बंगाल के चाय बागान मजदूर नियोक्ताओं, दलालों व ईपीएफओ के कुचक्र के हैं शिकार

चाय बागान मजदूरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इपीएफओ अधिकारियों ने मुलाकात कर अपनी शिकायतें रखी है और उसके निबटारे की मांग की है
मजदूर संगठन पश्चिम बंग चा मजूर समिति के अनुसार, अबतक 21 मजदूरों की मौत भूख व इलाज के बिना हुई है

सिलीगुड़ीः उत्तर बंगाल के चाय बागानों में भारी अनियमितता व गड़बड़ियां हैं। इस संबंध में पश्चिम बंग चा मजूर समिति ने इस साल के मध्य में एक विस्तृत फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में धनी उरांव की मौत का जिक्र है। हाल में पश्चिम बंग चा मजूर समिति के 15 श्रमिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने कोलकाता स्थित कर्मचारी भविष्य निधि कार्यायल में अतिरिक्त केंद्रीय भविष्य निधि आयक्त राजीब भट्टाचार्य एवं क्षेत्रीय पीएफ आयुक्त ऋतुराज मेहदी व प्रदीप कुमार मिश्रा से मुलाकात की और अपनी मांगें रखीं।

मजदूर प्रतिनिधिमंडल ने जो पांच सूत्री मांगें रखीं हैं, वे इस प्रकार हैं –


जिन पांच बाागनों में पीएफ रिकॉर्ड के साथ विसंगति के कारण राज्य सरकार द्वारा दिए गए अपने निर्वाह भत्ता(FAWLOI) लंबित है, वहां रिकॉर्ड का युद्ध स्तर पर तुरंत सुधार किया जाये। दोषी प्रबंधन के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए और सभी पीएफ बकाए की तल्काल वसूली की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करें कि प्रबंधन द्वारा सभी श्रमिकों को यूएन नंबर दिया जाए। पीएफ विभाग में भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए और सभी दलालों को बाहर किया जाना चाहिए। सभी अस्थायी बीघा कर्मियों को पीएफ नंबर प्रदान किया जाए।

मजूदरी प्रतिनिधिमंडल ने अधिकारियों के साथ अपनी वार्ता में उनका ध्यान चाय बागान से जुड़ी कई प्रमुख समस्याओं की ओर भी आकर्षित किया।

बंगाल के चाय मजदूर कई तरह की अनियमितताओं का सामना करते हैं। यह उत्तर बंगाल के एक चाय बागान की तसवीर है।

चाय बागान मजदूरों के प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि दलाल जीवित मजदूर को मृत दिखा कर उनका पैसा निकाल लेते हैं और भूख व इलाज के अभाव से जूझ रहे 21 चाय मजदूरों की अबतक मौत हुई है। 34 बागानों के नियोक्ताओं ने 18 महीने से श्रमिकों के भविष्य निधि का पैसा जमा नहीं किया है, ऐसे में प्रतिनिधिमंडल ने अधिकारियों से हस्तक्षेप व पहल की मांग करते हुए यह सवाल उठाया कि क्या इसके लिए हमें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा।

श्रमिक प्रतिनिधिमंडल ने धनी उरांव की मौत का मामला उठाया, जिनकी मृत्यु भूख से मृत्यु के रूप में दर्ज की गई है, साथ ही कहा कि मधु टी एस्टेट के 21 अन्य श्रमिकों की मौत भूख और इलाज के अभाव के कारण हुई है। वे लोग इपीएफओ में पैसा रहते हुए भी अपनी बचत का उपयोग करने में असमर्थ थे, यह स्थिति उनकी बदहाली की एक एक मुख्य वजह थी।

बागान और पीएफ रिकॉर्ड में नाम और तारीख की विसंगतियां मौजूद हैं, जिसके कारण बंद बागानों के निराश्रित श्रमिक राज्य सरकार द्वारा दिए गए अपने निर्वहन भत्ते का उपयोग नहीं कर पाते हैं। दलाल, कुछ बागान के स्टाफ और पीएफ विभाग के कुछ लोग चार जीवित श्रमिकों को मृत दिखा कर उनके बीमा के पैसे चोरी करने के आपराधिक कृत्य में शामिल रहे हैं। प्रतिनिधिमंडल ने अधिकारियों से कहा कि प्रबंधन यूएएन नंबर, जिसके जरिये कर्मचारी बिना दलालों के पीएफ की रकम ऑनलाइन निकाल सकते हैं, जेनरेट करने से इनकार कर रहा है। इपीएफओ द्वारा कोई दंडात्मक कार्रवाई किए बिना, लगभग 34 बागानों के प्रबंधन ने 12 से 18 महीने से पीएफ राशि जमा करने में चूक की है।

बीघा श्रमिकों का मुद्दा, जिनकी लड़ाई अदालत तक पहुंची


बीघा के रूप में नियोजित नियमित श्रमिकों को प्रबंधन द्वारा पीएफ नंबर या पीएफ लाभ नहीं दिया जाता है। प्रतिनिधिमंडल ने पीएफ अधिकारियों को यह भी बताया कि जब नियोक्ताओं ने बागानों को छोड़ दिया था, तो उनके सहयोगी ट्रेड यूनियन, पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने डुआर्स क्षत्र के 29 चाय बागानों और असम, केरल व तमिलनाडु के लगभग 70 बागानों में चाय बागान श्रमिकों के बकाया भुगतान की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में मामला दाखिल किया था।

चाय बागान के आसपास का दृश्य।

अकेले पश्चिम बंगाल में प्रोविडेंट फंड का करीब 100 करोड़ सहित 350 करोड़ का बकाया लंबित था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने 2023 में दावों का सत्यापन पूरा कर लिया था, लेकिन इस बीच पश्चिम बंगाल के 29 चाय बागानों में से अधिकतर ने पीएफ बकाया जमा करने में चूक जारी रखी है। प्रतिनिधिमंडल ने पीएफ विभाग की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया।

इस शिकायतों को सुनने के बाद अतिरिक्त केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त राजीब भट्टाचार्य ने प्रतिनिधिमंडल को यह भरोसा दिलाया कि नवंबर 2024 में बागानों में शिविर आयोजित किया जाएगा और वह खुद इन शिविरों में उपस्थित रहेंगे। पश्चिम बंगाल चा मजूर समिति ने अधिकारी की इस पहल का स्वागत किया है और कहा है कि चाय बागान मजदूरों की दुर्दशा इपीएफओ की प्रणालीगत विफलताओं का प्रतिबिंब है और इससे दुरुस्त करने के लिए बहुत कठोर उपाय करने की आवश्यकता है।

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