चंबल के बीहड़ की बिल्ली कैराकल पर क्यों गहराया संकट?

छोटी बिल्ली या स्मॉल कैट श्रेणी में कैराकल सबसे भारी, सबसे तेज और सबसे बड़ी होती है। यह एक दुर्लभ नस्ल है, जो भारत में राजस्थान, मध्यप्रदेश व गुजरात के कुछ हिस्सों में मिलती है। हाल में मध्यप्रदेश के गाँधी सागर वन्य जीव अभ्यारण्य में 20 सालों पर कैराकल की तसवीर कैमरा ट्रैप में कैद की गई। इस घटना ने इस जीव के संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने और पुरानी गलतियों को दुरुस्त करने की जरूरत को रेखांकित कर दिया है।

सतीश मालवीय

इसी महीने एक जुलाई को कैराकल की तस्वीरें मध्यप्रदेश में मंदसौर के गाँधी सागर वन्य जीव अभ्यारण्य में कैमरा ट्रैप में कैद की गई। बताया जा रहा है कि गाँधी सागर में 20 साल बाद कैराकल दिखाई दिया है।

इससे पहले राजस्थान के मुकुंदरा के जंगल में मार्च महीने में अति दुर्लभ कैराकल की तस्वीर कैमरा ट्रैप में कैद हुई थीं। ये तस्वीर करीब 20 साल की लगातार कैमरा ट्रेपिंग के बाद प्राप्त हो पाई। इससे पहले पिछले साल मुरैना में चंबल नदी में एक पर्यटक ने कैराकल की तस्वीरे अपने कैमरे में कैद की थी।

चंबल का बीहड़ कैराकल का प्राकृतिक आवास माना जाता है पर उसका बीहड़ में दिखाई देना अत्यंत ही दुर्लभ हो गया है।

मुरैना में चंबल नदी पर फारेस्ट गार्ड सोनू तोमर ने पिछले वर्ष 2024 में कैराकल को अपनी 13 वर्ष की नौकरी में पहली बार देखा था। सोनू कहते हैं, “पिछले साल  फ़रवरी महीने में हमें कैराकल तैर कर चंबल नदी पार करते हुए दिखी थी। वो मुरैना के जैतपुर गांव के तरफ से राजस्थान के धौलपुर की ओर जा रही थी। वो हमसे एक किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर थी ज़ब पर्यटकों ने दूर से कैमरे में उसकी तस्वीरें खींची। हम ज़ब तक वहाँ पहुंचे वो आगे निकल चुकी थी। अगर कैराकल यहाँ दिखी है तो बीहड़ में जरूर उसकी मांद होगी लेकिन उस घटना से पहले और बाद में हमने इस क्षेत्र में  कैराकल को कभी नहीं देखा।”

कैराकल  छोटी बिल्लियों में सबसे भारी, सबसे तेज़ और  छोटी बिल्लियों में सबसे बड़ी होती है। कैराकल की मुख्य आबादी अफ़्रीका व मध्य पूर्व में पाई जाती है। भारत में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश का चंबल और बुंदेलखंड जैसे शुष्क और घास के मैदानी क्षेत्रो में कुछ स्थानों पर यह  दुर्लभ नस्ल पायी जाती है।

कैराकल को सबसे हाल में 2014 में आईयूसीएन रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटर्ड स्पीशीज के लिए मूल्यांकित किया गया है। कैराकल को सबसे कम चिंताजनक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि यह 50 से अधिक रेंज देशों में व्यापक रूप से वितरित है, जहाँ कैराकल आबादी के लिए खतरे अलग-अलग हैं।

मुरैना वन विभाग में फारेस्टर के पद पर तैनात ज्योति दंडोतिया बीहड़ के वन्य जीवों की गहन जानकारी रखते हैं। वे बताते हैं, “पिछले वर्ष जब पर्यटकों ने यहाँ कैराकल की तस्वीरें ली तब लोगों को पता चला की ये कैराकल है जो अत्यंत दुर्लभ बिल्ली है। किसी ने भी  इससे पहले कैराकल को इस क्षेत्र में नहीं देखा था। इस घटना के बाद कई शोधार्थी आए कैराकल को खोजने, पर वो उन्हें नहीं मिली।

फॉरेस्ट गार्ड सोनू तोमर इशारे से बता रहे हैं कहाँ उन्हें कैराकल दिखी थी। फोटो – सतीश मालवीय।

ज्योति दंडोतिया बताते हैं, “इसके बाद वन विभाग ने भी चंबल क्षेत्र के 435 किलोमीटर क्षेत्र में वन्यजीव गणना की जिसमें कई विशेषज्ञ शामिल थे। उन्होंने भी  कैराकल खोजने की काफ़ी कोशिश की, पर तब भी वो मिली नहीं। बीहड़ क्षेत्र में कैराकल पहली बार देखा गया है। हमें पेट्रोलिंग के दौरान भी कैराकल कभी नहीं दिखी, इसका मतलब है कि तब देखा गया कैराकल यहाँ का नहीं था। वैसे बीहड़ कैराकल का प्राकृतिक आवास क्षेत्र है, हमें उम्मीद है कि आगे उसे दोबारा देखने मिलेगी।”

मध्यप्रदेश में इससे पहले 2007-8 में छतरपुर-झाँसी हाईवे पर और 2001 में भिंड जिले में कैराकल प्रमाणिक तौर पर दिखाई दिया है।भारत में 1616-2000 के बीच राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, गुजरात, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, तेलंगाना और झारखंड राज्यों से कैराकल की कुल 89 ऐतिहासिक रिपोर्टें हैं।

