बजट2025ः ए‍क सशक्‍त एमएसएमई जलवायु वित्त पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का आह्वान

नमिता विकास एवं स्वप्ना पाटिल का आलेख

कुटीर, लघु एवं मध्‍यम उद्योग (एमएसएमई) वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ हैं। भारत के सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) में एमएसएमई क्षेत्र का योगदान 30 प्रतिशत है। वित्‍तीय वर्ष 2025-26 के केन्‍द्रीय बजट के जरिये इस क्षेत्र में नयी ऊर्जा का संचार करने की कोशिश की गयी है। बजट में इस क्षेत्र में निवेश और टर्नओवर की सीमाओं के साथ-साथ लाभों को भी बढ़ाया गया है, जिससे उन्‍हें स्‍वच्‍छ ऊर्जा से जुड़े क्षेत्रों के फलक पर अपने पंख फैलाने के मौके मिलेंगे। इस संबंल के बावजूद एमएसएमई की अगुवाई वाली जलवायु संरक्षण कार्रवाई को मुमकिन बनाने और भारत की हरित अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत करने के लिए वित्‍तीय तंत्र के दायरे को विस्‍तार देना और नीतिगत सहयोग को बढ़ाना फौरी जरूरतें है।

इस क्षेत्र का आकार जलवायु की कीमत पर मूर्त रूप लेता है। उभरते हुए बाजारों में बिजनेस-सेक्‍टर द्वारा किये जाने वाले प्रदूषणकारी तत्‍वों के उत्‍सर्जन में से 40 फीसद हिस्‍सेदारी लघु एवं मध्‍यम उद्योगों (एसएमई) की है। ऐसे में नेट-जीरो के लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिहाज से उनकी सहभागिता बेहद महत्‍वपूर्ण हो जाती है। हालांकि छोटे उद्योग अक्‍सर जागरूकता की कमी और किफायती हरित वित्‍तपोषण तक पहुंच के मामले में पिछड़ जाने की परेशानी से जूझते हैं। इसी बीच, सस्‍टेनेबिलिटी के प्रतिस्पर्धात्मक फायदों के बारे में सीमित समझ उनके निम्न-कार्बन रूपांतरण में रुकावट पैदा करती है।

बजट 2025: एमएसएमई के लिए अहम घोषणाएं

वित्त वर्ष 2025-26 के केन्‍द्रीय बजट में एमएसएमई के लिए निवेश और टर्नओवर की सीमाओं को बढ़ाया गया है जिससे वे अपने एमएसएमई के उस दर्जे को खोये बगैर अपने दायरे को और बढ़ा सकते हैं, जिससे उन्‍हें कुछ विशिष्‍ट योजनाओं का फायदा मिलता है। इसके अलावा बजट में की गयी कुछ अन्‍य उत्‍साहजनक घोषणाओं में गारंटी कवर में बढ़ोत्‍तरी (इससे कर्जदाता पर जोखिम कम होगा), समानांतर जरूरतों में कमी और औपचारिक वित्‍तपोषण तक पहुंच में सुधार भी शामिल है। इसके अलावा पहली बार उद्यम शुरू कर रही महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के उद्यमियों को टर्म-लोन उपलब्‍ध कराने और एमएसएमई इकाइयों के लिये क्रेडिट कार्ड की घोषणा को अमली जामा पहनाये जाने से इस क्षेत्र में नवोन्‍मेष, प्रगति और समावेशी रुख को मजबूती मिलेगी।

इस बजट में नेशनल मैन्‍यूफैक्‍चरिंग मिशन, नेशनल क्रिटिकल मिनरल्‍स मिशन और न्‍यूक्लियर एनर्जी मिशन के जरिये स्वच्छ और परमाणु ऊर्जा में आपूर्ति श्रृंखला एमएसएमई के लिए नए अवसर खोले गए हैं। हालांकि बजट में वित्‍तीय तंत्रों को पर्याप्‍त तरीके से नहीं छुआ गया है जबकि ये तंत्र एमएसएमई इकाइयों के कार्य संचालन में निम्‍न-कार्बनयुक्‍त विकास को जोड़ने के लिहाज से महत्‍वपूर्ण होते हैं।

