अध्ययन से पता चला है कि कि जीवन के शुरूआती वर्षों में वायु प्रदूषण खासकर महीन कणों (पीएम2.5 और पीएम10), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का संपर्क बच्चों के दिमागी विकास को प्रभावित कर सकता है।
बचपन में दिमाग का सही तरीके से विकास बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता के लिए बेहद मायने रखता है। लेकिन एक नए अध्ययन ने बच्चों के मानसिक विकास को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।
बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के नेतृत्व में किए अध्ययन से पता चला है कि यदि बचपन के शुरूआती दिनों या 12 साल की उम्र तक बच्चे वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आते हैं तो उनके मस्तिष्क के महत्वपूर्ण हिस्सों के बीच की आपसी कड़ी कमजोर पड़ जाती है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं।
निष्कर्ष दर्शाते हैं कि जीवन के शुरूआती वर्षों में वायु प्रदूषण खासकर महीन कणों जैसे पीएम2.5, पीएम10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का संपर्क बच्चों के दिमागी विकास को प्रभावित कर सकता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 3,626 बच्चों से जुड़ी जानकारी का विश्लेषण किया है। ये सभी बच्चे नीदरलैंड के रॉटरडैम शहर में “जनरेशन आर” नामक रिसर्च से जुड़े थे। अध्ययन के दौरान बच्चों के घरों के आसपास वायु प्रदूषण के स्तर का आकलन किया गया। इसमें प्रदूषण के महीन कण (पीएम2.5 और पीएम10), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स शामिल थे। इसके लिए उन्होंने प्रदूषण के स्तर और पर्यावरण से जुड़ी जानकारी का विश्लेषण किया है।
इसके बाद बच्चों के दिमाग के दिमाग के अलग-अलग हिस्सों के बीच की आपसी कड़ी का अध्ययन किया गया। इसमें 13 कॉर्टिकल नेटवर्क्स (दिमाग की बाहरी सतह से जुड़े हिस्से) और तीन सबकॉर्टिकल हिस्से शामिल थे।

दिमाग के किन हिस्सों पर पड़ता है असर
बता दें कि इन सबकॉर्टिकल में अमिग्डाला, जो भावनाओं को समझने और प्रतिक्रिया देने में मदद करता है, हिप्पोकैम्पस, जो याददाश्त और सीखने से जुड़ा होता है, और कॉडेट न्यूक्लियस शामिल थे। कॉडेट न्यूक्लियस दिमाग का वो हिस्सा है जो याद्दाश्त, शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने और फैसले लेने में मदद करता है।
अध्ययन में बच्चों के मस्तिष्क की रेस्टिंग स्टेट ब्रेन स्कैनिंग भी की गई, यानी जब वे कोई कार्य नहीं कर रहे थे, तब उनके दिमाग की कार्यप्रणाली का भी अध्य्यन किया गया।
अध्ययन से पता चला कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चों के दिमाग के कुछ अहम हिस्सों के बीच आपसी जुड़ाव (फंक्शनल कनेक्टिविटी) कमजोर हो जाता है। ये हिस्से आपस में मिलकर सोचने, समझने, महसूस करने और शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने जैसे काम करते हैं।
देखा जाए तो इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो पिछले अध्ययनों से मेल खाते हैं, जिनमें भी यह संकेत मिला था कि वायु प्रदूषण बच्चों के दिमागी नेटवर्क को प्रभावित कर सकता है। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं था कि वायु प्रदूषण दिमाग के इन हिस्सों के विकास और परिपक्वता को कैसे प्रभावित करता है।
शोध के नतीजे दर्शाते हैं कि जन्म से तीन साल की उम्र तक वायु प्रदूषण के अधिक संपर्क में आने वाले बच्चों के दिमाग के कुछ जरूरी हिस्सों के बीच जुड़ाव कमजोर हो गया। खासतौर पर ध्यान देने, शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने और सुनने से जुड़े दिमागी हिस्सों और भावनाओं को समझने वाले हिस्से अमिग्डाला के बीच यह कनेक्शन कमजोर पाया गया।
इसके अलावा, जो बच्चे ब्रेन स्कैन से एक साल पहले पीएम10 के उच्च स्तर के संपर्क में आए थे, उनमें दिमाग के दो खास हिस्सों के बीच जुड़ाव कम देखा गया। सैलेन्स और मेडियल-पैराइटल नेटवर्क्स नामक यह हिस्से आसपास के माहौल को समझने और खुद के बारे में सोचने-समझने में मदद करते हैं।

चिंताजनक हैं नतीजे
अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता मोनिका गक्सेंस ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि “ये असर किशोरावस्था तक बने रहते हैं, जो दर्शाता है कि प्रदूषण के कारण दिमागी नेटवर्क के सामान्य विकास में लगातार बाधा आ सकती है। बच्चों के दिमाग में आने वाले यह बदलाव उनकी भावनाओं, सोचने-समझने की क्षमता और निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।“
शोधकर्ताओं के इसी दल द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण (विशेष रूप से पीएम 2.5) के संपर्क में आने से बच्चों के मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस हिस्से का आकार छोटा हो गया। याद दिला दें कि यह हिस्सा याददाश्त और सीखने से जुड़ा होता है। हालांकि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते गए, आगे चलकर इसमें थोड़ा सुधार देखा गया।
इसका मतलब यह हो सकता है कि दिमाग का लचीलापन (न्यूरो प्लास्टिसिटी) खासकर इस हिस्से में, प्रदूषण के शुरुआती असर को कुछ हद तक संभालने में मदद कर सकता है। हालांकि अध्ययन में हिप्पोकैम्पस पर शुरुआती असर देखा गया, लेकिन दिमाग के अन्य हिस्सों—जैसे व्हाइट मैटर, ग्रे मैटर और सेरिबैलम पर प्रदूषण का कोई खास असर नहीं पाया गया।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इन निष्कर्षों से स्पष्ट होता है कि बचपन में वायु प्रदूषण का प्रभाव दिमाग के जुड़ाव और विकास को लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है। हालांकि समय के साथ कुछ हिस्सों में सुधार जरूर देखा गया। चूंकि वायु प्रदूषण का प्रभाव बेहद व्यापक है ऐसे में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में प्रभावी नीतियां बनाई जाएं। यह न सिर्फ फेफड़ों के लिए, बल्कि दिमागी विकास के लिए भी बेहद जरूरी है।
गौरतलब है कि यह अध्ययन नीदरलैंड में रहने वाले बच्चों पर आधारित है, जहां भारत की तुलना में प्रदूषण का स्तर कम होता है। ऐसे में भारतीय शहरों में पसरा प्रदूषण किस हद तक बच्चों के दिमागी विकास को प्रभावित कर सकता है उसका अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है।
वायु गुणवत्ता पर नजर रखने वाले अंतराष्ट्रीय संगठन आईक्यू एयर ने भी अपनी नई रिपोर्ट में पुष्टि की है कि भारत, दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों की लिस्ट में पांचवें स्थान पर है, जहां 2024 में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी मानकों के लिहाज से देखें तो देश में वायु गुणवत्ता दस गुणा खराब है। 2023 में इस लिस्ट में भारत तीसरे स्थान पर था।
भारत में स्थिति किस कदर खराब है, अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया में सबसे खराब हवा वाले 100 स्थानों में से 74 भारत में हैं, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 83 दर्ज किया गया था।
(यह आलेख हमने डाउन टू अर्थ हिंदी से साभार प्रकाशित किया है।)