राजस्थान में कैराकल के संरक्षण पर लंबे समय से काम कर रहे जीव विज्ञानी धर्मेंद्र खंडेल चंबल नदी में कैराकल देखे जाने की घटना पर कहते हैं,” अगर वहाँ एक कैराकल देखी गई है तो वहाँ एक से ज्यादा दो-तीन या पांच कैराकल हो सकती हैं। ये समूह में रहने वाला जीव है और 10 किलोमीटर तक की परिधि में विचरण करती है।

खंडेल के अनुसार चंबल बीहड़ कैराकल के लिए आदर्श आवास है पर मध्यप्रदेश सरकार के संरक्षण में rivines (नदी के आसपास की ऐसी आकृति जिसमें नाले, गड्ढे, कंदरा, मिट्टी व रेत की प्राकृतिक घाटियां व अन्य आकृति शामिल हो) को समतल कर दिया गया है। खंडेल दृढता से यह बात कहते हैं कि मध्यप्रदेश में rivines को समतल करके कैराकल के आवास को बर्बाद कर दिया गया है। Rivines की अपनी एक अलग इकोलॉजी है जिसे कोई समझता नहीं है। Riviens में कैराकल आसानी से अपना आवास बना लेता था और शिकारीयों से बचा रहता था जो अब नहीं हो पा रहा है।

खंडेल बताते हैं मुकुंदरा में जहां अभी हाल में कैराकल की कैमरा ट्रैप में तस्वीर आई है, वहाँ राजस्थान वन विभाग और वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया 2006 से कैमरा ट्रेपिंग कर रहा है, और अब जा कर लगभग 20 साल बाद एक तस्वीर हमें मिल पाई है। इस बिल्ली की प्रजाति ही ऐसी है कि ये जल्दी दिखाई नहीं देती और ये ज्यादा है भी नहीं। कैराकल के बारे में सबसे गलत सवाल लोगों द्वारा यही पूछा जाता है कि कितने कैराकल हैं? क्योंकि किसी को नहीं पता की कितने कैराकल हैं। खुले घास के मैदान, बीहड़ क्षाडी क्षेत्र जैसे इसके आवास पहले ही नष्ट किये जा चुके हैं। 1671में भी कैराकल दुर्लभ थी और आज भी है। पश्चिम में अफ्रीका से लेकर पूर्व भारत की तरफ कैराकल की संख्या घटती गई है। भारत से आगे पूर्व में कैराकल बिलकुल भी नहीं है, इसका मतलब भारत कैराकल के निवास के आखिरी सिरे पर है इसलिए भारत में ये बहुत दुर्लभ है। कैराकल की प्रकृति ही दुर्लभ होना है।

चंबल नदी के तटीय इलाके व उसके बिहड़ अपने विशिष्ट भौगोलिक संरचना की वजह से कैराकल के लिए अनुकूल आवास रहे हैं, लेकिन इसके समतलीकरण ने इस जीव का संकट बढा दिया। फोटो – सतीश मालवीय।

अयान संधु एक वन्यजीव वैज्ञानिक हैं और राजस्थान के Riviens (बीहड़) में टाइगर वॉच और वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के साथ कैराकल और बाघ के संरक्षण पर काम कर चुके हैं। वे चंबल क्षेत्र में कैराकल की मौजूदगी की उम्मीद करते हैं और कहते हैं, “बीहड़ में कैमरा ट्रैपिंग निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है, हालांकि, लोग इसे कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, डॉ. धर्मेंद्र खांडल काफी समय से बीहड़ों में कैमरा ट्रैपिंग कर रहे हैं। मैंने और मेरी टीम ने रणथम्बोर और राजस्थान के बीहड़ों में कैमरा ट्रैपिंग की है और बिखरे हुए बाघों को ट्रैक किया है। बीहड़ यह एक शानदार परिदृश्य है, जिसकी कम खोज की गई है और जो बहुत बड़ा संरक्षण मूल्य रखता है”। वे आगे कहते हैं, चंबल के बीहड़ों में कैमरा ट्रैपिंग करने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित ग्राउंड स्टाफ की आवश्यकता होती है, अधिमानतः स्थानीय लोग जो परिदृश्य से अच्छी तरह परिचित हों और कैमरा ट्रैप की लगातार निगरानी कर सकें। यदि आप झाला एट अल 2021 की रिपोर्ट देखें, तो इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता वाले कैराकल क्षेत्रों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। हालाँकि, इन आवासों को संरक्षित करने के लिए उपयुक्त संरक्षण कार्रवाई करने की आवश्यकता है क्योंकि इनमें से अधिकांश भूमि को बंजर भूमि माना जाता है और अक्सर कृषि के लिए समतल कर दिया जाता है। मध्य प्रदेश वन विभाग को डॉ. शोमिता मुखर्जी जैसे विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए और टाइगर वॉच जैसे विशेषज्ञ संगठनों द्वारा वन कर्मचारियों का प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिए जो परिदृश्य में बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश के पीसीसीएफ वन्य जीव  शुभरंजन सेन बताते हैं, “मध्यप्रदेश में अभी तक कैराकल की दिखने की बहुत कम रिपोर्ट आई हैं। मध्यप्रदेश जैवविविधता बोर्ड कैराकल पर कुनो में एक सर्वे पर काम कर रहा है लेकिन उन्हें भी वहाँ अभी तक कैराकल नहीं दिखा है। कैराकल राजस्थान की तरफ Rivines में रिपोर्ट हुआ है हमारे यहाँ भी Rivines हैं वहाँ भी जरूर होना चाहिए। हमारे यहाँ कैराकल का पुराना क्षेत्र श्योपुर, शिवपुरी, पन्ना है। इन क्षेत्रों में इसके मिलने की संभावना हमें अभी भी है।

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