पश्चिम बंगाल: मनरेगा पर केंद्र की याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज, टीएमसी झूठा श्रेय न ले, उसने कुछ किया नहीं

पीबीकेएमएस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र की याचिका को खारिज किया जाना मजदूरों की जीत है और टीएमसी जिसने इस मुद्दे पर कोई संघर्ष नहीं किया, उल्टे रोड़ा अटकाया, वह झूठी वाहवाही ले रही है।

कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को केंद्र सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP (C) No. 25528/2025) को खारिज कर दिया। इस एसएलपी में पश्चिम बंगाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून के तहत काम को फिर से शुरू करने के कलकत्ता हाइकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। कलकत्ता हाइकोर्ट ने इस संबंध में कुछ महीने पर केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल के मजदूर संगठन पश्चिम बंग किसान मजूर समिति (पीबीकेएमएस) की एक चायिका पर सुनवाई करते एक अगस्त 2025 से फिर से काम शुरू करने का निर्देश दिया था

हालांकि हाइकोर्ट के इस आदेश के अनुपालन को लेकर केंद्र सरकार का रवैया टालमटोल वाला रहा है, जिसके बाद पीबीकेएमएस ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार की एसएलपी खारिज होने के बाद इस मामले पर राज्य की सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस के रुख की इस मामले की कानूनी लड़ाई लड़ने वाली पीबीकेएमएस ने तृणमूल कांग्रेस की कड़ी निंदा की है।

पीबीकेएमएस ने अदालती प्रक्रिया पर टीएमसी की प्रतिक्रिया की निंदा करते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस इस जीत का श्रेय ले रही है और हम उसके इस झूठे दावे की कड़ी निंदा करते हैं।

पीबीकेएमएस ने कहा है कि यह जीत बंगाल के ग्रामीण मजदूरों की जीत है, किसी राजनीतिक दल की नहीं। पिछले तीन सालों से पीबीकेएमएस के निरंतर कानूनी संघर्ष और जन आंदोलन का यह परिणाम है, न कि उन लोगों काम जो मनरेगा में भ्रष्टाचार व विलंब के लिए जिम्मेवार हैं।

पीबीकेएमएस ने सवाल किया है कि जिस सत्तारूढ दल का भ्रष्टाचार मनरेगा के बंद होने के लिए जिम्मेवार है, वह अब काम फिर से शुरू करने के लिए कैसे जिम्मेवार हो सकती है? जिस सत्तारूढ दल की सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी कानूनी रूप से अनिवार्य काम और बेरोजगारी भत्ते के आवेदन को लेने से इनकार कर दिया, वह अब जीत का दावा कैसे कर सकती है?

सच्चाई यह है कि पीबीकेएमएस कलकत्ता उच्च न्यायालय में जनहित याचिका का याचिकाकर्ता था। न तो टीएमसी और न ही राज्य सरकार ग्रामीण श्रमिकों के पक्ष में इस मामले को दायर करने, बहस करने या समर्थन करने में शामिल थी। इसके विपरीत, राज्य सरकार इस मामले में प्रतिवादी थी। जिस राजनीतिक दल की सरकार प्रतिवादी हो, वह किसी मामले में विजेता होने का दावा कैसे कर सकता है, यह हमारी कानूनी समझ से परे है और टीएमसी नेताओं के कानूनी ज्ञान पर सवाल उठाता है।

पीबीकेएमएस ने केंद्र सरकार की भूमिका पर नाराजगी जतायी कि उसने चार सालों तक काम रोके रखा, जिससे पश्चिम बंगाल के डेढ करोड़ ग्रामीण मजदूरों हो असहनीय कष्ट झेलना पड़ा है। पीबीकेएमएस ने कहा है कि यह बंगाल के ग्रामीण मजदूरों की जीत है न कि तृणमूल कांग्रेस या किसी अन्य राजनीतिक दल की। साथ ही राज्य सरकार मजदूरों को परेशान करना बंद करे और काम व बेरोजगारी भत्ता का आवेदन स्वीकार करे।

पूर्बायन चक्रवर्ती और मृणालिनी पॉल का लेख पढें –

मनरेगा पर कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश का संदेश: कुछ के भ्रष्टाचार के लिए लोगों को सजा नहीं दी जा सकती

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