चाय मजदूर गुर्जन नाइक की मौत से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य –
गुर्जन नाइक जिस चाय बागान के स्थायी श्रमिक थे, वहां चार महीने से वेतन नहीं मिलने के बाद श्रमिकों ने दो महीने से काम बंद कर रखा है। यानी बिना पैसे के वे छह महीने से जीवन गुजार रहे थे।
गुर्जन नाइक व उनकी पत्नी बासंती नाईक अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं, लेकिन इनके पास जाति प्रमाण पत्र नहीं था। इस वजह से इनकी पत्नी को पश्चिम बंगाल सरकार के कल्याणकारी स्कीम के तहत एससी-एसटी वर्ग को मिलने वाले 1200 रुपये की जगह अन्य वर्ग की तरह 1000 रुपये ही मिलता था। इनकी कोई संतान नहीं है, जिससे यह दंपती निराश्रित है।
इन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 35 किलो की जगह 32 या 33 किलो अनाज ही दिया जा रहा था। चावल में किसी महीने एक किलो और किसी महीने दो किलो तो आटा में हर महीने एक किलो कटौती हो रही थी।
बीरपाड़ा (अलीपुरद्वार जिला): पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से के जिलों में स्थित चाय बागानों के मजदूरों की हालत बहुत खराब है। चाय मजदूर कामबंदी, वेतन नहीं मिलने, बेहद कम वेतन दिए जाने (250 रुपये प्रतिदिन), बागान प्रबंधन के द्वारा काम से मामूली वजहों या किसी खुन्नस से भी काम से बैठा दिए जाने (इस वजह से वे रोजगार को लेकर डरे रहते हैं) के शिकार हैं। बड़े पैमान पर उनके पीएफ एवं ग्रेच्युटी खाते में धांधली की भी शिकायतें आती रहती हैं। ऐसे ही हालात में एक और चाय मजदूर 58 वर्षीय गुर्जन नाइक की जून महीने के आखिरी दिनों में मौत हो गई।
यह घटना अलीपुरद्वार जिले के मदारीहाट ब्लॉक के गैरगंडा चाय बागान की है। घरवालों के अनुसार, उनकी मौत सही समय पर इलाज नहीं होने और खाने की दिक्कत की वजह से हुई। गुर्जन नाइक अनुसूचित जाति वर्ग से आते थे और गैरगंडा चाय बागान के स्थायी श्रमिक थे। गैरगंडा चाय बागान के मजदूरों को छह महीने यानी 12 पखवाड़े से वेतन नहीं मिला है। चाय बागान में प्रति पखवाड़े वेतन देने का चलन है। मजूदरों ने वेतन नहीं मिलने के विरोध में दो महीने पहले काम बंद कर दिया। इसके बाद गुर्जन नाइक घोर आर्थिक परेशानियों से गुजर रहे थे।

भोजन का अधिकार अभियान व पश्चिम बंग चा मजूर समिति की फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य गुर्जन नाइक की पत्नी बासंती नाईक व भाई से बात करते हुए।
गुर्जन नाइक और उनकी पत्नी बासंती नाईक निःसंतान दंपती हैं। यानी इन्हें देखने वाला कोई नहीं। गुर्जन के एक भाई हैं, जिससे थोड़ी-बहुत मदद मिल जाया करती थी। पर, उनकी भी स्थिति ऐसी नहीं कि इनका परिवार चला सकें।
गुर्जन नाइक की मौत के बाद भोजन का अधिकार अभियान (RTF) व पश्चिम बंग चा मजूर समिति (PBCMS) की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने उनके घर का जायजा लिया व पत्नी व भाई से मुलाकात की। इस दौरान टीम ने आसपास के लोगों से भी बात की। पड़ोस के लोगों ने बताया कि गुर्जन नाइक की पत्नी बासंती नाईक को 1000 रुपये महीना पश्चिम बंगाल सरकार के वेलफेयर स्कीम लक्ष्मी भंडार से मिलता था, जिसमें 500 रुपये में वे दो लोगों के लिए अनाज का प्रबंध करती थीं और 500 रुपये में पति गुर्जन के लिए दवा आदि का इंतजाम करती थीं।

गुर्जन नाइक की पत्नी बासंती नाईक का बॉडी मॉस इंडेक्स (BMI) जांच करते फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य।
अब 500 रुपये में दो व्यक्ति के एक महीने के लिए दाल, सब्जी, तेल, मसाला व अन्य जरूरी खाद्य सामग्री का प्रबंध कैसे हो सकता है? यह प्रति व्यक्ति 10 रुपये से भी कम है। फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य किरसेन खड़िया ने क्लाइमेट ईस्ट को बताया कि गुर्जन नाइक व उनकी पत्नी अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं, इसलिए इन्हें लक्ष्मी भंडार का 1200 रुपया मिलना चाहिए, क्योंकि राज्य सरकार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के लाभुकों को सामान्य वर्ग से 200 रुपये ज्यादा देती है, लेकिन इनके पास जाति प्रमाण पत्र नहीं था, जिसके कारण ये 1200 रुपये पाने से वंचित हैं और इन्हें 200 रुपये का नुकसान हो रहा है।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने यह भी पाया कि इनके परिवार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट के तहत 35 किलो अनाज मिलना चाहिए था, लेकिन उससे कम अनाज डीलर से मिलता था। प्रावधान के अनुसार, इस खाद्यान्न में 21 किलो चावल व 14 किलो आटा दिए जाने का प्रावधान है। आटा एक-एक केजी के पैकेज में दिया जाता है। पड़ताल में यह पाया गया कि इस दंपती को कभी 20 तो कभी 19 किलो चावल दिया जाता था और आटा भी एक किलो कम यानी 13 पैकेट ही दिया जाता था।

गुर्जन नाइक की पत्नी बासंती नाईक को खरीद कर दी गई दवा।
भोजन के अधिकार अभियान व पश्चिम बंग चा मजूर समिति की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने गुर्जन नायक की मौत के बाद दो बार उनके घर के हालात का जायजा लिया है और उनकी पत्नी को मदद पहुंचायी। उनकी पत्नी के स्वास्थ्य की जांच की गई तो उनका बीएमआइ यानी बॉडी मॉस इंडेक्स मात्र 13.31 आया, जबकि 16 से कम बॉडी मास इंडेक्स को अच्छा नहीं माना जाता है और संबंधित व्यक्ति को अत्यधिक दुबला माना जाता है।
गुर्जन नाइक की पत्नी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। वे शारीरिक रूप से बेहद कमजोर हैं। फैक्ट फाइंडिंग टीम ने बीरपाड़ा अस्पताल ले जाकर उनका डॉक्टर से इलाज करवाया और उन्हें जरूरी दवाइयां भी खरीद कर दी। इसके अलावा खाने-पीने की अन्य चीज, जैसे – दाल, सोयाबीन, तेल, मसाला आदि खरीद कर दिया गया।
अभाव में किसी चाय मजदूर की मौत की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले वर्ष 2024 में एक चाय मजदूर 58 वर्षीय धनी उरांव की मौत हो गई थी। उस समय पीबीसीएमएस की फैक्ट फाइंडिंग टीम की जांच में उनका बॉडी मॉस इंडेक्स 12 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर पाया गया था। वे अलीपुरद्वार जिले के कालचीनी प्रखंड के मधु चाय बागान के स्थायी मजदूर थे।
(फोटो स्रोत: किरसेन खड़िया/उत्तर बंगाल चाय श्रमिक संगठन/पश्चिम बंग चा मजूर समिति/भोजन का अधिकार अभियान।)
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