क्लाइमेट ईस्ट डेस्क
येलो मॉनिटर मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाया जाता है, लेकिन इसका सबसे बड़ा केंद्र पश्चिम बंगाल है।
येलो मॉनिटर (Varanus flavescens) छिपकिलियों या सरीसृप वर्ग की एक अहम प्रजाति है जो दक्षिण एशिया में और खासतौर पर पूर्वी भारत में पाई जाती है। पूर्वी भारत में भी पश्चिम बंगाल इसका प्रमुख केंद्र है। यह अपने रूप व आकार के कारण थोड़ा भय पैदा करने वाला जीव लगता है लेकिन यह मनुष्य के लिए हानिकारक नहीं है। बल्कि ये एक कीट पतंगों को अपना भोजन बना कर कर एक तरह से उन्हें नियंत्रित करते हैं। इन्हें अंध्विश्वास, गलत जानकारी और मानव-वन्यजीव संघर्ष व वन्यजीव तस्करी जैसी परेशानियों का सामना करना होता है।
भरत में चार प्रकार की मॉनिटर छिपकिलियां पाई जाती हैं, जिनके नाम बंगाल मॉनिटर, एशियाई वाटर मॉनिटर, येलो मॉनिटर व डिसर्ट मॉनिटर या रेगिस्तानी मॉनिटर हैं। इनमें सबसे व्यापक रूप से बंगाल मॉनिटर पाये जाते हैं जो हरेभरे क्षेत्र से लेकर रेगिस्तान तक मिलते हैं और यहां तक कि दिल्ली-एनसीआर जैसी घनी आबादी वाले क्षेत्र में मिल जाते हैं। इन चारों में एशियाई मॉनिटर सबसे बड़े आकार के होते हैं, जिनकी लंबाई दो मीटर तक होती है, जबकि दूसरे नंबर पर बंगाल मॉनिटर हैं जो पौने दो मीटर तक के होते हैं। जबकि इन चारों प्रजातियों में सबसे छोटा आकार येलो मॉनिटर का ही होता है जो 45 से 95 सेमी लंबे होते हैं। येलो मॉनिटर वेटलैंड के आसपास व कृषि या गीली भूमि के आसपास प्रमुखता से मिलते हैं। इनका वजन डेढ किलो के आसपास होता है और ये शिकार व अपने आवास क्षति का सामना कर रहे हैं।
इनकी सही संख्या भी ज्ञात नहीं है और ये एक संकटग्रस्त प्रजाति हैं और लगभग सभी दक्षिण एशियाई देशों भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान व बांग्लादेश सभी संरक्षित श्रेणी में हैं। ये 15 से 20 साल तक का जीवन जीते हैं और दो किलोग्राम तक इनका वजन होता है।
(नोट – इस आलेख में प्रयोग की गई तसवीर गणेश चौधरी के सौजन्य से प्राप्त हुई है, वे पश्चिम बंगाल में एक वन्य जीव संरक्षण कार्यकर्ता हैं।)