एप्पल ने वर्ष 2030 तक 100 प्रतिशत स्वच्छ बिजली अपनाने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में एप्पल के पांच में एक फोन भारत में असेंबल हो रहे हैं और भारत में उसके 13 सक्रिय आपूर्तिकर्ताओं में अधिकतर का प्रदर्शन उसके महत्वाकांक्षी हरित ऊर्जा लक्ष्यों के अनुरूप नहीं दिखता।
नई दिल्ली: पर्यावरण थिंकटैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स (Climate Risk Horizons) की एक नई रिपोर्ट के अनसार, एप्पल के बड़े जलवायु वादों के बावजूद, इस कंपनी के भारत आपूर्तिकर्ता हरित ऊर्जा में बहुत कम प्रगति कर पा रहे हैं। जबकि ये पांच आइफोन में एक आइफोन भारत में असेंबल करते हैं। एप्पल का लक्ष्य 2015 के बेसालाइन से 2030 तक अपने स्कोप 1, 2 और 3 एमिशन को 75 प्रतिशत तक कम करना है और उसने अपने आपूर्तिकर्ता और फाइनल असेंबल साइट्स को 2030 तक 100 प्रतिशत स्वच्छ बिजली पर स्विच करने के लिए कहा है।
क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स ने इस मुद्दे पर जारी अपने प्रेस बयान में कहा है कि स्कोप 1, 2 एवं 3 एमिशन में कुल मिलाकर वे सभी ग्रीनहाउस गैसें शामिल हैं, जिनके लिए एक कंपनी जिम्मेदार है। अपने ऑपरेशन (स्कोप 1) खरीदी गई एनर्जी (स्कोप 2) और अपनी वैल्यू चेन चेन में सब कुछ जिसमें सप्लायर और प्रोडक्ट का इस्तेमाल (स्कोप 3) शामिल हैं।
वित्त वर्ष 2024 में दुनिया के 20 प्रतिशत आइफोन भारत में असेंबल किए गए और यह हिस्सेदारी और बढने की उम्मीद है। लेकिन, ग्रीनिंग इंडियाज एप्पल (“Greening India’s Apple”) रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में एप्पल के 13 सप्लायर्स ने हरित ऊर्जा को अपनाने में कम तरक्की की है।
इस रिपोर्ट के लीड राइटर सिमरन कालरा ने कहा, “भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट वाले 13 एप्पल सप्लायर्स में से सिर्फ दो ने अपनी सस्टेनिबिलिटी रिपोर्ट में नवीनीकृत ऊर्जा के इस्तेमाल की रिपोर्ट दी है”।
“यह 2030 तक अपनी सप्लाई चेन में 100 प्रतिशत नवीनीकृत ऊर्जा प्रयोग के एप्पल के लक्ष्य से बहुत दूर है। यही नहीं आपूर्तिकर्ता या स्पलाइयर्स एनर्जी डेटा मॉनिटरिंग और उसके वेरिफिकेशन से भी पीछे हैं। एप्पल की स्कोप3 एमिशन रिपोर्टिंग को सही और भरोसमंद बनाने के लिए इन कमियों को दूर करना जरूरी है”।
सप्लायर्स का कैसा रहा है स्वच्छ ऊर्जा खरीद में प्रदर्शन
भारत में एप्पल के लिए मैन्युफैक्चरिंग करने वाले 13 सप्लायर्स में से सिर्फ़ FIH मोबाइल लिमिटेड (फॉक्सकॉन की एक सब्सिडियरी) और फ्लेक्स लिमिटेड ने पावर परचेज़ एग्रीमेंट्स (PPAs), सेल्फ-बिल्ट सोलर और बंडल्ड रिटेल बिजली जैसे ‘हाई-इम्पैक्ट’ तरीकों से हरित ऊर्जा खरीदा है। FIH ने 2024 में 35% RE पर अपना ऑपरेशन चलाया, जबकि Flex ने अपनी सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट के आधार पर 2023 और 2022 में 27.5% इस्तेमाल किया। बाकी 11 सप्लायर ने या तो भारत में कोई RE (रिन्यूएबएल एनर्जी/नवीनीकृत ऊर्जा/हरित ऊर्जा) इस्तेमाल नहीं किया, लो-इम्पैक्ट एनर्जी एट्रिब्यूट सर्टिफिकेट खरीदे, या भारतीय प्लांट के लिए RE खरीद के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स कार्बन न्यूट्रैलिटी का दावा करता है, लेकिन सिर्फ़ लो-इम्पैक्ट इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी क्रेडिट (i-RECs) खरीदकर।