डॉ डेम जेन मॉरिस गुडॉल का अमेरिका के लॉस एंजिल्स में एक अक्टूबर 2025 को उम्र जनित वजहों से निधन गया। उनके निधन पर दुनिया भर के पर्यावरण हितैषियों, संरक्षणवादियों ने दुःख व्यक्त करते हुए उनकी महान विरासत को याद किया है।
डॉ जेन गुडॉल द्वारा स्थापित संस्थान जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट यूएसए ने उनके बारे में लिखा, “डॉ जेन गुडॉल, जेन गुडॉल संस्थान की संस्थापक, संयुक्त राष्ट्र शांति दूत और विश्वप्रसिद्ध नैतिकतावादी, संरक्षणवादी और मानवतावादी का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। डॉ जेन तंजानिया के गोम्बे के जंगली चिम्पांजियों पर अपने 65 वर्षों के अध्ययन के लिए दुनिया भर में जानी जाती थीं”।
हालांकि अपने जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने अपना ध्यान मानवाधिकारों, पशु कल्याण, प्रजातियों व पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित किया और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों की वैश्विक पैरोकार बन गईं। वे युवाओं को संरक्षण व मानवीय परियोजनाओं में शामिल होने के लिए सशक्त बनाने के लिए उत्सुक थीं और उन्होंने जंगली और बंदी चिंपाजियों दोनों पर केंद्रित कई शैक्षिक पहलों की अगुवाई की। विकास के रहस्यों के प्रति उनके आकर्षण और पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों का सम्मान करने की मूलभूत आवश्यकता में उनके दृढ़ विश्वास ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया।
वैलेरी जेन मॉरिस गुडाल के रूप में जन्मी जेन व्यवसायी और रेसिंग कार चालक मोर्टिमर हर्बर्ट मॉरिस गुडॉल और लेखिका मार्गरेट मायफैनवे जोसेफ की सबसे बड़ी बेटी के रूप में 1934 में जन्मीं थीं।
जेन को बचपन से ही वन्यजीवों में गहरी रुचि थी और वह प्राकृतिक दुनिया के बारे में बड़े चाव से पढ़ती थीं। उनका सपना अफ्रीका की यात्रा करना, जानवरों के बारे में और जानना और उनके बारे में किताबें लिखना था। केन्या जाने के लिए समुद्री यात्रा के लिए पर्याप्त पैसे बचाने के लिए वेट्रेस का काम करने के बाद, जेन को सलाह दी गई कि वह प्रतिष्ठित जीवाश्म विज्ञानी डॉ लुई लीकी से मिलने की कोशिश करें। लुई ने उन्हें नैरोबी के राष्ट्रीय संग्रहालय में सचिव के रूप में नियुक्त किया और इस तरह उन्हें ओल्डुवाई घाटी में जीवाश्मों की खोज में लुई और मैरी लीकी के साथ समय बिताने का अवसर मिला।
वहाँ जेन के धैर्य और दृढ़ संकल्प को देखकर लुई ने उन्हें तंजानिया जाकर गोम्बे के जंगल में जंगली चिंपैंजी परिवारों का अध्ययन करने के लिए कहा। पीछे मुड़कर देखने पर जेन हमेशा कहती थीं कि वह किसी भी जानवर का अध्ययन कर सकती थीं, लेकिन जंगल में मनुष्य के सबसे करीबी जीवित रिश्तेदार का अध्ययन करने का मौका पाकर वह खुद को बेहद भाग्यशाली महसूस करती थीं।
14 जुलाई 1960 को जेन पहली बार गोम्बे पहुँचीं। यहीं पर उन्होंने चिम्पांजी के व्यवहार की अपनी अनूठी समझ विकसित की और यह अभूतपूर्व खोज की कि चिम्पांजी औज़ारों का उपयोग करते हैं। इस अवलोकन को मानव होने के अर्थ को पुनर्परिभाषित करने का श्रेय दिया गया है।

Photo – Hungo Van via National Geographic.
