बिहार के एक प्रवासी श्रमिक परिवार की कहानी, शिवहर और राजकोट के बीच आना-जाना

शिवहर से राहुल सिंह की रिपोर्ट

सियाराम सहनी और उनकी पत्नी शैल देवी ने अपने जीवन का लंबा वक्त गुजरात में गुजारा और अब उन्होंने बिहार के शिवहर जिले के अपने गांव धरमपुर को तीन साल से स्थायी ठिकाना बना लिया है, हालांकि गुजरात के राजकोट से उनका रिश्ता नहीं टूटा है। सियाराम व शैल के तीन बेटों में दो बड़े बेटे रोशन सहनी 25 और सुजीत सहनी 22 साल अब भी राजकोट के गोंडल में एक मुढी मिल में लोडिंग का काम करते हैं। छोटा बेटा तुलसी सहनी गांव में ही अभी पढाई करता है।

सियाराम सहनी राजकोट से अपने परिवार के जुड़ाव की वजह बताते हुए कहते हैं – “बाहर गये बिना यहां कुछ नहीं होगा, यहां न फैक्टरी है, न रोजगार, हम तो बाहर काम कर ही गांव में जमीन खरीदे, घर बनाया। बिहार में कोई धंधा ही नहीं है, सबलोग आकर यहां रहने लगें तो दाना-पानी नहीं मिलेगा”।

सियाराम सहनी अपने युवावस्था के शुरुआती दिनों से प्रवासी मजदूर के रूप में काम करते रहे, कई राज्यों में काम करने के बाद गुजरात में काम किया, अब पिछले तीन साल से गांव में रह रहे हैं।

सियाराम सहनी बताते हैं कि वे सबसे पहले कमाने के लिए पंजाब गये थे, वहां किसानों के धान-गेहूं के खेत में खेतिहर मजदूर का काम करते थे, फिर वापस आये और गुजरात चले गये, वहीं लंबा समय गुजारा और अब घर पर हैं, क्योंकि बच्चे बड़े हो गये हैं और वे कमाने लगे हैं।

सियाराम सहनी के बड़े बेटे रोशन सहनी कहते हैं, हम वहां बहुत सालों से काम कर रहे हैं, आठ से 10 हजार रुपये महीने कमाई होती है, साल में चार महीने हम गांव में रहते हैं, आठ महीने बाहर रहते हैं। इस परिवार का बिहार से गुजरात और गुजरात से बिहार आने-जाने का चक्र चलता रहता है।

सियाराम सहनी व शैल देवी के दो बड़े बेटे जो गुजरात में काम करते हैं, जबकि छोटा बेटा गांव में पढाई कर रहा है।

बागमती नदी के किनारे बसा यह गांव बाढ़ से काफी प्रभावित रहा है और इस गांव के अनेकों लोगों की जमीन बागमती के डूब में गई हैं। गांव की मुख्य बसावट व बागमती नदी के बीच अब एक तटबंध है, जिससे ग्रामीणों को थोड़ी राहत है। हालांकि बाढ का पानी अधिक होने पर वह अब भी आता है। निचले हिस्से के खेत खरीफ की फसल के लायक नहीं है, अक्सर धान की फसलें डूब जाती हैं। इसलिए यहां के किसानों ने धान की खेती को कम कर दिया है।

बागमती नदी जो सियाराम सहनी के गांव में बाढ की प्रमुख वजह रही है, जिससे किसानों क कृषि उत्पादकता व आय घट जाती है।

बिहार में पलायन की क्या हैं वजहें, क्या है उसका परिदृश्य?

2011 के जनगणना आंकड़ों और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन, एनएसएसओ के डेटा का उपयोग करते हुए पिनक सरकार किये गए एक अध्ययन के अनुसार, बिहार से 55 प्रतिशत पुरुष प्रवासी काम की तलाश व रोजगार संबंधी कारणों से पलायन करते हैं, जबकि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत है। बिहार में रोजगार के लिए पलायन करने का प्रतिशत किसी भी अन्य राज्य से अधिक है और इस अध्ययन में पुरुषों व महिलाओं के पलायन के पैटर्न का अलग-अलग अध्यन किया गया है, क्योंकि महिलाओं का पलायन अधिकतर शादी के कारण से होता है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि व्यवाय के कारणों से पलायन का अखिल भारतीय औसत करीब दो प्रतिशत है, जबकि बिहार में यह चार प्रतिशत है।

धरमपुर गांव में बनाया गया तटबंध पर लगा बोर्ड, यह तटबंध सियाराम के घर के ठीक सामने है।

दूसरी ओर, बिहार से महिलाओं का बाहर पलायन चार प्रतिशत से भी अधिक है। व्यवसाय से संबंधित कारणों से पलायन की अखिल भारतीय औसत दर लगभग 0.29 प्रतिशत है, जबकि बिहार के लिए यह 0.48 प्रतिशत के करीब है। कुल मिलाकर, यह देखा गया है कि काम-रोजगार और व्यवसाय से संबंधित कारणों से पलायन करने की प्रवृत्ति अखिल भारतीय औसत की तुलना में बिहार से प्रवासियों के लिए दोगुनी से भी अधिक है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत भर में महिलाओं के पलायन का सबसे बड़ा कारण विवाह है, लेकिन विवाह के कारण होने वाले महिला पलायन की दर बिहार में अखिल भारतीय औसत से कम है।

सियाराम सहनी के परिवार ने प्रवासी श्रमिक के रूप में कमाई कर घर बनाया, घर के हिस्से में पशुओं के चार रखने की जगह और यह बाइक भी बाहर की कमाई से इस परिवार ने खरीदी है। फोटो: राहुल सिंह/क्लाइमेट ईस्ट।

बिहार से पलायन की प्रमुख वजह राज्य के पिछड़ेपन को बताया जाता है, जिसके कई कारक हमेशा से गिनाए जाते रहे हैं – जैसे बहुत कम कृषि उत्पादन, खेती पर उच्च निर्भरता, भूमि का अधिक असमान वितरण, उत्पादक वर्ग के पास भूमि का अभाव या भूमिहीनता, औद्योगीकरण की कमी, उच्च जनसंख्या वृद्धि आदि। सीमित औद्योगिक क्षेत्र के कम कुशल श्रमिकों के लिए रोजगार की संभावनाएं कम होती हैं और उन्हें पलायन करना होता है।

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