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ग्रिड उत्सर्जन तभी कम होता है जब नई नवीकरणीय क्षमता कोयला आधारित उत्पादन की जगह लेता है। पीपीए जैसे उच्च प्रभाव वाले खरीद विकल्प इस बदलाव में योगदान देते हैं। इसके विपरीत केवल आरइसी खरीदने से जीवाष्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन या खपत पर कोई अंतर नहीं पड़ता है। इसलिए इन्हें डीकार्बाेनाइजेशन में कम प्रभावी माना जाता है।

रिपोर्ट में एप्पल और उसके भारत स्थित आपूर्तिकर्ताओं की नवनीतम सार्वजनिक स्थिरता रिपोर्टाें, जलवायु नीतियों, कार्बन प्रोजेक्ट डिस्क्लोजर का विश्लेषण शामिल है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 13 में 10 आपूर्तिकर्ता तमिलनाडु, कर्नाटक व महाराष्ट्र जैसे उन राज्यों में स्थित हैं, जहां ओपेन एक्सेस क्षमता व हरित ऊर्जा दोनों बहुत मजबूत है। इसके बावजूद ये कंपनियां अपने संचालन में ओपन एक्सेस RE का उपयोग नहीं कर रही हैं। यह स्थिति एप्पल की सप्लाई चेन डीकार्बाेनाइजेशन के प्रयासों में एक बड़ी कमी को दर्शाती है।
कंपनी के लिए क्या है थिंक टैंक की अनुशंसा
दुनिया भर में एप्पल ने अपने मार्केट आधारित एमिशन में लगातार गिरावट की रिपोर्ट दी है, जिसका क्रेडिट वह अपने आपूर्तिकर्ता द्वारा हरित ऊर्जा के इस्तेमाल को देता है। हालांकि, रिपोर्ट में पाया गया कि 2023 व 2024 में एप्पल के वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं द्वारा की गई RE खरीद का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अनबंडल आरइ सर्टिफिकेट्स जैसे कम प्रभाव व कम पारदर्शिता वाले साधनों के माध्यम से था।
रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि एप्पल अपने आपूर्तिकर्ताओं को अनबंडल्ड आरइसी के बजाय दीर्घाकालिक पावर परचेज़ एग्रीमेंट्स (PPAs) ऑन साइट/स्वामित्व वाली ऊर्जा परियोजनाओं जैसे उच्च प्रभाव विकल्प अपनाने के लिए प्रेरित करे। एप्पल को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके आपूर्तिकर्ता सभी उत्पादन स्थलों के लिए उर्जा डेटा की व्यापक मानिटरिंग और स्वतंत्र वेरिफिकेशन कराएं। कुछ देशों में एप्पल ने अपनी सप्लाई चेन को डीकार्बानाइज करने के लिए नई नवीकरणीय ऊर्जा संरचना में सीधे निवेश किया है, लेकिन भारत में उसने अबतक ऐसा नहीं किया है।
क्लाइमेट रिस्क होरइजन के आशीष फर्नांडिस कहते हैं, “एप्पल का भारत को मैन्युफैक्चरिंग अब के तौर पर चुनना बहुत अच्छा कदम है, लेकिन नवीनीकृत ऊर्जा के मोर्चे पर उसके सप्लायर्स का खराब प्रदर्शन चिंता की बात है। एप्पल को यह पक्का करना होगा कि उसके भारतीय आपूर्तिकर्ता 2030 के 100 प्रतिशत नवीनीकृत ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए रास्ते पर हैं। भारत के मजबूत नवीनीकृत ऊर्जा पारिस्थितिकी को देखते हुए यह काफी मुमकिन है, लेकिन इसके लिए एप्पल, उसके आपूर्तिकर्ता और लोकल डिस्कॉम्स को इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से काम करना होगा”।