एक नई स्टडी Dispersed female networks: female gorillas’ inter-group relationships influence dispersal decisions ने मादा गोरिल्ला के स्वाभाव के बारे में दिलचस्प खुलासा किया है। उनका व्यवहार बहुत हद तक मनुष्यों की तरह होता है। रॉयल सोसाइटी के पिछले महीने पब्लिश हुई एक नई स्टडी के अनुसार, मादा गोरिल्ला खुद के लिए कभी ऐसे समूह को नहीं चुनती हैं, जिनमें उनके बचपन के समूह के नर गोरिल्ला हों।
चूंकि मादा गोरिल्ला यह नहीं जानती हैं कि उनके पिता कौन हैं, इसलिए वे जिन नरों के साथ पली-बढी हैं, उनके समूह से दूर रहती हैं। यह उनके लिए एक सरल नियम की तरह है, क्योंकि उनमें से किसी के उनके रिश्तेदार होने की संभावना अधिक होगी, जिनके साथ वे नहीं पली-बढी हैं। इसलिए वे दूरी बनाए रखने के सिद्धांत पर चलती हैं।
मादा गोरिल्ला के लिए परिचित नर गोरिल्ला की तुलना में परिचित मादा गोरिल्ला अधिक आकर्षक होती हैं। अध्ययन में यह पाया गया कि मात्र एक पूर्व साथी की मौजूदगी भी इस संभावना को नाटकीय रूप से बढा देती है कि वे किसी समूह या गंतव्य को चुनेंगी। ऐसा तब और अधिक होता है जब दोनों ने कम से कम पांच साल एक ही दल में गुजारा हो और पिछल दो-वर्षाें में एक-दूसरे से मुलाकात हुई हो। यह उनके लिए दीर्घकालिक संबंध के लिए मददगार होता है।

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मादा गोरिल्ला का यह स्वभाव उनके लिए चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि किसी नए समूह में शामिल होना उनके लिए डरावना हो सकता है और उसमें उनकी सामाजिक हैसियत निचले पायदान पर होती है। हालांकि किसी जान-पहचान की मादा गोरिल्ला की मौजूदगी उन्हें सामाजिक सहयोग प्रदान करता है।
यह स्टडी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि गोरिल्ला का स्वभाव मनुष्य के स्वभाव का आईना है। वे अपने जन्म समूह के नरों से बचकर मादाएं अंतः प्रजनन के जोखिम को कम करती हैं और अनुवांशिक विविधता फैलाती है, जैसा कि मनुष्य का स्वभाव होता है।
इस आलेख को तैयार करने में इस स्टडी पर प्रकाशित अर्थ डॉट कॉम की इस रिपोर्ट की मदद ली गई है, क्योंकि स्टडी का ओपेन एक्सेस नहीं उपलब्ध है। ओपेन एक्सेस में स्डटी का सिर्फ उसके एब्स्ट्रेक्ट उपलब्ध है।