एमएसएमई के लिए मौजूदा जलवायु वित्‍त परिदृश्‍य

लक्षित कार्यक्रमों, कोषों और योजनाओं ने एमएसएमई जलवायु वित्‍त की मात्रा में वृद्धि की है। इसमें भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) द्वारा उठाये गये कदम खासतौर पर उल्‍लेखनीय हैं। वर्ष 2021 में सिडबी ने ऊर्जा दक्षता संबंधी परियोजनाओं के लिए विश्‍व बैंक के साथ आंशिक जोखिम साझाकरण सुविधा शुरू की थी। इससे वर्ष 2022 तक सालाना 205 गीगावाट की बचत हुई और एक लाख 52 हजार 300 टन कार्बन डाइ ऑक्‍साइड की कटौती सम्‍भव हुई। इसके अलावा, सिडबी ने हाल ही में माइक्रो एंड एम्‍प; स्‍मॉल इंटरप्राइज ग्रीन इन्‍वेस्‍टमेंट एंड फाइनेंसिंग फॉर ट्रांसफॉर्मेशन (एमएसई जीआईएफटी) योजना शुरू की है, जो एमएसएमई को कम ब्याज दरों और ऋण गारंटी की पेशकश करके हरित प्रौद्योगिकी अपनाने में मदद करता है। सिडबी ने टाटा पावर के साथ साझीदारी की है। उसने एमएसएमई रूफटॉप सौर ऊर्जा प्रतिष्ठानों के लिए कोलेटरल-फ्री वित्तपोषण की पेशकश करने के लिए टाटा पावर के साथ भी साझेदारी की है।

हालांकि इन पहलों में प्रगति होती दिख रही है मगर वह एक बहुप्रतीक्षित रूपांतरण की बस शुरुआत भर है। भारत में सिर्फ 14 प्रतिशत एमएसएमई इकाइयों को ही औपचारिक वित्‍तपोषण उपलब्‍ध है और यहां तक कि उन्‍हें जलवायु वित्‍त तंत्र से बहुत थोड़े ही फायदे मिल पाते हैं। नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी बड़े पैमाने पर जलवायु वित्त पोषण को हासिल करने के लिए कई रुकावटों को पार करना होगा।

एमएसएमई के लिए जलवायु वित्‍त को बढ़ाने से जुड़ी चुनौतियां

सिडबी-डी एंड एम्‍प; बी सस्‍टेनेबिलिटी परसेप्‍शन इंडेक्‍स के मुताबिक एमएसएमई इकाइयों को सतत पद्धतियों को अपनाने से रोकने वाली कई प्रमुख चुनौतियां हैं। इनमें वित्‍तीय लाभ दिखने में देर लगना, मुनाफा मिलने को लेकर अनिश्चितता और निवेशकों को आ‍कर्षित करने के लिए ईएसजी निवेश परिणामों को मापने में होने वाली मुश्किल भी शामिल है। अन्‍य रुकावटों में पूंजी बाजारों तक सीमित पहुंच, ऊंची ब्‍याज दरें, ज्‍यादा सख्‍त समानांतर आवश्‍यकताएं और प्रोत्‍साहनों का अभाव भी शामिल है।

एक और परेशानी यह भी है कि एमएसएमई से जुड़े सस्‍टेनेबिलिटी डेटा की खासी किल्‍लत है। बिजनेस रेस्‍पोंसिबिलिटी सस्‍टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (बीआरएसआर) की अनिवार्यता से मुक्‍त होने की वजह से ज्‍यादातर छोटे उद्योगों को नॉन-फाइनेंशियल परफॉर्मेंस को रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं होती है। डेटा की यह कमी वित्‍तीय संस्‍थानों के लिए छोटे कारोबारों के ग्रीन क्रेडेंशियल्‍स (हरित साख) का आकलन करना चुनौती भरा होता है। इस साख में जलवायु प्रभाव एवं वित्‍तीय व्‍यवहार्यता भी शामिल है।

