प्रकृति पर्व है सोहराय, पशुओं के प्रति सम्मान व कृषि से जुड़ा है इसका नाता

बोध बोदरा


सोहराय पर्व भारतीय राज्यांे झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार का फसल उत्सव पर्व है। इसे पशु उत्सव भी कहा जाता है। यह फसल कटाई के बाद मनाया जाता है और दिवाली त्योहार के दौरान की गोवर्धन पूजा के साथ मेल खाता है। संताल परगना में यह जनवरी माह में मनाया जाता है। यह पर्व संताल, भूमिज, सदान, उरांव, हो, मुंडा सहित अन्य जनजातियों द्वारा मनाया जाता है। सोहराय पर्व संताल जनजातियों का सबसे बड़ा त्योहार है.- हाथी लेकन पर्व यानी हाथी जैसा बड़ा। मूल रूप से यह पर्व पांच दिन तक मनाया जाता है।

पांच दिनों के इस उत्सव का विवरण इस प्रकार है –


पहला दिन – गोड टांडी में जाहेर एरा का आह्वान किया जाता है तथा रात में प्रत्येक गृहस्थ परिवार के युवक-युवती गो पूजन करते हैं।

दूसरा दिन – गोहाल पूजा की जाती है तथा गौशाला को अल्पना द्वारा सजाकर गाय को नहलाकर उसके शरीर को रंगा जाता है। गाय, बैल, भैंस के सींग पर तेल व सिंदूर लगाकर उसके गले में फूलों की माला पहनायी जाती है।

आदिवासी युवतियां पूजन स्थल पर माथा टेकते हुए।

तीसरा दिन – पशुओं को धान की बाली एवं मालाओं से सजाकर खूंटा जाता है।

चौथा दिन – युवक-युवतियां गाँव से घर-घर जाकर चावल, दाल, नमक व मसाला आदि मांगकर जमा करते हैं।

पांचवाँ दिन – गाँव से एकत्रित चावल, दाल आदि से खिचड़ी बनायी जाती है, जिसे गांव के लोग मिलकर साथ में खाते हैं। सोहराय पर्व अक्टूबर-नवंबर या जनवरी के महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार वर्ष की मुख्य फसल धान के कटने के बाद मनाया जाता है।

आश्रम में आदिवासी बच्चे पूजन स्थल पर प्रणाम या जोहार की मुद्रा में।

मवेशियों के सम्मान में मनाए जाने वाले इस पर्व की कुछ खास बातें इस प्रकार हैं –

सोहराय पर्व को बंधना पर्व भी कहा जाता है।


सोहराय पर्व प्रकृति पर्व भी है।


सोहराय पर्व को मनाने का मकसद, गाय और बैलों को खुश करना और उनकी मेहनत का सम्मान करना होता है। सोहराय पर्व के दौरान, घरों की सफ़ाई की जाती है और उन्हें सोहराई भित्ति चित्रों से सजाया जाता है।


सोहराय पर्व के दौरान, मवेशियों को नहलाकर पूजा की जाती है। सोहराय पर्व के दौरान कांचे दीये में चावल को कूटकर चुन्नी बनाई जाती है। सोहराय पर्व के दौरान घर के दरवाज़े पर दीपक जलाया जाता है। सोहराय पर्व के दौरान मांदर की थाप से वातावरण गूंजता रहता है।


सोहराय पर्व के दौरान, भाई अपनी बहन को निमंत्रण देता है और बहन घर आकर सोहराय पर्व मानाती है।

संताल परगना में सोहराय पर्व जनवरी में मनाया जाता है, क्योंकि इसके पीछे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ संघर्ष की कहानी है। 30 जून, 1855 को सिदो-कान्हू के नेतृत्व में संताल हूल विद्रोह हुआ था. इस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने धारा 144 लागू किया था और मार्शल लॉ लगाया था. यह मार्शल लॉ जनवरी 1856 में हटाया गया था। इसके बाद लोगों ने सोहराय मनाया था। सोहराय के गीतों में भी अंग्रेज़ों से आज़ादी का ज़िक्र है।

भारत सेवाश्रम संघ के सचिव स्वामी नित्यव्रतानंद सोहराय उत्सव में संबोधित करते हुए।

यह पर्व भारत सेवाश्रम संघ, पाथरा, प्रखंड रानीश्वर, जिला दुमका में भी विगत 2003 से मनाया जाता है। शुरुआत में कम ही लोग इस उत्सव में जुटते थे। वर्तमान में बहुत सारे अगल-बगल के गाँव के लोग इस आयोजन में सम्मिलित होते हैं। भारत सेवाश्रम संघ में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ उनकी भाषा, संस्कृति, विरासत संरक्षण आदि की जानकारी प्रदान की जाती है, ताकि ज़ब बच्चे विद्यालय से घर वापस जायेंगे तब तक अपनी संस्कृति से परिचित हो चुके होंगे। ऐसे में उन्हें सामंजस्य स्थापित करने में कोई कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। आश्रम प्रबंधन हमेशा ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते रहता है। यहां समाज की भावी पीढ़ियों को सुशिक्षित कर समाज गढ़ने का कार्य किया जा रहा है।

(लेखक भारत सेवाश्रम संघ, पाथरा, प्रखंड रानीश्वर, जिला दुमका में शिक्षक हैं।)

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