फोटो स्टोरी: झारखंड के साइकिल कोयला मजदूरों की दो पैरों पर मीलों की दूरियां तय करने की कहानियां


राहुल सिंह


झारखंड के 24 में 12 जिलों में कोयला खनन होता है। राज्य के कुछ जिलों को छोड़ हर जगह साइकिल कोयला मजदूर दिखते हैं। उत्तरी व दक्षिणी छोटानागपुर व संताल परगना में उनकी संख्या अधिक नजर आती है। ऐसे साइकिल कोयला मजदूर खनन परियोजनाओं के आसपास के लोग होते हैं और कई बार उससे प्रभावित भी।

हजारीबाग: झारखंड के 24 में 12 जिलों में कोयला खनन होता है और कम से कम राज्य के तीन चौथाई जिलों में साइकिल कोयला मजदूर आसानी से दिख जाएंगे। यह जरूर है कि जिस जिले में कोयला खनन होता है, वहां और उसके ठीक पड़ोस के जिलों में साइकिल कोयला मजदूर अधिक दिखते हैं।

हर साइकिल कोयला मजदूर की एक कहानी होती है – उसके हर दिन के संघर्ष की, खदान से कोयला उठाने वालों से कोयला लेने, रास्ते में पुलिस वालों की झिड़कियां और कई किलोमीटर के सफर में पैरों का संतुलन और 50 किलो के मानव शरीर के सीने पर कई क्विंटल का बोझ, जो सामान्यत तीन से पांच क्विंटल और कई बार उससे अधिक भी होते हैं।

साइकिल कोयला मजदूरों के सीने और पैरों पर कोयला लदी साइकिल को धकेलने में काफी भार पड़ता है। पैरों का संतुलन इस काम में महत्वपूर्ण है।

हजारीबाग में बहुत व्यापक कोयला खनन क्षेत्र है, जिसमें दो महत्वपूर्ण हैं। एक हजारीबाग कोल माइनिंग एरिया है जो अपेक्षाकृत पुराना माइनिंग एरिया है और वहां कई किलोमीटर के दायरे में अनेकों खदानें फैली हैं और वह रामगढ़ जिले की खदानों से भी लगी हुई हैं। इस इलाकों में नाम पट्टियों में दूरी जगह या गांव की दूरी नहीं, एक से दूससे कोल माइंस की दूरियां लिखी दिखेंगी। यह इस इलाके का लैंड मार्क है। गांवों की खुद की पहचान लगभग लुप्त है और वे कोल माइनिंग प्रोजेक्ट के नाम से ही अधिक जाने जाते हैं। इसके अलावा एक दूसरा कोयला खनन क्षेत्र बड़कागांव है जो अपेक्षाकृत नया खनन क्षेत्र है

हजारीबाग शहर में एक साइकिल कोयला मजदूर। मजदूरों का कहना है कि कोयले की कीमतें उनके द्वारा तय की जाने वाली दूरी से बढती है।

हमने हजारीबाग कोयला खनन क्षेत्र से कुछ कोयला मजदूरों की कहानियां एकत्र की और उनकी परेशानियां और इस रोजगार को अपनाने की वजह जानने की कोशिश की।

हजारीबाग जिले के चरही प्रखंड के कजरी गांव के साइकिल कोयला मजदूर गुदन प्रजापति एक उम्रदराज साइकिल कोयला मजदूर हैं। वे बताते हैं कि 1992 से ही साइकिल कोयला मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। गुदन प्रजापति ने इस संवाददाता से बातचीत में कहा कि वे कुम्हार जाति से आते हैं और मिट्टी के बरतन की मांग कम हो जाने के बाद साइकिल कोयला मजदूर के रूप में काम करना ही उनके पास एक विकल्प था।

साइकिल कोयला मजदूर गुदन प्रजापति बताते हैं कि वे कुम्हार जाति के हैं, लेकिन मिट्टी के बरतनों की मांग कम होने की वजह से वे यह काम करते हैं।

गुदन प्रजापति ठंड के महीने की एक सुबह अपने अन्य साथी कोयला मजदूरों के साथ घर जाते वक्त मिले। वे कोयला बेचने के बाद हजारीबाग शहर के बाहरी इलाके से एक मिनी ट्रक पर अपनी साइकिल को लादकर घर लौट रहे थे। ये अहले सुबह साइकिल पर कोयला लेकर बेचने निकलते हैं और जितनी दूरी तय होती है, उस हिसाब से दाम में थोड़ा-थोड़ा इजाफा होता है और फिर उसे बेचने के बाद वापस लौटते हैं।

