जलवायु परिवर्तन की चाल से झुलस रहा है भारत
उत्तर भारत, मध्य भारत और पूर्वी भारत इन दिनों भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पारा 44 डिग्री सेल्सियस के पार जा चुका है और भारत मौसम विभाग (IMD) ने लगातार पांच दिनों तक रेड अलर्ट जारी किया है। मौसम की ये मार सिर्फ तापमान की नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के गहराते प्रभावों की कहानी भी कहती है।
पहले बारिश, अब तपिश – बदलता मौसम पैटर्न
इस सीज़न में पहले बारिश और बादलों की वजह से तापमान सामान्य से कम बना रहा। दिल्ली में तो इस साल मई में रिकॉर्ड 186.4 मिमी बारिश हुई। लेकिन जून के पहले हफ्ते से हालात अचानक बदल गए। पश्चिमी विक्षोभ की कमी और थार रेगिस्तान से उठती सूखी गर्म हवाएं अब पूरे उत्तर भारत को तपाने लगी हैं।

जलवायु परिवर्तन से बदले मौसमी सिस्टम
जलवायु विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल की भीषण गर्मी सिर्फ मौसमी उतार-चढ़ाव नहीं है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम प्रणाली में हुए बदलाव का नतीजा है। स्काइमेट वेदर के महेश पलावत कहते हैं, “इस बार मॉनसून की चाल थमी हुई है और शुष्क उत्तर-पश्चिमी हवाएं लगातार चल रही हैं। इससे न सिर्फ तापमान बढ़ा है बल्कि आर्द्रता (humidity) भी बहुत ज्यादा हो गई है।”
डॉ. के.जे. रमेश, पूर्व महानिदेशक, IMD बताते हैं, “ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हवा में नमी पकड़ने की क्षमता हर 1°C तापमान वृद्धि पर 7% बढ़ जाती है। यही कारण है कि अब सूखे इलाकों में भी उमस बढ़ रही है और गर्मी का असर और ज़्यादा जानलेवा बन गया है।”
नए इलाके भी आ गए चपेट में
एक हालिया स्टडी ‘Shifting of the Zone of Occurrence of Extreme Weather Event—Heat Waves’ के मुताबिक अब हीटवेव सिर्फ राजस्थान या विदर्भ तक सीमित नहीं रही। अरुणाचल प्रदेश, केरल, और जम्मू-कश्मीर जैसे पारंपरिक रूप से ठंडे माने जाने वाले राज्यों में भी पिछले दो दशकों में हीटवेव देखी गई है।
1981 से 2019 के बीच नॉर्थ इंडिया में “थर्मल डिसकम्फर्ट डेज़” (अत्यधिक गर्मी से असहनीय दिन) की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
हवा की चाल भी बनी आफत
नए शोध बताते हैं कि उत्तर भारत में प्री-मॉनसून महीनों (मार्च–मई) में हवा की रफ्तार घट गई है, जिससे ठंडी हवाएं गर्म क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पा रहीं। वहीं, दक्षिण भारत में तेज़ हवाएं नमी को बेहतर तरीके से फैला रही हैं। ये हवा के बड़े पैमाने पर हो रहे बदलाव का संकेत हैं, जो शायद मॉनसून प्रणाली की चाल को भी प्रभावित कर रहे हैं।
जानलेवा बनती गर्मी – मौतों में उछाल
1991 से 2020 तक की हीटवेव से मौतों का अध्ययन बताता है कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में अप्रैल-जून के बीच हजारों लोग हीट स्ट्रोक से मारे गए। अकेले आंध्र प्रदेश में 2011-2020 के बीच अप्रैल और मई में 3182 मौतें हुईं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी गर्मी से मौतों का आंकड़ा चिंताजनक रहा।
शहरी इलाकों में अलग संकट
शहरों में ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ और लोकल माइक्रोक्लाइमेट बदलाव से हालात और खराब हो रहे हैं। जलवायु शोधकर्ता डॉ. पलक बाल्यान के अनुसार, “हीट स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मौसमी बदलाव अब मानसून के महीनों तक हीटवेव को खींच रहे हैं। हमें अब लोकल स्तर पर ठोस प्लानिंग और हेल्थ रिस्पॉन्स की ज़रूरत है।”
क्या किया जा सकता है?
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि अब जरूरत है प्रभावी हीट एक्शन प्लान्स, मजबूत अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, और शहरों के लिए क्लाइमेट-रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर की। इसके साथ-साथ, हीटवेव के सामाजिक-आर्थिक असर को कम करने के लिए गरीब, बच्चों, बुज़ुर्गों और बाहरी काम करने वाले लोगों के लिए विशेष सुरक्षा इंतज़ाम ज़रूरी हैं।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की समस्या नहीं रही – वो हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे चुका है, तपिश बनकर, नमी बनकर, और असहनीय गर्मी बनकर। भारत को अब न सिर्फ गर्मी से लड़ना है, बल्कि अपने नीति, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे को नए सिरे से तैयार करना होगा – वरना हर गर्मी पिछली से ज़्यादा जानलेवा होगी।