यह सतत पद्धतियों को पूरी तरह अपनाने और जलवायु वित्‍त तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रही भारतीय एमएसएमई इकाइयों के लिए एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र बनाता है। भारत के निम्न-कार्बन रूपांतरण को आगे बढ़ाने में इन उद्यमों की भूमिका को उजागर करने के लिए लक्षित नीति और वित्तीय समाधानों की उपलब्‍धता बेहद महत्‍वपूर्ण है।

बजट 2025 से आगे की सिफारिशें

एमएसएमई इकाइयों को नेट जीरो रूपांतरण से लैस करने के लिए सरकार को एक ठोस जलवायु वित्‍त तंत्र बनाना होगा। एक ऐसा तंत्र जिसमें मिश्रित वित्‍तीय मॉडल्‍स, क्षेत्र-विशिष्‍ट हरित वित्‍त साधन और प्रभाव निवेश शामिल हो। सरकार ने क्रेडिट गारंटी योजना शुरू की है, मगर जोखिम कम करने के कदमों और रियायती दरों पर हरित ऋण देने के लिए वित्‍तीय संस्‍थानों को प्रोत्‍साहन भी दिये जाने चाहिये।

इसके अलावा, एक एकीकृत प्रणाली के तहत एमएसएमई के लिए अनिवार्य रिपोर्टिंग की व्‍यवस्‍था शुरू करने से कुछ चुनौतियों को समाधान करने में मदद मिलेगी। अनेक बड़े उद्योगों के लिये अपनी आपूर्ति श्रंखला से होने वाले उत्‍सर्जन को रिपोर्ट करना जरूरी है। बीआरएसआर को एमएसएमई की कुछ सुनिश्चित श्रेणियों तक विस्‍तार देने से उनकी ग्रीन रिपोर्टिंग का मानकीकरण हो सकता है, डेटा की खामियों को खत्‍म किया जा सकता है और निवेशकों के आत्‍मविश्‍वास में वृद्धि की जा सकती है।

साथ ही, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) जैसे उभरते अंतरराष्ट्रीय नियमों के बीच प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए जलवायु प्रकटीकरण को अपनाने के लिए एमएसएमई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सस्‍टेनेबिलिटी का अनुपालन करना अब वैकल्पिक नहीं रह गया है। फौरी कार्रवाई किये बगैर भारतीय एमएसएमई पर घरेलू और वैश्विक दोनों ही तरह की आपूर्ति श्रंखलाओं में पिछड़ जाने का जोखिम है।

एमएसएमई को वित्तीय शर्तों, उपलब्ध हरित वित्त विकल्पों और विनियामक के अनुपालन की जरूरतों को समझने के लिए जागरूकता और क्षमता निर्माण को उपरोक्त सभी उपायों का पूरक होना चाहिए। तकनीकी सहायता मिलने से वे सतत प्रथाओं को लागू कर सकेंगे।

एमएसएमई जलवायु कार्रवाई को तेज करने के लिये भारत को साहसिक नीतिगत और वित्‍तीय समाधानों की जरूरत है। सतत निवेश के लिए एक फायदेमंद और व्यवहार्य पारिस्थितिकी तंत्र इन उद्यमों को सशक्त बनाने के साथ-साथ भविष्य के लिए तैयार भी कर सकता है। सही सहयोग के साथ वे भारत की नेट जीरो संबंधी महत्वाकांक्षाओं को ताकत दे सकते हैं।

(नमिता विकास ऑक्टस ईएसजी की संस्थापक प्रबंध निदेशक हैं। स्वप्ना पाटिल एसएमई क्लाइमेट हब की प्रबंधक हैं।)

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