कई साइकिल कोयला मजदूर मध्य रात्रि से ही सफर शुरू करते हैं और यह कई दफा आधे दिन (12 घंटे) का तो कई बार एक से डेढ़ दिन का भी होता है।

एक साइकिल कोयला मजदूर के साइकिल पर रखा मोबाइल व टोपी।

34 साल के साइकिल कोयला मजदूर गुलाम अंसारी ने बताया कि घाटी क्षेत्र में साइकिल पर कोयला लेकर आगे बढने में असुरक्षा महसूस होती है, यह एनएच – 33 (रांची-पटना रोड) का व्यस्त मार्ग है तो डर लगता है कि कहीं कोई गाड़ी धक्का न मार दे। उनके भाई उनके साथ हेल्पर के रूप में काम करते हैं यानी पीछे से साइकिल को धक्का देते हैं। वे बताते हैं कि महीने में हम 10 से 12 ट्रिप ही कोयला बेच पाते हैं।

कोयला बेचने के बाद हजारीबाग शहर में ट्रक पर साइकिल लाद कर अपने घर की जाने की तैयारी में मजदूर।

चरही ब्लॉक क्षेत्र में हजारीबाग कोल माइनिंग एरिया में एक गांव के निकट मिले साइकिल कोयला मजदूर सुंदर बताते हैं कि कोयला ढुलाई में पैर व सीने पर काफी जोर पड़ता है और यह एक काफी कठिन काम है। उनका कहना है कि रोजगार का अन्य विकल्प नहीं होने की वजह से हम ये काम करते हैं

रस्सी साइकिल कोयला मजदूरों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जिससे वे कोयले की बोरियां साइकिल पर बांधते हैं।

झारखंड के इन साइकिल कोयला मजदूरों की संख्या ज्ञात नहीं है और इसका सिर्फ कुछ मानक तय कर अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन, राज्य में इनकी काफी बड़ी संख्या है और निश्चित रूप से वह पांच अंकों में है।

साइकिल कोयला मजदूर समान्यतः कोयला खनन क्षेत्र के आसपास के लोग होते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल होते हैं, जिनका परिवार कभी कोयला खनन परियोजना से विस्थापित हुआ होता है।

राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में साइकिल कोयला मजदूरों के काम करने का तरीका व कोयला ढोने के तरीके में भी थोड़ा अंतर है।

गिरिडीह, बोकारो, देवघर, गोड्डा में आपको साइकिलों पर कोयले के बड़े चट्टान ले जाते मजदूर दिखेंगे, जो बड़ी बोरियां में कोयले लेकर जाते हैं। गिरिडीह व देवघर में साइकिल कोयला मजदूरों की बाइक से मदद करने वाले बहुत सारे युवा हैं जो बाइक पर बैठे हुए साइकिल को धक्का देते हैं, जिससे मजदूर की ताकत कम लगती है। ऐसा करने वाले युवा दिन भर में 400-500 रुपये कमा लेते हैं, वे मजदूर की मांग व जरूरत के हिसाब से ही धक्के देते हैं।

साइकिल कोयला मजदूर गुलाम अली का कहना है कि घाटी क्षेत्र में साइकिल लेकर आगे बढने में काफी सावधानी की जरूरत होती है। सामान्यतः एक साइकिल कोयला मजदूर 30 से 40 किमी की दूरी तय करता है, हालांकि कई मजदूर इससे अधिक दूरी भी तय कर कोयला बेचने जाते हैं।

सामान्यतःएक साइकिल पर काम करने वाले दो लोग होते हैं। ये दो लोग दो भाई, पिता-पुत्र, कई बार पति-पत्नी या पैसे का भुगतान पाने वाला कोई अन्य सहयोगी भी हो सकता है। हजारीबाग जिले में छोटे टुकड़े वाली छोटी बोरियां व बड़े चट्टान भरे बोरे दोनों तरह से साइकिल पर कोयला लोड कर जाते हुए कोयला मजदूर दिखेंगे तो पाकुड़ में ट्राइ साइकिल पर कोयला लाद कर ले जाते लोग दिखेंगे। यही नहीं गोड्डा व पाकुड़ जिले में बाइक से भी कोयला बेचने का चलन हाल के सालों में शुरू हुआ है।

इनकी और भी कहानियां है, जो फिर कभी हम आपको बताएंगे।

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