कवक आपके जीवन को किस तरह प्रभावित करता है और उन पर संकट कितना गहरा है?

हम-आप में से हर किसी ने कवक को किसी न किसी रूप में देखा होगा, जिन्हें अंग्रेजी में फंगी (fungi) कहते हैं। बगीचों में पेड़ों के नीचे, उनकी जड़ों के आसपास, गीले पुआल के आसपास, सड़े हुए पत्तों के निकट, गीले खेतों में और किसी ऐसी जगह जहां नमी हो। कवक की दुनिया पृथ्वी के सतह के ऊपर और नीचे दोनों जगह है। मशरूम भी एक कवक ही है। हालांकि ये कवक पृथ्वी के गुमनाम नायक हैं जो स्वास्थ्य पारिस्थितिकी निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, पर वे उपेक्षित हैं और उन्हें अनदेखा किया गया है।

इनका नुकसान जमीन के ऊपर के जीवन को प्रभावित करता है, खासकर उनका जो उन पर निर्भर हैं। जैसे पेड़ों का और हम मनुष्य व अंन्य जंतु जो सीधे पेड़ों पर निर्भर हैं तो हमारा भी। अधिकतर पौधे पोषक तत्वों को हासिल करने के लए कवक के साथ मिल कर काम करते हैं और वे उनके बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। कवक अपघटन को संभव बनाते हैं। कई खाद्य पदार्थाें के किण्वन में वे उपयोगी होते हैं और पेय उत्पादों में उपयोग किए जाते हैं और दवाओं के निर्माण का भी आधार बनते हैं। कवक दूषित स्थलों की सफाई में एक जैव उपचार प्रयास में सहायक होते हैं।

कवक पौधों और जंतुओं से अलग अपना साम्राज्य बनाते हैं। पृथ्वी पर इनका जंतुओं के बाद दूसरा बड़ा साम्राज्य है, जिनकी 25 लाख प्रजातियां हैं और इनमें एक लाख 55 हजार का नामाकरण हुआ है। आइयूसीएन की रेड लिस्ट में कवक की 1300 प्रजातियां शामिल की गई हैं, जिनमें 411 के विलुप्त होने का खतरा है।

Photo Credit – https://ucmp.berkeley.edu/fungi/basidio/mushroomsi.gif

कवक को नुकसान किन वजहों से हो रहा है?

कृषि और शहरी क्षेत्रों के तेज विकास, लकड़ी उत्पादन व वनों एवं पेड़ों की अवैध कटाई, जलवायु परिवर्तन, कृषि व वानिकी में विषाक्त रासायनों के अत्यधिक प्रयोग आदि कारक कवकों के संकट को बढा रहे हैं।

कृषि और शहरी क्षेत्रों के तेज गति से विकास ने कवक के आवास को बदल दिया है, जिससे 279 प्रजातियों पर विलुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। उर्वरकों का प्रयोग, कृषि उपकरणों के इंजन से होने वाला प्रदूषण, नाइट्रोजन एवं अमोनिया रिसाव ने कवक की 91 प्रजातियों को संकट में डाल दिया है।

लकड़ी उत्पादन, अवैध कटाई व कृषि के लिए वनों की कटाई ने कम से कम 198 कवक प्रजातियों को संकट में डाल दिया है। पुराने जंगलों की कटाई अत्यधिक हानिकारक है, जिनसे कवक नष्ट हो रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन की वजह से कवक की 50 प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है, जिसने जंगल को काफी बदला है। उदाहरण के लिए 1980 के बाद से देवदार के पेड़ ऊंचे सिएरा नेवादा पर्वतीय जंगलों पर हावी हो गए हैं, जिससे लुप्तप्राय गैस्ट्रोबोलेटस सिट्रिनोब्रुनियस के लिए आवास कम हो गए हैं।

यह महाराष्ट्र में वेस्टर्न घाट में पंचघनी में एक परिसर की तसवीर है। Photo – Rahul Singh

हम कवक के संरक्षण के लिए क्या कर सकते हैं?


कवक के बिना हम पृथ्वी पर जीवन की परिकल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि इनकी अनुपस्थिति में पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाएगा। इसलिए इनके संरक्षण के लिए प्रयास जरूरी हैं। कवक फसलों एवं पेड़ों में सूखे व रोगजनक प्रतिरोध को बढाते हैं और मिट्टी में कार्बन अवशोषण में मदद करते हैं।

कवक की रक्षा के लिए यह जरूरी है कि अधिक पुराने जंगल को संरक्षित किया जाए, उन्हें नुकसान न पहुंचाया जाए। हमारी वानिकी प्रथाओं में इस बात को महत्व दिया जिससे कवक के संरक्षण को बढावा मिले, जैसे मृत लकड़ी और बिखरे हुए पेड़ों को छोड़ना। ऐसे वन प्रबंधन को अपनाना जिससे वनों में लगने वाली आग को नियंत्रित किया जा सके।

हमें कृषि में रासायनों के अत्यधिक इस्तेमाल पर भी विचार करना होगा और ऐसी प्रथाओं को बढावा देना होगा जो कवक को नुकसान न पहुंचायें।

यह आलेख क्लाइमेट ईस्ट डेस्क द्वारा आइयूसीएन की इस साल मार्च महीने में कवक पर आयी रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है। आप इस लिंक को क्लिक कर पूरी रिपोर्ट पढ सकते हैं।

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