बंगाल में मनरेगा के बंद होने से भूख, कुपोषण, पलायन, गरीबी में वृद्धि, अन्य राज्यों के मजदूरों ने उठाई आवाज


पश्चिम बंगाल में मनरेगा को शुरू करवाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को अबतक 4700 मजूदरों भेज चुके हैं पोस्टकार्ड

पश्चिम बंगाल में पिछले पौने तीन साल से महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी मनरेगा के तहत काम बंद है। इसको लेकर केंद्र सरकार के समक्ष नरेगा संघर्ष मोर्चा सहित विभिन्न मजदूर संगठनों ने कई बार अपनी मांगें रखी हैं। कलकत्ता हाइकोर्ट में इसको लेकर मामला चल रहा है। अब इस बीच विभिन्न राज्यों के मनरेगा मजदूरों ने एक नई पहल की है। वह पहल है – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखना और उस पत्र में प्रधानमंत्री से पश्चिम बंगाल में मनरेगा को फिर से शुरू करवाने की मांग करना।

बिहार से शुरू हुई यह पहल सात राज्यों में पहुंच चुकी है और प्रधानमंत्री को कम से कम 4700 मनरेगा पोस्टकार्ड भेज चुके हैं।

बिहार में जन जागरण शक्ति संगठन, जन विकास शक्ति संगठन, प्रवासी मजदूर संगठन की पहल पर 800 मनरेगा मजदूरों ने 800 पोस्टकार्ड प्रधानमंत्री को भेजे हैं, जिसमें पश्चिम बंगाल में मनरेगा को फिर से शुरू करवाने की मांग की गई है। उत्तर प्रदेश में संगठित किसान मजदूर संगठन की पहल पर 500 से ज्यादा पोस्टकार्ड भेजे गये हैं।

उत्तर दिनाजपुर के ईटाहार ब्लॉक की ईटाहार पंचायत के कमालपुर गांव की मनरेगा श्रमिक व अन्य महिलाएं। फोटो – राहुल सिंह।

झारखंड में खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच की पहल पर 200 से अधिक पोस्टकार्ड, छत्तीसगढ में छत्तीसगढ किसान मजदूर संगठन की पहल पर 500 से अधिक पोस्टकार्ड, गुजरात में अन्न सुरक्षा अधिकार अभियान की पहल पर 2500 से अधिक पोस्टकार्ड, तेलंगाना में दलित बहुजन फ्रंट की पहल पर 100 से ज्यादा और आंध्रप्रदेश में अंबेडकरीजेम पुनाडी की पहल पर 100 से अधिक मनरेगा मजदूरों ने प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड भेजा है और पश्चिम बंगाल में मनरेगा को फिर से शुरू करवाने की मांग की है।

केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर मनरेगा एक्ट की धारा 27 का प्रयोग करते हुए पश्चिम बंगाल में मनरेगा का आवंटन रोक दिया है। जबकि जन संगठनों का कहना है कि भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना और दोषियों को सजा देना का काम सरकार कर सकती है, गरीब मजदूरों का पैसा इसके लिए क्यों रोका जाये।

पांच अगस्त 2024 को विभिन्न जन संगठनों की एक 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव से मुलाकात कर भी अपनी मांगें रखी। जन संगठनों का कहना है कि सबसे गरीब लोगों के लिए बनाए गए इस कानून के तहत मिलने वाले आवंटन पर रोक से राज्य में पलायन, भूख और कुपोषण, आत्महत्या की दर, पहले से कमजोर दबगे के और गरीबी में जाने के मामले में बढ रहे हैं।

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