लंबी प्रतीक्षा (184 दिन) के बाद कलकत्ता हाइकोर्ट में 10 अप्रैल 12025 को मनरेगा मामले पर सुनवाई हुई। पश्चिम बंगाल में मनरेगा मजूदरों के लिए फिर से काम शुरू करने, उन्हें बेरोजगारी भत्ता देने के मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ रहे श्रमिक संगठन पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि अदालत से 2.57 करोड़ श्रमिकों को कोई राहत नहीं मिली, सिर्फ निर्देश मिले हैं।
कोलकाता: पश्चिम बंग खेत मजूर समिति (पीबीकेएमएस) ने राज्य में बंद मनरेगा के काम को शुरू करने की मांग वाली याचिका पर कलकत्ता हाइकोर्ट की सुनवाई के बाद कोई ठोस आदेश नहीं दिए जाने को निराशानजनक बताया है। पश्चिम बंगाल खेत मजूर समिति ने अपने बयान में कहा है कि हमें सुनवाई की तारीख पाने के लिए छह महीने तक संघर्ष करना पड़ा और फिर अदालत के ऐसे आदेश से राज्य के 2.57 मनरेगा मजदूरों को संतोष करना पड़ा, जिसमें कोई राहत नहीं है। पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने राज्य में तुरंत मनरेगा को बहाल करने और लंबित बेरोजगारी भत्ते के भुगतान की अपनी मांग दोहराई है।
पीबीकेएमएस का कहना है कि केंद्र सरकार की पिछली अनियमितताओं की जांच वर्तमान और भविष्य के कार्य आवंटन के लिए आवश्यक धन आवंटन को रोकने का औचित्य नहीं हो सकता। यूनियन का तर्क है कि कथित पिछली खामियों के लिए ग्रामीण मजदूरों को दंडित करना अन्यायपूर्ण और अधिनियम के उद्देश्यों के विपरीत है।
हालांकि अदलात ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कुछ महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए। अदालत ने कहा है कि कोष के कथित दुरुपयोग की जांच की जा सकती है, लेकिन ऐसी जांच से योजना के क्रियान्वयन में अनिश्चितकाल तक बाधा नहीं आनी चाहिए।
कलकत्ता हाइकोर्ट ने मामले की सुनवाई के क्रम में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह रिपोर्ट प्रस्तुत करे, जिसमें यह बताया जाए कि पश्चिम बंगाल में उन चार जिलों (पूर्व वर्द्धमान, हुगली, मालदा और दार्जिलिंग को छोड़ कर जहां जांच चल रही है) सभी जिलों में मनरेगा को क्यों नहीं शुरू किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार पर्याप्त जांच एवं संतुलन सुनिश्चित करने के लिए उचित कार्यकारी निर्देश जारी कर सकती है।
पीबीकेएमएस ने अदालत में तर्क दिया कि चूंकि मनरेगा के तहत श्रमिकों को कोई रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, इसलिए श्रमिक कानूनी तौर पर पूरी अवधि के लिए बेरोजगारी भत्ता के हकदार हैं। समिति ने कहा है कि ऐसे भुगतान से इनकार करना अधिनियम के तहत श्रमिकों के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान अपने पिछले निर्देश की पुष्टि की जिसमें राज्य सरकार को यह बताने की जरूरत है कि पिछले दो सालों में काम उपलब्ध कराने में विफल रहने के बाद बेरोजगारी भत्ता देने का आदेश क्यों नहीं देना चाहिए।

कलकत्ता प्रेस क्लब में 11 अप्रैल 2025 को पत्रकारों को संबोधित करते पीबीकेएमएस के सदस्य।
पीबीकेएमएस ने दायर याचिका में 2.57 करोड़ मनरेगा मजदूरों को काम व मजदूरी से वंचित रखने का मुद्दा उठाते हुए काम को फिर से शुरू करने की मांग व बेरोजगारी भत्ता देने की मांग की है। पीबीकेएमएस की याचिका को एक अन्य मामले (WPA (P) 555 of 2023 से जोड़ दिया गया है जो धन के दुरुपयोग से संबंधित है। अदालत ने बार-बार भ्रष्टाचार और धन के दुरुपयोग की रिपोर्टों पर अपना ध्यान केंद्रित करने और इस धन की वसूली के उपायों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने का विकल्प चुना है कि जाँच और संतुलन बनाए रखा जाए। पीबीकेएमएस के अनुसार, 10 अप्रैल 2025 का आदेश एक बार इन चिंताओं की पुष्टि करता है।
पीबीकेएमएस का तर्क है कि धन की वसूली और भ्रष्टाचार पर रोक अपने आप में महत्वपूर्ण लक्ष्य है। केंद्र सरकार ने चार जिलों में दुरुपयोग की गई राशि 537.05 लाख रुपये बताई थी। इसमें से 239.62 लाख रुपये या लगभग 50 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा पहले ही वसूल की जा चुकी है। हालांकि, इस तरह की गड़बड़ी को लेकर केंद्र सरकार ने तीन साल के लिए फंड फ्रीज कर दिया है और राज्य के नरेगा मजदूरों को 22,500 करोड़ रुपये से वंचित कर दिया है। पश्चिम बंगाल को हर साल लगभग 7500 करोड़ रुपये मनरेगा मद का आवंटन मिलता था।
पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने दोहराया है कि मनरेगा के निलंबन और बेरोजगारी भत्ता देने से इनकार करने से पश्चिम बंगाल में ग्रामीण मजदूरों पर भारी संकट आया है। संकटग्रस्त पलायन कई गुना बढ़ गया है। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 15 मई 2025 तय की है।
पीबीकेएमएस ने चिंता जतायी है कि अगला महीना राज्य में कृषि खासकर जब यह कृषि कार्य के लिए अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण या खाली महीना है तो केरल और तमिलनाडु जैसे दूरदराज के राज्यों में पलायन के लिए अधिक श्रमिकों के अपने घरों को छोड़ने की खबरें आएंगी। ऐसी स्थिति में मजदूरी की बेईमानी, श्रमिकों के साथ दुर्घटनाएं और प्रवासी श्रमिकों की मौत की खबरें आएंगी। पीबीकेएमएस ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की हे कि वे मनरेगा के तहत काम फिर से शुरू करने के लिए बिना देरी किए कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि सभी वास्तविक श्रमिकों को उनके उचित बेरोजगारी भत्ते मिले।