि देखी गई। यह प्रजाति शुष्क और खुले पर्णपाती वनों, कम वर्षा वाले क्षेत्रों और समतल भूभाग में पाई जाती है। यह इंसानी दबाव को भी कुछ हद तक झेलने में सक्षम है।

WII के वैज्ञानिकों के अनुसार, जंगल कैट की उपस्थिति संरक्षित क्षेत्रों के बाहर भी आम है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह प्रजाति खेतों और बस्तियों के करीब भी रह सकती है।

रस्‍टी-स्‍पॉटेड कैट का आवास क्षेत्र 70,075 वर्ग किलोमीटर आंका गया है, लेकिन इसकी उपस्थिति में 21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। यह केवल 25 फीसदी ग्रिड्स में लगातार देखी गई। रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रजाति मुख्य रूप से मध्य भारत के मिश्रित वनों में पाई जाती है, लेकिन आर्द्र और पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति घटी है।

यह प्रजाति संरक्षित क्षेत्रों जैसे बांदीपुर, कूनो और श्रीशैलम में अधिक दिखाई दी, लेकिन कुछ पुराने रिकॉर्ड वाले क्षेत्रों से इसकी अनुपस्थिति यह संकेत देती है कि इसके आवास खंडित हो रहे हैं।

जहां कम मानवीय हस्तक्षेप वहां मिली रेगिस्तानी बिल्ली

रेगिस्तानी बिल्ली के विश्लेषण से पता चला कि शुष्क और अर्ध-शुष्क खुले वन जहां मानवीय हस्तक्षेप कम है, इस प्रजाति के लिए सबसे उपयुक्त हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि सरिस्का, रणथंभौर, पन्ना, मुकुंदरा हिल्स, बांधवगढ़ और कुम्भलगढ़ जैसे इलाकों में इसकी उपस्थिति मध्यम से उच्च स्तर पर रही।

हालांकि पुराने रिकॉर्ड में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में इसकी मौजूदगी का उल्लेख है, इस सर्वे में यह नहीं मिली। WII के शोधकर्ताओं का मानना है कि यह मौसमी गतिविधि या स्थानीय गतिशीलता का परिणाम हो सकता है। सतपुड़ा, संजय-दुबरी, वीरांगना दुर्गावती और रानीपुर जैसे इलाकों में इसकी उपस्थिति अपेक्षाकृत कम रही।

फिशिंग कैट। फोटो: अनुराधा मारवाह।

पूर्वोत्तर में सिमटी दुर्लभ प्रजातियां

क्लाउडेड लेपर्ड, मार्बल्ड कैट और एशियाई गोल्डन कैट जैसी प्रजातियां मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत के घने जंगलों में ही सीमित पाई गईं। ये प्रजातियां केवल 10 फीसदी से भी कम साइट्स पर दर्ज की गईं। मार्बल्ड कैट की उपस्थिति 85 फीसदी से अधिक क्षेत्रों में नहीं पाई गई।

फिशिंग कैट, जो आर्द्रभूमियों पर निर्भर है, लगभग 7,575 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई गई, खासकर तराई, पूर्वोत्तर और सुंदरबन क्षेत्रों में। वहीं लेपर्ड कैट की उपस्थिति 32,800 वर्ग किलोमीटर में रही, मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी, वेस्टर्न घाट्स और पूर्वोत्तर भारत में।

संरक्षित क्षेत्र बना सहारा

अधिकांश प्रजातियों की उपस्थिति संरक्षित क्षेत्रों में अधिक पाई गई। रिपोर्ट के अनुसार, फिशिंग कैट, क्लाउडेड लेपर्ड और मार्बल्ड कैट लगभग पूरी तरह टाइगर रिजर्व और अभयारण्यों तक सीमित रहीं। एशियाई गोल्डन कैट की 70 फीसदी उपस्थिति संरक्षित क्षेत्रों से ही दर्ज हुई।

हालांकि, जंगल कैट और रस्‍टी-स्‍पॉटेड कैट जैसी सामान्य प्रजातियां संरक्षित क्षेत्रों के बाहर भी पाई गईं, जिससे यह ज़रूरी हो जाता है कि बफर जोन और आम जंगलों में भी संरक्षण योजनाएं लागू की जाएं।

मानव गतिविधि से आवास पर संकट

अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि सड़क निर्माण, कृषि, बस्तियों और पर्यटन जैसे मानवीय दबावों से अधिकांश छोटी बिल्लियों की उपस्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। विशिष्ट आवास वाली प्रजातियां, जैसे क्लाउडेड लेपर्ड और फिशिंग कैट, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं।

सामान्य प्रजातियां जैसे जंगल कैट मध्यम स्तर के हस्तक्षेप को झेल सकती हैं, लेकिन संरक्षित क्षेत्रों से बाहर इनके जीवित रहने की संभावना अन्य जोखिमों जैसे सड़क हादसे और मानव-पशु संघर्ष से जुड़ी होती है।

जंगल कैट। फोटो: शुभरंजन सेन।

संरक्षण के लिए व्यापक रणनीति की जरूरत

रिपोर्ट यह बताती है कि भारत कई प्रजातियों के लिए वैश्विक स्तर पर अहम भूमिका निभा रहा है, जैसे कि रस्‍टी-स्‍पॉटेड कैट का 90 फीसदी क्षेत्र भारत में है। फिर भी इन प्रजातियों पर अब तक पर्याप्त वैज्ञानिक या नीति आधारित ध्यान नहीं दिया गया है।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि छोटी बिल्लियों को भारत की जैव विविधता नीति और वन प्रबंधन योजनाओं में शामिल किया जाए। उनके आवास, भोजन और खतरों को लेकर क्षेत्रीय अध्ययन की आवश्यकता है। इसके साथ ही बाघ अभयारण्यों और उनके बाहर के जंगलों के बीच संपर्क बनाए रखना भी जरूरी है।

WII और NTCA की टीम का कहना है कि “भविष्य में भी इन प्रजातियों की मॉनिटरिंग जारी रहनी चाहिए और प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इन्हें संरक्षण योजनाओं में शामिल किया जाना चाहिए।”

यह खबर हमने मोंगाबे हिंदी से साभार प्रकाशित की है। मोंगाबे की वेबसाइट पर आप इसे हिंदी और अंग्रेजी में पढने के लिए यहां क्लिक करें।

स्मॉल कैट्स इन द टाइगर लैंडस्कैपस ऑफ इंडिया (Small Cats in the Tiger Landscapes of India) रिपोर्ट की पीडीएफ प्रति डाउनलोड करने के लिए इस लिंक पर जाएं।

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