समंदर से पहाड़ तक जलवायु संकट की मार, लेकिन चेतावनी और तैयारी ने बचाई जानें

साल 2024 का साल एशिया के लिए सिर्फ गर्म नहीं था, ये एक जलवायु चेतावनी की घंटी जैसा था – कभी धधकते शहर, कभी पिघलते ग्लेशियर, तो कभी डूबते खेत। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया 2024 बताती है कि एशिया अब पूरी दुनिया से लगभग दोगुनी रफ्तार से गरम हो रहा है, और इसका असर हर किसी की ज़िंदगी पर पड़ रहा है।

तापमान ने तोड़े रिकॉर्ड, एशिया अब ‘हीट ज़ोन’

2024 में एशिया का औसत तापमान 1991–2020 की तुलना में 1.04°C ज़्यादा रहा। चीन, जापान, कोरिया, म्यांमार जैसे देशों में महीनों तक लगातार हीटवेव्स चलीं। म्यांमार ने 48.2°C का नया रिकॉर्ड बना दिया – इतनी गर्मी कि इंसानी शरीर जवाब देने लगे। अप्रैल से लेकर नवंबर तक कुछ हिस्सों में लगातार गर्मी से राहत नहीं मिली।

समंदर भी कर रहे हैं उबाल

एशिया का पूरा समुद्री इलाका अब तेज़ी से गर्म हो रहा है। WMO की रिपोर्ट कहती है कि समुद्री सतह का तापमान अब हर दशक में 0.24°C बढ़ रहा है – ये ग्लोबल औसत (0.13°C) से लगभग दोगुना है।

2024 में रिकॉर्डतोड़ “मरीन हीटवेव्स” आईं। अगस्त-सितंबर के दौरान, करीब 15 मिलियन वर्ग किलोमीटर समुद्र इस हीटवेव से प्रभावित हुआ – यानी पूरी धरती के महासागरीय क्षेत्र का 10% हिस्सा।

इससे मछलियों की ब्रीडिंग, समुद्री जीव-जंतु और तटीय आजीविकाओं पर सीधा असर पड़ा। छोटे द्वीपीय देशों और भारत के तटीय क्षेत्रों के लिए ये एक नया खतरा बन चुका है।

ओडिशा के उदयपुर समुद्र तट का दृश्य। Photo – Rahul Singh.

हिमालय से आती है एक और चिंता: पिघलते ग्लेशियर

“तीसरा ध्रुव” कहे जाने वाले हाई माउंटेन एशिया (HMA) – जो तिब्बती पठार और हिमालय क्षेत्र में फैला है – अब तेज़ी से अपनी बर्फ खो रहा है।

2023–24 के आंकड़ों में, 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान घटा। मध्य हिमालय और तियन शान की चोटियों पर कम बर्फबारी और अत्यधिक गर्मी ने ग्लेशियरों को खोखला बना दिया है।
उरुमची ग्लेशियर नंबर 1, जो 1959 से मॉनिटर किया जा रहा है, उसने अब तक की सबसे बड़ी बर्फीली गिरावट दर्ज की।

ग्लेशियरों के पिघलने से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसका सीधा असर पानी की सुरक्षा और लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ता है जो इन नदियों पर निर्भर हैं।

बारिश और सूखे की दोहरी मार

WMO की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में कहीं सूखा तो कहीं भीषण बाढ़ ने ज़िंदगी को उलट-पलट कर दिया:

नेपाल: सितंबर में रिकॉर्ड बारिश से आई बाढ़ में 246 लोगों की मौत हुई और 130,000 से ज्यादा लोगों को समय रहते राहत दी गई।


भारत, केरल: 30 जुलाई को भयानक बारिश (48 घंटे में 500 मिमी से ज्यादा) ने भूस्खलन और 350 से ज्यादा मौतों को जन्म दिया।
चीन: सूखे ने 4.8 मिलियन लोगों को प्रभावित किया, 3.35 लाख हेक्टेयर फसल नष्ट हुई, और ₹400 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ।
UAE: 24 घंटे में 259.5 मिमी बारिश – 1949 से अब तक की सबसे ज्यादा – ने मध्य पूर्व की जलवायु स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए।
कज़ाकिस्तान और रूस: भारी बर्फ पिघलने और असामान्य बारिश ने 70 साल की सबसे बड़ी बाढ़ लाई, 1.18 लाख लोग बेघर हुए।

नेपाल में अतिवृष्टि के बार राहत-बचाव कार्य चलाने के लिए हेलिकॉप्टर का भी उपयोग किया गया। तसवीर – नेपाली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण।

लेकिन चेतावनी और तैयारी काम आई

रिपोर्ट का एक अहम हिस्सा नेपाल का केस स्टडी है। जहां समय रहते “early warning systems” और स्थानीय प्रशासन की तैयारी ने जानें बचाईं। सरकारी एजेंसियों और समुदायों के बीच तालमेल ने 1.3 लाख लोगों को पहले ही अलर्ट कर दिया, जिससे जान-माल का नुकसान सीमित रहा।

संदेश साफ है: जलवायु बदल रही है, तैयारी ही रक्षा है

WMO की महासचिव सेलेस्टे साओलो ने कहा, “मौसम अब सिर्फ मौसम नहीं रहा, ये लोगों की आजीविका, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा का सवाल बन गया है।”

रिपोर्ट सरकारों के लिए एक सीधा संदेश है:

जलवायु संकट को आंकड़ों से नहीं, तैयारी और नीतियों से जवाब देना होगा।

क्या करें आगे?

गांव-शहरों में लोकल वेदर वार्निंग सिस्टम्स को मज़बूत करना होगा
जलवायु शिक्षा और तैयारी को स्कूलों से लेकर पंचायतों तक पहुँचाना होगा
और सबसे अहम, स्थानीय कहानियों के ज़रिये लोगों को जोड़ना होगा, क्योंकि आंकड़े डराते हैं, लेकिन कहानियां समझाती हैं।

(आलेख स्रोत: क्लाइमेट कहानी।)

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