वनीकरण भारत में कर सकता है गरीबी मिटाने में मदद, 18 देशों में हुए इस अध्ययन पर गौर कीजिए

ज़रा कल्पना कीजिए, महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त गाँव में एक युवा माँ बंजर ज़मीन पर मेहनत कर रही है, लेकिन अपने बच्चों का पेट भरने में असमर्थ है। अब उसी महिला को हरे-भरे पेड़ों की छांव में काम करते हुए देखिए, जहां वो लकड़ी, फल या बांस इकट्ठा कर रही है—ऐसे उत्पाद जो उसे आय, स्थिरता और उम्मीद दे रहे हैं। यह कोई सपना नहीं है। यह अफ्रीका में देखी गई एक सच्चाई से प्रेरित एक संभावना है।

हाल ही में Nature’s Communications Earth & Environment में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि अफ्रीका के 18 देशों में वनीकरण और जंगलों के पुनरुत्थान ने लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। भारत, जहां ग्रामीण गरीबी और जलवायु परिवर्तन के खतरे दोनों मौजूद हैं, इस दृष्टिकोण को अपनाकर कई समस्याओं का समाधान कर सकता है।

वनीकरण: एक नई उम्मीद


अफ्रीका में, इस अध्ययन में पाया गया कि जिन इलाकों में पेड़ों के बगीचे लगाए गए, वहां लोगों की संपत्ति, आवास और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं में सुधार हुआ। जैसे कि कोट द’आईवोर (Côte d’Ivoire) में, जहां वनीकरण ने गरीबी के सूचकांक में 30% तक कमी की।

भारत में भी इसी तरह की कहानी रचने की पूरी संभावना है। ज़रा सोचिए, बुंदेलखंड की बंजर ज़मीन पर सागौन, यूकेलिप्टस और फलदार पेड़ों के बगीचे खड़े हों, जो किसानों को रोज़गार और आय का साधन दें। इन बगीचों को कृषि-वानिकी (agroforestry) प्रणाली के साथ जोड़ा जा सकता है, जहां किसान फसल के साथ-साथ पेड़ भी उगाएं, जिससे खाद्य सुरक्षा भी बनी रहे और आय के साधन भी बढ़ें।

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हरित कवच

भारत दुनिया के सबसे बड़े जलवायु संकटों का सामना कर रहा है। लू, अनियमित बारिश और चक्रवात हर साल करोड़ों लोगों को प्रभावित करते हैं। ऐसे में पेड़ों का वनीकरण दोहरा लाभ देता है: यह न सिर्फ कार्बन को सोखकर जलवायु परिवर्तन को कम करता है, बल्कि जलवायु-लचीले परिदृश्य भी बनाता है।

उदाहरण के लिए, बांस के बगीचे प्रति हेक्टेयर 400 टन तक कार्बन सोख सकते हैं और साथ ही निर्माण और हस्तशिल्प के लिए कच्चा माल प्रदान करते हैं। वहीं, तटीय इलाकों में लगाए गए मैंग्रोव पेड़ चक्रवातों से सुरक्षा देने के साथ-साथ जैव विविधता को भी बढ़ावा देते हैं। पेड़ों का यह हरित कवच भारत को जलवायु आपदाओं से लड़ने में मदद कर सकता है।

गिरिडीह के असगन्दो मनरेगा पार्क का एक दृश्य। फोटो: राहुल सिंह/क्लाइमेट ईस्ट

सभी की भागीदारी ज़रूरी


इस दृष्टि को साकार करने में कुछ चुनौतियां भी हैं। मसलन, एक ही प्रकार के पेड़ (monoculture) लगाने से जैव विविधता को नुकसान हो सकता है, और गलत तरीके से किए गए प्रोजेक्ट स्थानीय समुदायों को विस्थापित कर सकते हैं। लेकिन भारत के पास इन समस्याओं का हल है।

हम मिश्रित प्रजातियों के बगीचों और अनुपजाऊ या बंजर ज़मीन को वनीकरण के लिए प्राथमिकता देकर इन चिंताओं को दूर कर सकते हैं। भारत के पास CAMPA और ग्रीन इंडिया मिशन जैसे कार्यक्रम हैं, जो वनीकरण के विस्तार के लिए नीति और धन प्रदान करते हैं। स्थानीय समुदायों को इन योजनाओं में शामिल कर, हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि वनीकरण का लाभ सब तक पहुंचे।

उम्मीद के पेड़, खुशहाली के जंगल


अब वक्त आ गया है कि हम इस अवसर को पहचानें। पेड़ों के बगीचे केवल लकड़ी का स्रोत नहीं हैं—ये गरिमा, सुरक्षा और लचीलेपन के प्रतीक हैं। ये भारत के ग्रामीण गरीबों को गरीबी के चक्र से बाहर निकालने का मौका देते हैं, जबकि वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से हुए घावों को भी भरते हैं।

जब हम एक पेड़ लगाते हैं, तो हम सिर्फ अपने लिए छांव नहीं बनाते—हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक विरासत तैयार करते हैं। सवाल यह है कि क्या हम इस चुनौती को स्वीकार करेंगे और भारत की बंजर ज़मीन को जीवन और अवसर से भर देंगे?
पेड़ों के बीज तैयार हैं, अब हमें उन्हें पोषण देना है।

(आलेख स्रोत: क्लाइमेट कहानी।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *