झारखंड के एक गांव की सोलर चैंपियन लड़कियों की कहानी

झारखंड के कोयला संपन्न बोकारो जिले के एक गांव की लड़कियां सफल सौर ऊर्जा दक्ष बन रही हैं और लोगों को सौर ऊर्जा अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इतना ही नहीं वे सौर ऊर्जा उपकरणों को बेचकर कमाई भी करती हैं।

राहुल सिंह

बोकारो: झारखंड के कोयला संपन्न बोकारो और रामगढ़ जिले की सीमा के करीब स्थित एक गांव के बच्चे जलवायु चुनौतियों के मद्देनजर न सिर्फ सौर ऊर्जा के उपयोग को बढावा देने के सपने देख रहे हैं, बल्कि उसे सच में बदलने में भी जुटे हैं। रांची-बोकारो मुख्य मार्ग पर स्थित दांतु गांव के प्लस टू विद्यालय में कई बच्चे सौर ऊर्जा संचालित व सामान्य इलेक्ट्रिक उपकरणों को बनाने व उसकी मरम्मत करने में कुशल हैं। यह गांव बोकारो जिले के कसमार ब्लॉक में पड़ता है।

इस साल अप्रैल की एक गर्म दोपहर कुछ घंटों के लिए अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क की एक रिन्यूएबल एनर्जी वर्कशॉप टीम के रूप में हम उनके स्कूल में थे। इस दौरान स्कूल की छात्रा रही अपर्णा कुुमारी और स्कूल की मौजूदा छात्रा सोनाली कुमारी, मोजसरीन साजमिन, शोभा और सुमित्रा सौर ऊर्जा के किसी एक्सपर्ट की तरह हमसे बातें कर रही थीं। इनकी ग्रुप लीडर अपर्णा ने बड़ी स्पष्टता से कहा – “मैं सौर ऊर्जा के क्षेत्र मेें ही भविष्य में अपना कैरियर बनाना चाहती हूं”।

अपर्णा ने दांतु गांव से 12वीं तक की पढाई पूरी की है। अपर्णा ने बताया, “2021 में हमने ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश पाया तो हमें वोकेशनल कोर्स चुनना था और हमने सोलर इंस्टॉलेशन और टेक्नीशियन की पढाई को चुना”। और, यहीं से धीरे-धीरे अपर्णा का झुकाव सौर ऊर्जा क्षेत्र की ओर बढता गया और आज वे इस बात को लेकर बहुुुत स्पष्ट हैं कि वे इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाएंगी।

दांतु प्लस टू स्कूल एक सुव्यवस्थित स्कूल है और इस आम धारणा को तोड़ता है कि सरकारी स्कूलों की व्यवस्था अच्छी नहीं होती है। Photo – Rahul Singh.

स्कूल के शिक्षक अनिमेष चंद्रा ने अपर्णा व अन्य छात्र-छात्राओं को सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रशिक्षित करने में अहम भूमिका निभाई। वे कहते हैं कि उनका प्रयास है कि बच्चे इस वैकल्पिक ऊर्जा के बारे में जानें जो पर्यावरण चुनौतियों के मद्देनजर मौजूदा वक्त की जरूरत है।

दांतु अपर्णा का नानी घर हैं, जहां वह डेढ़ साल की उम्र से ही रह रही हैं। उनका अपना गांव बोकारो जिले के ही चास प्रखंड में है। किसान पिता की बेटी अपर्णा इन दिनों गवर्नमेंट विमेंस पॉलिटेक्निक, बोकारो से इलेक्ट्रिकल में डिप्लोमा कर रही हैं। उन्होंने दांतु के मध्य विद्यालय से आरंभिक पढाई करने के बाद प्लस टू स्कूल दांतु से नौवीं से 12वीं तक की पढाई की है।

दांतु में नास्ते की एक दुकान पर सोलर लाइट की उपयोगिता का दृश्य। स्कूल के बच्चों ने गांव में लगने वाले बुधवार के हाट में भी दुकानदारों को सोलर लाइट अपनाने के लिए प्रेरित किया। Photo Source – Aparna Kumari.


इस स्कूल के वोकेशनल कोर्स के शिक्षक अनिमेष चंद्रा बताते हैं कि उनके स्कूल ज्वाइन करने के बाद अपर्णा कुमारी व ऊषा कुमारी पहले बैच की छात्रा थीं, जिनकी गहरी रुचि इलेक्टिकल व सोलर सेक्टर में दिखी और ये अच्छा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सोलर एनर्जी की तरफ जिस तरह कंपनियों का रुख बढा है, उससे इनके लिए भविष्य में नौकरी की संभावना मजबूत है और सोलर सेक्टर में काम करने वाली कोई भी कंपनी इनका चयन कर सकती है। अपर्णा कहती हैं कि जलवायु परिवर्तन और धरती के बढते तापमान के मद्देनजर सौर ऊर्जा को अपनाना जरूरी है। अपर्णा ने विद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद धनबाद के मैथन स्थित टाटा पॉवर स्कील एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट से दो सप्ताह का एडवांस प्रशिक्षण प्राप्त किया। वे जूनियर बच्चों को प्रशिक्षण में मदद करती हैं और चाहती हैं कि उपलब्धियों व काम का श्रेय पूरी टीम को मिला। वे टीम वर्क में विश्वास रखती हैं।

32 वर्षीय शिक्षक अनिमेष ने खुद भी पंजाब विश्ववि़द्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटैक किया है और उसके बाद शिक्षण को अपना पेशा चुना है। उनका उद्देश्य बच्चों को इस क्षेत्र में कुशल बनाना है।

स्कूल के वोकेशनल शिक्षक अनिमेष चंद्रा, जिन्होंने खुद इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटैक की पढाई की है। बच्चों का सौर ऊर्जा की तरफ रूझान बढाने में अनिमेष का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। Photo – Rahul Singh.

स्कूल में वोकेशनल कोर्स में 80 प्रतिशत लड़कियां

अनिमेष चंद्रा कहते हैं, “हमारे दांतु प्लस टू विद्यालय में वोकेशनल कोर्स में 80 प्रतिशत लड़कियां ही हैं”। इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं कि यह पाठ्यक्रम 11वीं से शुरू होता है और यहां पढने वाले लड़के 10वीं पास करने के बाद आइटीआइ की ट्रेनिंग के लिए दूसरी जगह नामांकन ले लेते हैं, इसलिए लड़कियों का अनुपात अधिक रहता है। उन्होंने 2021 से अबतक करीब 35 बच्चों ने को इलेक्ट्रिकल व सोलर एनर्जी का प्रशिक्षण दिया है, जिसमें करीब 30 लड़कियां हैं। साल दर साल बच्चों का रूझान भी इस ओर बढा है, पहले साल जहां आठ बच्चे थे, वहीं वर्तमान में 18 बच्चे इस कोर्स के तहत प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

सौर उपकरणों की मरम्मत करती छात्राएं। Photo Source – Aparna Kumari.

बच्चों व स्कूल के खाते में हैं कई उपलब्धियां


इस स्कूल के बच्चों के वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के प्रति झुकाव व विद्यालय के सफल वोकेशनल कोर्स मॉडल की वजह से इन्हें कई सम्मान मिले हैं। वर्ष 2024 में 15 मई से 21 मई तक नई दिल्ली के द्वारिका में आयोजित इंडिया स्कील कंपटीशिन में यहां के बच्चों ने पूरे झारखंड का प्रतिनिधित्व किया। इन्हें झारखंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से इनके काम के लिए 50 हजार का अनुदान भी मिला है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र के प्रकाशन यूएन वूमेन में इनके काम को फीचर किया गया।

गांव की महिलाओं को भी दिया जाता है प्रशिक्षण

दांतु पंचायत में करीब 100 एसएचजी हैं, जिनमें 90 सक्रिय हैं। यह कोशिश की जा रही है कि इन स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी सोलर ऊर्जा से जुड़े प्रशिक्षण से जोड़ा जाए। अनिमेष चद्रा के मुताबिक, ऐसी एसएचजी से जुड़ी दांतु गांव की करीब 10 महिलाएं भी इलेक्ट्रिकल व सोलर सिस्टम का प्रशिक्षण ले रही हैं। शांति देवी, प्रमिला देवी, सुनीता देवी ऐसी महिलाएं हैं जो ऐसे प्रशिक्षण में गहराई से रुचि ले रही हैं।

गांव के बाजार का किया विद्युतीकरण

दांतु प्लस टू स्कूल के बच्चों ने अपने स्कूल के पास लगने वाले बुधवार के हाट के दुकानदारों को सोलर लाइट अपनाने के लिए प्रेरित किया। बच्चे खुद से निर्मित सोलर व इलेक्ट्रिक उपकरण लेकर उनके पास जाते थे और उन्हें इसका महत्व समझाते और अपनाने का आग्रह करते। धीरे-धीरे जो दुकानदार अंधेरा होने के बाद केरोसिन की डिबरी जलाते थे, उन्होंने सोलर लाइट व एलइडी लाइट को अपना लिया।

दांतु पंचायत के मुखिया चंद्रशेखर नायक कहते हैं, “बच्चे खुद ही यह सब कर रहे हैं और इसे देख हमें खुशी होती है, हम चाहते हैं कि झारखंड सरकार की सौर ऊर्जा एजेंसी ज्रेडा से भी इन बच्चों को सहयोग व प्रोत्साहन मिले”।

अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अपने स्कूल में बात करते बच्चे। Photo – Rahul Singh.

नौ बच्चों का समूह, एक सफल सोलर कारोबारी


इस विद्यालय के नौ बच्चों का एक समूह है जो एक सफल सोलर व इलेक्ट्रिक कारोबारी की तरह काम करता है। इसमें अपर्णा कुमारी, उषा कुमारी, प्रीति कुमारी, पूजा कुमारी, रानी कुमारी, दीपिका कुमारी, सोनाली कुमारी, मोजसरीन साजमिन और रतन कुमार शामिल हैं। नाम से ही स्पष्ट है कि इन नौ बच्चों में आठ लड़कियां हैं। इनके द्वारा निर्मित या मरम्मत किए हुए सोलर व इलेक्ट्रिक उपकरण बाजार में बिकते हैं, जिससे इन्हें कमाई भी होती है। अनिमेष चंद्रा कहते हैं कि इन्होंने वर्ष 2007 से करीब सात लाख का एलइडी बल्ब बेचा जिसमें ढाई लाख का मुनाफा हुआ और इसके लिए ही इन्हें झारखंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से 50 हजार रुपये का अनुदान मिला था। ये बच्चे सात, नौ, 10, 12 व 20 वॉट का बल्ब, 20 वाट का ट्यूबलाइट और 50-100-200 वाट का फ्लड लाइट इंस्टॉल करने में सक्षम हैं।

इनकी टीम की सोनाली कुमारी झारखंड बोर्ड में 96 प्रतिशत अंक के साथ बोकारो जिले के थर्ड टॉपर भी बनीं।

अपर्णा कुमारी इजेएन के वर्कशॉप में शामिल पत्रकारों से बात करते हुए। Photo – Rahul Singh.


ये बच्चे ऊँची उड़ान के लिए तैयार हैं। अपर्णा कुमारी का चयन नेशनल यूथ फॉर क्लाइमेट चैंपियन के लिए हुआ है। नेशनल यूथ फॉर क्लाइमेट चौंपियन एक ऐसी पहल है जिसके माध्यम से युवाओं को जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में शामिल करने के लिए सशक्त बनाया जाता है। यह पहल युवाओं को जलवायु कार्रवाई में लीडर बनने के लिए आवश्यक कौशल, ज्ञान और अवसर प्रदान करती है। अपर्णा इस कार्यक्रम के तहत इसी महीने 24 जुलाई से 28 जुलाई तक देहरादून में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होंगी। वे अब ऊँची उड़ान के लिए तैयार हैं और अपर्णा दीदी के जूनियर भी इसकी कवायद में लगे हैं।

यह स्टोरी अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के रांची में आयोजित रिन्यूएबल एनर्जी वर्कशॉप के फील्ड विजिट के आधार पर लिखी गई है। इस वर्कशॉप में राहुल सिंह क्लाइमेट ईस्ट के पत्रकार के तौर पर शाामिल हुए थे।

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