यह जानते हुए कि जेन के काम को तभी गंभीरता से लिया जाएगा जब वह शैक्षणिक रूप से योग्य होंगी और उनके पास कोई डिग्री न होने के बावजूद, लुई ने जेन के लिए कैम्ब्रिज के न्यून्हम कॉलेज में एथोलॉजी में पीएचडी की पढ़ाई की व्यवस्था की। जेन की डॉक्टरेट थीसिस द बिहेवियर ऑफ फ्री लिविंग चिम्पांजीज़ इन द गोम्बे स्ट्रीम रिज़र्व 1965 (The Behaviour of Free-living Chimpanzees in the Gombe Stream Reserve) में पूरी हुई। उनका तीन महीने का अध्ययन दशकों तक चलने वाले एक असाधारण शोध कार्यक्रम में विकसित हुआ और आज भी जारी है।
अपने जीवनकाल में जेन ने वयस्कों और बच्चों के लिए 27 से ज़्यादा किताबें लिखीं और कई वृत्तचित्रों और फ़िल्मों के साथ-साथ दो प्रमुख आईमैक्स प्रस्तुतियों में भी काम किया। उनके पुरस्कार और सम्मान मानवीय उपलब्धियों के विभिन्न स्तरों पर फैले हुए हैं। 2002 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र शांति दूत नामित किया गया।
दुनिया की प्रमुख पर्यावरण हस्तियों ने डॉ जेन के निधन पर क्या कहा
आईयूसीएन अध्यक्ष रज़ान अल मुबारक ने उनके निधन पर कहा, “डेम जेन गुडॉल हमेशा वैश्विक संरक्षण आंदोलन के लिए आशा की प्रतीक और एक स्थायी प्रेरणा बनी रहेंगी। वे हमारे स्पेशिज सर्विलांस कमिशन प्रजाति अस्तित्व आयोग और प्रकृति संरक्षक के रूप में एक अथक समर्थक थीं और उनकी आवाज़ हमेशा हमारे विश्व संरक्षण सम्मेलनों में मौजूद रही, जिसमें अगले हफ़्ते अबू धाबी में शुरू होने वाला सम्मेलन भी शामिल है”।
संरक्षण में उनका योगदान अतुलनीय है, और उनकी असीम ऊर्जा, अडिग दृढ़ संकल्प और अटूट आशावाद पीढ़ियों का मार्गदर्शन और प्रेरणा करता रहेगा।
आईयूसीएन की महानिदेशक डॉ ग्रेथेल एगुइलर ने कहा, “एक अग्रणी वैज्ञानिक और वन्यजीवों की अथक पैरोकार के रूप मेंए उन्होंने मानवता के उन गहरे संबंधों को समझने के तरीके को बदल दिया जो हमें और प्रकृति को एक साथ जोड़ते हैं। उन्होंने लाखों लोगों को दिखाया है कि एक व्यक्ति का जुनून और दृढ़ता प्रकृति के लिए एक वैश्विक आंदोलन को प्रेरित कर सकती है . हमें याद दिलाती है कि जब समर्पण, साहस और विज्ञान प्रकृति की सेवा में एकजुट होते हैं तो क्या संभव है”।
डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म मोंगाबे के संस्थापक व सीईओ रेट एयर्स बटलर ने उनके बारे में लिखा, “मुझे यकीन नहीं हो रहा कि जेन गुडाल अब नहीं रहीं। वे मेरे लिए किसी आदर्श से बढकर थीं। वह एक दोस्त, एक मार्गदर्शक और एक ऐसी शख्सियत थीं, जिनकी मौजूदगी चाहे राष्ट्रप्रमुखों के साथ, छात्रों के साथ या मेरे अपने बच्चों के साथ – एक तोहफे और एक सीख दोनों की तरह महसूस होती थीं”।

डॉ जेन गुडॉल के साथ रेट एयर्स बटलर। फोटो – रेट एयर्स बटलर का लिंक्डइन प्रोफाइल।
उनका मानना था कि आशा केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक साधन है। वह मुझे बताती थी कि आशा शक्ति का निर्माण करती है। संकट जितना बड़ा होता है, लोग उतना ही अधिक असहाय महसूस करते हैं। लेकिन छोटी-छोटी, स्थानीय जीतें, वुंडा चिम्पांजी को वापस जंगल में छोड़ना, किसी आर्द्रभूमि की रक्षा करना या कांगो में किसी नंगी पहाड़ी पर पेड़ लगाना साबित करती हैं कि बदलाव संभव है। उनकी करुणा पशु जगत के सबसे छोटे कोने तक फैली हुई थी।
जेन ने मुझे और अनगिनत लोगों को सिखाया कि हम जो भी जीते हैं, हम उस पर प्रभाव डालते हैं। उनके जीवन ने साबित कर दिया कि एक व्यक्ति – जो करुणा में निहित है और आशा से पोषित है – दुनिया को बदल सकता है। अब यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम उस प्रकाश को आगे बढ़ाएँकृएक विदाई के रूप में नहीं, बल्कि एक वादे के रूप में।
जेन गुडॉल के सम्मान पर आप कुछ शब्द ऑडियो, टेक्स्ट या वीडियो के रूप में कहना चाहते हैं तो उनके द्वारा स्थापित संस्थान की वेबसाइट के नीचे दिए गए लिंक पर जाइए और कहिए –