पश्चिम बंग मत्स्यजीवी यूनियन की वार्षिक सभा में मछुआरा समुदाय के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा, मत्स्यजीवी समुदायों के बढते पलायन पर वक्ताओं ने जतायी चिंता
बक्खाली (दक्षिण 24 परगना) : पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले के बक्खाली में पश्चिम बंगाल मत्स्यजीवी यूनियन की वार्षिक सभा का 18 मार्च 2025 को आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्र में मछुआरों, नदियों व जलस्रोतों की समस्याओं को प्रस्तुत किया और मछुआरों के अधिकारों की रक्षा की मांग उठायी।
पश्चिम बंगाल मत्स्यजीवी यूनियन की वार्षिक सभा को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियन को-आर्डिनेशन सेंटर के राष्ट्रीय महासचिव एसपी तिवारी ने कहा कि पानी के बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है और वैज्ञानिक विधि से संसाधनों का उपयोग करने से प्रकृति, परिवेश और पेशा बचा रहेगा। उन्होंने कहा कि हमारे देश में करीब चार करोड़ मत्स्यजीवी हैं, जिनमें अंतरदेशीय मछुआरे और समुद्री मछुआरे दोनों शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हमने केंद्र सरकार से नेशनल वेलफेयर बोर्ड ऑफ फिशरमैन गठित करने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि नदियों को हमारी आजीविका व संस्कृति के लिए बचाना जरूरी है और यह हम सबकी जिम्मेवारी है। उन्होंने कहा कि भारत के आठ राज्यों में साढे सात हजार किमी से अधिक लंबी समुद्री पट्टी है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में नदी व इस पेशे से जुड़ी समस्याएं और चुनौतियां अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि टीयूसीसी की मत्स्यजीवियों के संघर्ष में अग्रणी भूमिका होगी। उन्होंने संगठन को शक्तिशाली बनाने की अपील करते हुए कहा कि जब संगठन मजबूत व सशक्त होगा तो मत्स्यजीवी समुदाय का शोषण रुक जाएगा।

महासभा में मुर्शिदाबाद से आए हुए प्रतिनिधि बिधान कुमार दास ने अपने क्षेत्र के मत्स्यजीवी समुदाय की परेशानियों को रखते हुए कहा कि परंरागत पेशा से लोगों के दूर जाने से पलायन बहुत होता है। उन्होंने कहा कि स्थिति ऐसी हो रही है कि मछुआरा का बेटा मछली नहीं पकड़ता और किसान का बेटा खेती नहीं करता।
पाथेर प्रतिमा से आए प्रतिनिधि सोम शुभ्र साहू ने नदियों के बढते प्रदूषण के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि नदी में प्रदूषण बढने से मछलियों को बच्चे कम हो जाते हैं और आने वाले दिनों में कुछ प्रजातियों को लुप्त हो जाने का खतरा है। उन्होंने कहा कि परंपरागत रोजगार खत्म होने से लोग दूसरे राज्यों में कमाने चले जाते हैं।

सागर द्वीप से आयी मानसी बेरा ने अपने संबोधन में मछुआरा महिलाओं की समस्याओं को रखा। उन्होंने सूखी मछली के कारोबार में रोजगार पाने वाली महिलाओं को कम मजदूरी मिलने और उनके लिए कामकाजी जगह पर जरूरी सुविधाएं नहीं होने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं को 170 से 200 रुपये अधिक से अधिक मजदूरी दिन भर के काम की मिलती है। महासभा को पार्वती जना, दिपाली मैती, सुषमा आदि ने संबोधित किया।

वार्षिक महासभा में शामिल प्रमुख वक्ता।
महासभा को पत्रकार राहुल सिंह ने संबोधित करते हुए मत्स्यजीवी समुदाय की जलस्रोतों एवं पर्यावरण की रक्षा में भूमिका व योगदान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि परंपरागत मत्स्यजीवी समुदाय के पास मौलिक ज्ञान होता है, जिनके अनुभवों ने न सिर्फ हम जैसे पत्रकार बल्कि रिसर्चर और वैज्ञानिक भी सीखेते हैं और पत्रकार अपनी खबरों में और रिसर्चर व वैज्ञानिक अपने पेपर में उसकी व्याख्या अपने तरीके से करते हैं। उन्होंने कहा कि पानी व जल स्रोत एक सामुदायिक संपदा है और सामुदायिक संपदा की रक्षा उस पर आजीविका के लिए आश्रित समुदाय के हितों की रक्षा की शर्त पर ही हो सकती है।
कार्यक्रम का संचालन पश्चिम बंग मत्स्यजीवी यूनियन के महासचिव अंबिया हुसैन ने किया। उन्होंने विभिन्न जिलों के प्रतिवेदन को महासभा के सामने प्रस्तुत किया और आगामी कार्यक्रमों पर चर्चा की।

वार्षिक महासभा में पश्चिम बंग मत्स्यजीवी यूनियन के महासचिव अंबिया हुसैन व अन्य।
महासभा में पेश किए गए वार्षिक प्रतिवेदन के जरिए महासचिव अंबिया हुसैन ने बताया कि मुर्शिदाबाद में भंडादह बिल में पद्मा का पानी रोके जाने की वजह से मछुआरों को पलायन करना पड़ा है। कूचबिहार व दक्षिण दिनाजपुर में वेटलैंड मछली पालकों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता और भ्रष्टाचार की वजह से उनके बीच बांटे जाने वाले उपकरण व सामान कहीं और चले जाते हैं। दक्षिण चौबीस परगना जिले में विद्याधर नदी का पानी प्रदूषित होने से मछुआरों की परेशानी बढी है। भेनामी कल्चर या कृत्रिम आकृति में मछली पालन की वजह से खेतों व प्राकृतिक जलस्रोतों का प्रदूषण बढ रहा है, क्योंकि उनमेें प्रयोग किए जाने वाले जहरीले रासायन वाले जल को खेत व नदी में बहा दिया जाता है। इससे उन खेतों में धान की फसल व नदी में मछलियां नहीं होती हैं।

महासभा में सुंदरवन क्षेत्र में मत्स्यजीवी आंदोलन के प्रमुख नेता तेजेंद्र लाल दास को पश्चिम बंगाल मत्स्यजीवी यूनियन का अध्यक्ष चुना गया।