शिकार की जाने वाली 34 प्रजातियों की जनसंख्या घटते क्रम में, 25 वन्यजीव भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के शिड्यूल – 1 में हैं।
क्लाइमेट ईस्ट डेस्क
पश्चिम बंगाल के दो जिलों झारग्राम और पश्चिमी मेदिनीपुर में वन्य जीवों को लेकर किये गए एक अध्ययन में वन्य जीवों के शिकार में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं जो वन्य जीव संरक्षण के लिए नए उपाय की जरूरत की ओर भी इशारा करते हैं। यह अध्ययन अनुष्ठानिक व सांस्कृति आयोजनों के दौरान किए जाने वाले शिकार के विभिन्न पक्षों का खुलासा करता है।
झारग्राम और पश्चिमी मेदिनीपुर जिले में 129 लोगों के बीच किये गये सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्ष्ण में किये जाने वाले शिकार के चरित्र, प्रभावित प्रजातियों और इस प्रकार की अवैध शिकार गतिविधि में शामिल समुदायों को प्रेरित करने वाले कारकों को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया गया। यह अध्ययन वर्ल्ड एनिमल प्रोटेक्शन के वाइल्डलाइन रिसर्च हेड नील डिक्रूज व अन्य के द्वारा किया गया है और इसके लिए अगस्त-सितंबर 2022 में सर्वे किया गया था।
सर्वेक्षण में यह पूछा गया कि वन्य पशुओं में सबसे अधिक वांछनीय कौन है, कौन सर्वाधिक लाभदायक हैं, शिकार किए गए जानवरों में प्राप्त किन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है और कौन से पशु की दुर्लभता में सबसे अधिक वृद्धि हुई है।
इस अध्ययन में पाया गया कि विभिन्न वन्यजीवों की अंधाधुंध व लक्ष्य कर हत्या की जाती है, जिनमें कम से कम 93 अनुमानित प्रजातियां शामिल हैं। इनमें से सात प्रजातियों को आइयूसीएन रेड लिस्ट में रखा गया है। यानी ये संकट प्रवण, संकटग्रस्त या अत्यधिक संकटग्रस्त श्रेणी में हैं। इनमें 34 प्रजातियों की जनसंख्या घटती हुई श्रेणी में रखी गई है। इनमें 25 प्रजातियां भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के शिड्यूल – 1 श्रेणी में आती हैं।
सर्वेक्षण में इन वन्यजीवों के शिकार की वजह सर्वाधिक बार मान्यता आधारित उपयोग, पारंपरिक चिकित्सा और सजावटी उपयोग के अलावा वन्य जीव का मांस व भोजन सबसे अधिक बार बताया जाने वाला व्यक्तिगत उपयोग कारक था। वन्य जीवों के एक तिहाई शिकारियों ने वन्यजीवों के व्यावसायिक बिक्री में शामिल होने की भी बात कही। अधिकतर शिकारियों ने अनुष्ठानिक शिकार में भाग लेने के लिए व निजी आनंद को शिकार की मुख्य वजह बताया।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश शिकारियों ने अनुष्ठानिक शिकार में व्यापक भागीदारी के बाजवूद कहा कि वे कानूनी तौर पर उनके गैर उपभोग विकल्पों में शामिल होना चाहेंगे, यदि उन्हें यह उपलब्ध कराया जाए। अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि प्रभावी कानूनी प्रवर्तन, व्यवहार्य गैर उपभोग विकल्पों की पहचान करने और संबंधित मानव व्यवहार परिवर्तन पहलों के जरिये वन्य जीवों व और मानव दोनों के लिए साकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
अध्ययन में उत्तरधाताओं को 52 वन्य जीवों के नाम दिये गए जिनमें दस सबसे वांछनीय वन्यजीवों के विशिष्ट आयोजनों व अनुष्ठान के दौरान शिकार या उनके शरीर के अंगों की सूची बनाने के लिए कहा गया तो कुल 99 उत्तरदाताओं ने दो से 15 प्रजातियों को सूचीबद्ध किया, जिसमें पक्षी के लिए सबसे अधिक 35, उसके बाद स्तनधारी 11, सरीसृप 5 और कीड़े या चीटियों एक नाम सामने आए। इस सर्वे में जिन वन्य जीवों का सर्वाधिक बार उल्लेख मिला, उनमें जंगली सूअर, खरगोेश, सेंट्रोपस साइनेंसिस, बटेर, कॉलर वाला कबूतर, पीले पैर वाला हरा कबूतर, जंगली बिल्ली और बंगाल मॉनिटर शामिल हैं।
हाल के सालों में पश्चिम बंगाल में वन्य जीवों के शिकार के पर्याप्त मीडिया कवरेज के बावजूद तुलनात्मक रूप से बहुत कम आकादमिक शोध हुए हैं। इस शोध के जरिये पश्चिम बंगाल में अनुष्ठानिक शिकार के कारकों व संभावित प्रभावों की गहरी समझ विकसित करने की कोशिश ाकी गई है। इस अध्ययन के लिए दोनों जिलों झारग्राम और पश्चिमी मेदिनीपुर में एक सामाजिक-आर्थिक अध्ययन किया गया ताकि शोधकर्ताओं के उद्देश्य को एक साक्ष्य प्रदान किया जाए ताकि स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेपों को डिजाइन किया जा सके और समुदाय को अवैध शिकार की गतिविधियों से दूर करने के लिए टिकाऊ विकल्पों की ओर ले जाने में मदद मिल सके। इससे संबंधित प्रजातियों के कल्याण और संरक्षण की स्थिति पर नकारात्मक प्रभावों का जोखिम भी कम होगा।
(तसवीरें इस विषय पर की गई स्टडी के पेपर से साभार ली गई हैं।)